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भारतीय संविधान और उदय भारतम् पार्टी

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26 नवंबर 1949, यह वह दिन था , जब सही मायने में स्वतंत्र होने की कुंजी भारत के हाथ लगी थी। कहने को तो भारत को अंग्रेजी दासता से 15 अगस्त 1947 को ही मुक्ति मिलने के साथ भारत स्वतंत हो गया था, लेकिन तब से लेकर 26 जनवरी 1950 तक हमारे देश में सारी व्यवस्थाएं वैसे ही अंग्रेजी नियम कानून से चलती रही जैसा की अंग्रेजों के जमाने में चल रही थी।तब अंग्रेजों द्वारा बनाई गई भारत अधिनियम के अनुसार सरकार पहले 21 जून 1948 तक पूर्व वायसराय और उसके के बाद गवर्नर जनरल रहे लार्ड माउंटबेटन को और इसके बाद 24 जनवरी 1950 ईस्वी तक चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को रिपोर्ट करती थी।24 जनवरी 1950 को राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्राध्यक्ष का पद संभाला था।उसके बाद 1951- 52 में केंद्र और विभिन्न राज्यों की सरकार बनाने के लिए चुनाव हुए ,जिसके आधार पर जनता द्वारा चुनी गई सरकारों ने भारतीय संविधान के आधार पर काम करना प्रारंभ कर दिया।अब सरकारें देश प्रमुख के रूप में राष्ट्रपति को रिपोर्ट करती है।

26 नंबर 1949 ई को भारत ने संविधान के जिस प्रारूप को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया उसमें 448 अनुच्छेद, 25 भाग, 12 अनुसूचियां और 104 संशोधन हैं।भारतीय संविधान में व्यक्तिगत अधिकार, राजनीतिक व्यवस्था और चुनाव प्रक्रिया जैसे विषय शामिल हैं।

दुनिया के इस सबसे बड़े भारतीय संविधान में यों तो देश के नागरिकों के मामले से लेकर देश में चुनाव कराने और केंद्र – राज्य संबंध सहित शासन व्यवस्था से जुड़े हर मामलों का वर्णन है ,लेकिन इसकी मूल आत्मा समानता मैं समाहित है,जो मौलिक अधिकार के अंतर्गत समानता का विवरण अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 तक में वर्णित है।

देश में समानता को तेजी से लाने के लिए डॉक्टर भीमराव की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने संविधान के प्रारूप में मेरिट से हटकर सामाजिक दृष्टिकोण पर आधारित आरक्षण तक देने की बात कर दी और जल्दी से जल्दी भारत में समानता लाने और मेरिट की अवहेलना के प्रतिकूल असर को समाप्त करने के उद्देश्य से इस आरक्षण की अवधि को 10 वर्षों के लिए सीमित कर दी थी। समानता की वकालत करते हुए डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि हम कब तक अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में असमानता को नकारते रहेंगे ?अगर हम इसे लंबे समय तक नकारते रहेंगे तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को खतरे में डाल देंगे।हमें इस विरोधाभास को जल्द से जल्द दूर करना होगा अन्यथा असमानता से पीड़ित लोग राजनीतिक लोकतंत्र की संरचना को नष्ट कर देंगे जिसे संविधान ने कड़ी मेहनत से बनाया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस स्वतंत्रता ने हम पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी डाल दी है। स्वतंत्रता के साथ ही हमने किसी भी गलत काम के लिए अंग्रेजों को दोषी ठहराने का बहाना भी खो दिया है।अगर भविष्य में कुछ गलत हुआ तो हमें खुद को छोड़कर किसी को भी दोषी नहीं ठहराना होगा।चीजों के गलत होने का बहुत खतरा है। समय तेजी से बदल रहा है इसलिए यह जरूरी है कि देश में समानता जल्दी से जल्दी लाई जाए।

देश में समानता लाने की दिशा में अलग-अलग राजनीतिक दल अलग-अलग तरीका अपना रहे हैं।इसके अंतर्गत समानता लाकर आरक्षण समाप्त करने की जगह,आरक्षण को लंबे समय तक राजनीतिक हथियार बनाए रखने को लेकर सभी राजनीतिक दल एकमत है। मतभेद है तो सिर्फ तरीका और आरक्षण की सीमा को लेकर।बीजेपी आरक्षण को संवैधानिक अधिकार मानते हुए इसे नहीं हटाने की बात करती है, अलबत्ता यह सुप्रीम कोर्ट के 50% मेरिट और 50% आरक्षण के सिद्धांत का समर्थन करती है। वहीं कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के घटक दल आरक्षण की सीमा को जातिगत आधार पर जिसकी जितनी संख्या भारी ,उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात कहते हुए, इसे भविष्य में लागू रहने देने की वकालत करता है।इसकी नजर में मेरिट का कोई स्थान नहीं,बल्कि यह आरक्षण की सीमा को 50 % से बढ़ाकर 100% जाति गणना पर आधारित करने की बात करती है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव से राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश कर पूरे देश में अपना विस्तार करते हुए देश के राजनीतिक माहौल में आमूलचूल परिवर्तन लाने के उद्देश्य से नवगठित उदय भारतम् पार्टी भी संविधान में लिखी गई समानता लाने का पक्षधर है।इसकी महत्ता को समझते हुए उदय भारतम् पार्टी ने अपने 10 सूत्र वाक्यों में जिनके आधार पर यह देश की राजनीति में बड़ा बदलाव लाने की सोच रही है, उसमें एक प्रमुख सूत्र वाक्य के रूप में समानता भारतम् को रखा है

उदय भारतम् पार्टी के अनुसार “समानता भारतम्” समान अवसर सुनिश्चित करके और सभी भारतीयों के साथ उचित व्यवहार को बढ़ावा देकर असमानता के मुद्दों को संबोधित करता है जिससे सामाजिक एकता और समृद्धि को बढ़ावा मिलता है। यह समानता, न्याय और पारस्परिक सम्मान का समर्थन करता है, जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव, का दृढ़ता से विरोध करता है और उचित व्यवहार और संप्रभुता की वकालत करता है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर जोर देते हुए, यह संघर्ष पर संवाद और कूटनीति को प्राथमिकता देता है, गुटनिरपेक्षता और साझा मूल्यों पर आधारित सहयोग को बढ़ावा देता है। यह विचारधारा जलवायु परिवर्तन और गरीबी जैसे गंभीर मुद्दों से निपटने में सहयोग के महत्व को पहचानती है, सभी देशों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए समावेशी विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रयास करती है।

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