रेसिप्रोकल ड्यूटी को 90 दिन तक ही टालने के बाद अमेरिका अब फार्मास्यूटिकल और सेमीकंडक्टर के आयात पर टैरिफ लगाने की तैयारी में जुट गया है। संघीय रजिस्टर फाइलिंग के अनुसार, ट्रंप प्रशासन फार्मास्यूटिकल्स और सेमीकंडक्टर के आयात की जांच कर रहा है, ताकि इन पर टैरिफ लगाया जा सके।
अमेरिका ने रेसिप्रोकल टैरिफ का
यह कदम 1962 के व्यापार विस्तार अधिनियम की धारा 232 के तहत उठाया गया है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक वस्तुओं का घरेलू उत्पादन बढ़ाना है। ट्रंप प्रशासन पहले ही स्टील, एल्यूमिनियम, तांबा और लकड़ी के आयात की जांच कर चुका है।अब यह जांच फार्मास्यूटिकल्स और चिप निर्माण पर केंद्रित है, जिसमें 21 दिनों की सार्वजनिक टिप्पणी की अवधि भी शामिल है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की ताइवान और चीन जैसे देशों से दवाओं और चिप्स पर अत्यधिक निर्भरता को देखते हुए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन क्षेत्रों को टैरिफ के दायरे में लाने की बात कही है।हालांकि, स्मार्टफोन और कंप्यूटर जैसे कुछ उत्पादों को फिलहाल भारी टैरिफ से छूट दी गई है, लेकिन सेमीकंडक्टर जल्द ही टैरिफ के दायरे में आ सकते हैं।ट्रंप ने कहा है कि इन क्षेत्रों में “लचीलापन” रखा जाएगा, लेकिन घरेलू उत्पादन बढ़ाना जरूरी है।
फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री ने चेतावनी दी है कि टैरिफ के कारण दवाओं की कमी और कीमतों में वृद्धि हो सकती है, जिससे मरीजों की पहुंच सीमित होगी।हालांकि, ट्रंप प्रशासन चरणबद्ध तरीके से टैरिफ लागू करने पर विचार कर रहा है। प्रमुख विश्लेषकों का मानना है कि मई के मध्य तक 10-25% के टैरिफ लगाए जा सकते हैं।
फेडरल रिजर्व के गवर्नर क्रिस्टोफर वालर ने ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी को “आर्थिक झटका” करार दिया है।वहीं, टेक इंडस्ट्री ने टैरिफ से उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले प्रभाव की आलोचना की है।उपभोक्ता टेक्नोलॉजी एसोसिएशन के गैरी शापिरो ने अधिक संतुलित और सहयोगात्मक व्यापार रणनीति की मांग की है। ट्रंप की इस नीति का उद्देश्य अमेरिकी अर्थव्यवस्था को विदेशी निर्भरता से मुक्त कर आत्मनिर्भर बनाना है, लेकिन इसके संभावित प्रभावों पर बहस जारी है।