अखिलेश अखिल
कर्नाटक विधान सभा चुनाव के साथ ही कई राज्यों में उपचुनाव भी होने हैं। जलंधर लोकसभा का उप चुनाव भी दस मई को ही होना तय है। पंजाब विधान सभा के बाद सूबे में यह दूसरा लोकसभा उपचुनाव है। पहला लोकसभा उपचुनाव संगरूर में हुआ था। वहां से खुद मुख्यमंत्री भग्गवंत मन जीते थे। बाद में उन्होंने इस्तीफा दिया और आप से यह सीट छीन गई। शिरोमणि अकाली दल के कटटरपंथी नेता सिमरनजीत सिंह मान यहां से जीते। कांग्रेस ,बीजेपी ,आप और अकाली दल के उम्मीदवार पीछे रह गए। पंजाब की राजनीति में इसे एक बड़ा खेल माना गया। और अब जालंधर सीट की बारी है।
जालंधर सीट पहले कांग्रेस के पाले में थी। 2019 के चुनाव में जालंधर से कांग्रेस के बड़े नेता संतोख सिंह चौधरी की जीत यहाँ से हुई थी। वे काफी सामाजिक नेता माने जाते थे। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान संतोख चौधरी का निधन दिल का दौरा पड़ने की वजह से हो गया था। तब से यह सीट खाली पड़ी थी। जालंधर की यह सीट सुरक्षित है और यहां 10 मई को चुनाव होने हैं।
कांग्रेस के लिए यह सीट कही अहम है क्योंकि यह उसकी सिटिंग सीट रही है। अगले साल लोकसभा का चुनाव भी होना है इसलिए कांग्रेस इस सीट को गवाना नहीं चाहती। इस सीट को गवाने का मतलब है कि अगले साल के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की मुश्किल बढ़ेगी। कांग्रेस ने इस सीट पर संतोख सिंह चौधरी की पत्नी करमजीत कौर को मैदान में उतारा है। कांग्रेस को लग रहा है कि उसे सहानुभूति वोट मिलेंगे। इसके साथ ही कांग्रेस को यह भी लग रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद पार्टी की जो तस्वीर बदली है उसका भी लाभ उसे मिल सकता है। लेकिन राजनीति में हो जाए यह कोई नहीं जानता।
उधर आप पार्टी की नजर भी जालंधर सीट पर है। आप का अभी तक यहाँ से कोई लोकसभा सांसद नहीं है। इसलिए आप का प्रयास भी यही है कि उसका पंजाब में खाता खुले। आखिर उसने पंजाब विधान सभा चुनाव में बड़ी जीत हाशिक की थी। 117 में से 92 सीटें उसे मिली थी। ऐसे में अगर आप वहां खाता भी खोल नहीं पाती है तो यह चिंता का विषय हो सकता है। भगवंत मान की प्रतिष्ठा का मामला भी यहाँ फंसा हुआ है।
इधर पंजाब कट्टरपंथी खालिस्तान समर्थक अमृतपाल को लेकर राजनीति गर्म है। बहुत से लोग और संगठन उसके समर्थन में आते दिख रहे हैं। हालांकि अमृतपाल अभी भागा हुआ है लेकिन पंजाब में उसके प्रति सहानुभति भी है। संगरूर का सांसद सिमरनजीत सिंह मान भी अमृतपाल का समर्थक माना जाता है। जाहिर है कोई न कोई चरमपंथी संगठन भी जालंधर के मैदान में उतर सकता है। ऐसे में जालंधर का उप चुनाव रोचक हो सकता है। यह सीट किसके पाले में जायेगी ,कहा नहीं जा सकता।