अखिलेश अखिल
कन्याकुमारी से चलकर जम्मू कश्मीर पहुंची भारत जोड़ो यात्रा का अंतिम दिन है। आज यात्रा की समाप्ति है। समाप्ति से पहले राहुल गाँधी पार्टी दफ्तर में झंडा फहराएंगे और इसके बाद शेरे कश्मीर स्टेडियम में बड़ा जलसा होना है। खबर के मुताबिक़ इस जलसे में काफी भीड़ आने की बात कही जा रही है लेकिन इसमें कुछेक विपक्षी नेताओं को छोड़ दे तो कोई भी पार्टी शिरकत नहीं करती दिख रही है। ऐसे में यह तो साफ़ है कि राहुल की यह यात्रा भले ही काफी सफल रही और कांग्रेस के लिए संजीवनी भी बनी लेकिन यात्रा का अंतिम मकसद शायद पूरा नहीं हो पाया। यह किसी झटके से कम नहीं है कांग्रेस के लिए।
कांग्रेस परेशान तो है। परेशानी इस बात को लेकर है कि जिन दलों ने यात्रा के दौरान उसका साथ दिया ,अंतिम पड़ाव पर वे साथ नहीं आये। हालांकि कांग्रेस बार बार कहती रही है कि यह राजनीतिक यात्रा नहीं है। लेकिन जिस लिहाज से 23 दलों को आमंत्रित किया गया था उसका सन्देश तो यही था कि बीजेपी को अंतिम सन्देश दिया जाएगा। एकता का सन्देश और आगे की राजनीति की बात। इस मामले में कांग्रेस विफल साबित होती नजर आ रही है।
बिहार और झारखंड में गठबंधन की सरकार है और उसमे कांग्रेस भी शामिल है। लेकिन राजद और झामुमो की तरफ से कोई भी नहीं पहुँच रहा है। नीतीश कुमार ने तो पहले ही जाने से मना कर दिया है। जदयू के और नेता भी वहाँ जाने को तैयार नहीं हुए। कहा गया कि नीतीश कुमार जहां समाधान यात्रा कर रहे हैं वही पार्टी अध्यक्ष लल्लन सिंह नागालैंड में पार्टी को सम्बोधित करने जाने वाले हैं। हालांकि यह सब बहाना से ज्यादा कुछ भी नहीं।
उधर जेडीएस ने भी यात्रा की समाप्ति कार्यक्रम में आने से मना कर दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा ने हालांकि पात्र के जरिये यात्रा की समाप्ति पर राहुल को शुभकामनाये दी है लेकिन आने से साफ़ मना कर दिया है।
लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस त्रिपुरा में कांग्रेस और माकपा गठबंधन के तहत चुनावी मैदान में उतर रहे हैं वह भी आने से मना किया है। सीताराम येचुरी से राहुल के बेहतर सम्बन्ध होते हुए भी यात्रा में शामिल नहीं होना कई सवालों को जन्म दे रहा है। उधर ,टीएमसी ,सपा आरएलडी ,बसपा भी यात्रा के अंत में शामिल नहीं हो रहे हैं।
इसके राजनीतिक मायने चाहे जो भी निकले लेकिन इतना तो साफ़ है कि भारत जोड़ो यात्रा की कामयाबी से इंकार नहीं किया जा सकता। अब जहां तक विपक्षी एकता की बात है इस पर आगे की रणनीति बन सकती है। कांग्रेस को पहले लग रहा था कि यात्रा के अंत में जब सब मिलेंगे तो एक बड़ा मैसेज जाएगा ,लेकिन संभव नहीं हो सका। इसके कई मायने भी है। सभी नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षा भी है। पीएम उम्मीदवारी को सबके अपने सपने हैं। ऐसे में यह आसान भी नहीं है कि बीजेपी को घेरने में सब साथ आएंगे ही। संभव है कि लोक सभा चुनाव से पहले जो दस राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं उसमे अगर कांग्रेस कुछ बेहतर कर पाती है तब विपक्षी एकता को लेकर बाते हो सकती है। बीजेपी भी यही चाहती है। और बीजेपी की यह चाहत पूरी हो गई तो आने वाले समय में विपक्षी एकता को पलीता भी लग सकता है।