(अखिलेश अखिल) राहें भले ही अलग -अलग हो लेकिन दोनों की मंजिले एक ही तो है। बड़ा भाई कांग्रेस को फिर से जीवंत करने के लिए साढ़े तीन हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा के जरिये भारतीय जनमानस में देशनीति ,समाजनीति ,अर्थनीति ,किसाननीति और बेकारी ,महंगाई को लेकर अलख जगा रहा है और जाति ,धर्म ,डर व हिंसा की राजनीति से बिखर चुके लोगों को जोड़ने और खुद को आम आदमी से जुड़ने का भगीरथ प्रयास कर रहा है तो दूसरा भाई सत्ताधारी पार्टी में रहकर सरकार और उसकी नीतियों पर लगातार हमला कर पार्टी के आकाओं को बेचैन किये हुए है। दोनों की लड़ाई लोकतंत्र बचाने और भाईचारे की ही है। दोनों भाइयों में कोई बात नहीं होती ,दोनों की राजनीति भी अलग -अलग मंच पर है लेकिन दोनों की विरासत एक ही है। छोटा भाई और उसकी माँ कभी बीजेपी के लिए पूजनीय रहे लेकिन अब मौजूदा बीजेपी में उनकी कोई जगह नहीं। कोई औकात भी नहीं। एक भाई विपक्ष में रहकर खुद की और पार्टी की अस्मिता को तलाश रहा है तो दूसरा भाई बीजेपी में रहकर त्याज्य और अपमानित होकर अपनी अलग राह तलाश रहा है। दोनों की अपनी तलाश है लेकिन दोनों की हुंकार धनधारियों और राजधारियों को परेशां किये हुए है। नेहरू -गाँधी परिवार के ये दोनों भाई राहुल और वरुण हैं। मौजूदा बीजेपी ने दोनों भाइयों को सड़क पर लाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। एक पर रणनीति के तहत पप्पू होने का तमगा चस्पा किया तो दूसरे को अपमानित कर पार्टी ,संगठन और मंत्रिमंडल से पैदल किया। भारतीय राजनीति के ये यादगार पहलू हैं जिसे हमेशा याद किया जाएगा।
सामने 10 राज्यों में चुनाव हैं और फिर अगले साल लोकसभा चुनाव। संभवतः जमींदोज हो चुकी कांग्रेस की तीन राज्यों में सरकार बची हुई है और दो राज्यों में सहयोगी दलों के सहारे सरकार में होने का स्वांग कांग्रेस मान सकती है। इन दस राज्यों में जो चुनाव होने हैं उनमे कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी शामिल है जिसे बचाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। इधर कांग्रेस में कुछ बदलाव भी किये गए। लम्बे समय के बाद गैर गाँधी परिवार से कोई पार्टी अध्यक्ष बना। खड़गे की ताजपोशी हुई। कहा गया कि खड़गे की बदौलत दक्षिण की राजनीति साधी जाएगी। कर्नाटक ,आंध्रा और तेलंगाना पर कांग्रेस की नजर है और उसमे खड़गे जी की भूमिका तलाशी जा रही है। दक्षिण के इन राज्यों में खड़गे ने कमाल किया तो वे कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी हो सकते हैं। इसे आप दलित कार्ड कह सकते हैं। ऐसा हुआ तो मोदी वनाम खड़गे की लड़ाई दिलचस्प हो सकती है। इस लड़ाई में कांग्रेस के साथ संभवतः विपक्ष भी एक साथ खड़े हो जाए।
लेकिन राहुल की राजनीति तो अब कुछ और ही हो गई है। वे शायद ही प्रधानमंत्री के उम्मीदवार होंगे। वे तपस्वी की तरह अभी देश को जोड़ेंगे और पार्टी में जान फूकेंगे। संगठन को मजबूत करेंगे और आगे की राजनीति तय करेंगे। लेकिन असली खेल तो वरुण गाँधी से जुड़ा है। वे क्या करेंगे और कहाँ जायेंगे इसको लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। लेकिन इतना तो साफ़ है कि वे न तो बीजेपी में रहेंगे और न ही बीजेपी उनको अगली बार टिकट देगी। बीजेपी इसी तरह का खेल शत्रुघ्न सिन्हा के साथ भी खेल चुकी है और कीर्ति झा आजाद के साथ ही कई और नेताओं के साथ भी। ये लोग बीजेपी के खिलाफ बोलते रहे और मौजूदा बीजेपी के आका मौन रहे। इन्हे हटाया नहीं ,ये खुद ही आजिज होकर हट गए। वरुण गाँधी भी हटाए नहीं जायेंगे ,उन्हें हटना है। उन्हें टिकट नहीं दी जाएगी। उनकी माता मेनका गाँधी को भी टकट नहीं मिलेगा। तब सवाल है कि वरुण करेंगे क्या ?
वरुण गांधी यूपी के पीलीभीत से संसद हैं और प्रखर नेता भी। वे अपने दम पर चुनाव जीतते हैं। 2019 के चुनाव में बीजेपी नहीं चाहती थी कि वरुण चुनाव जीतकर संसद पहुंचे ककई तरह के तिकड़म लगाए गए थे ,लेकिन वरुण चुनाप जीते। वे लेखक भी हैं पत्रकार भी ,वे किसान भी हैं और किसान हितैषी भी। किसानो पर उनकी शोधपरक पुस्तकें आँखे खोलने वाली है। लेकिन बीजेपी को उससे क्या मतलब ?अब बीजेपी के निशाने पर वरुण हैं। वजह है कि वरुण यूपी के एक सधे नेता के तौर पर तो उभरे ही हैं ,वे मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक भी। वे अनाप -शनाप नहीं बोलते जैसा कि बाकी बीजेपी नेताओं का शगल होता है। वरुण रचनात्मक राजनीति के पक्षधर हैं और किसी ख़ास वजह पर ही सरकार पर अटैक करते हैं। वे सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं ,अखवारों में रोज लिख रहे हैं और सरकार को भी चिठ्ठी लिख रहे हैं। सरकार उनके बयान ,उनके लेख और उनकी चिठ्ठी से आहात है लेकिन न तो जबाव देती है और न ही वरुण पर कोई करवाई ही। यह बीजेपी के भीतर का गजब अनतर्द्वंद है। वरुण इस खेल को जान रहे हैं। वरुण गाँधी अभी हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख भाई मंडाविया को चिट्ठी लिख कर कहा कि ‘दुर्लभ बीमारियों’ की स्थिति में नागरिकों को 10 लाख रुपए की मदद देने की केंद्र सरकार की योजना का लाभ आज तक किसी को नहीं मिला है, जबकि कितने बच्चे और बड़े लोग दुर्लभ बीमारियों का शिकार हुए हैं। वे किसानों के मसले पर भी लगातार मुखर रहे हैं।
यही वजह है कि वरुण को लेकर मीडिया रोज नयी खबरे गढ़ रही है। अटकले लगा रही है और गोदी मीडिया वरुण को पार्टी से निकलने के लिए मोदी सरकार के पास झूठे तथ्य भी पेश कर रही है। लेकिन बीजेपी मौन साधे सब देख रही है। वरुण के लिए बीजेपी में सारे रस्ते बंद हो चुके हैं ,यह वरुण भी जानते हैं। उनकी मां और सुल्तानपुर से भाजपा सांसद मेनका गांधी को पहले ही मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। वरुण या मेनका के पास पार्टी संगठन में कोई पद नहीं है, जबकि वरुण भाजपा के सबसे युवा महामंत्री रहे हैं। अब सवाल है कि वरुण आगे क्या करेंगे? पिछले दिनों उन्होंने कहा कि वे न कांग्रेस के खिलाफ हैं और न नेहरू के खिलाफ हैं। क्या इससे कांग्रेस में उनके लिए रास्ता खुलता है? इस बारे में पूछे जाने पर राहुल गांधी ने कहा कि उनको दिक्कत नहीं है लेकिन भाजपा वरुण के लिए मुश्किल पैदा करेगी।
सवाल है कि अगर वे भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में चले जाते हैं तो भाजपा क्या मुश्किल पैदा करेगी? वे खुद ही यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि भाजपा अगली बार उनको और मेनका गांधी को टिकट नहीं दे। अगर वे कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ते हैं तो उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी वाड्रा को एक मजबूत सहयोगी मिलेगा और देश के सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस को मजबूत आधार मिल जाएगा। उनके सामने क्षेत्रीय पार्टी में जाने का विकल्प भी है। लेकिन उनकी पृष्ठभूमि और राजनीतिक कद के लिहाज से किसी क्षेत्रीय पार्टी में उनकी जगह नहीं बनेगी और न वहां उनकी महत्वाकांक्षा पूरी हो सकेगी। तीसरा विकल्प अपनी पार्टी बनाने का है। लेकिन उसके लिए समय कम बचा है। इन तीनों में से उनको जल्दी ही कोई विकल्प चुनना होगा। अब एक खास खबर। भारत जोड़ो यात्रा से मिली इस खबर के मुताबिक राहुल और प्रियंका से वरुण की बात हुई है। कुछ मामलों को लेकर सहमति भी बनी। लेकिन आगे क्या प्लान है इसकी जानकारी अभी नहीं है। कहा जा रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति और सोनिया गाँधी की तबियत ठीक होने के बाद वरुण को लेकर कांग्रेस कोई बड़ा फैसला ले सकती है। चुकी यह मामल पार्टी अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे से बहार की है क्योंकि वरुण की वापसी का निर्णय सोनिया और मेनका परिवार के बीच होना है। जब दोनों परिवार सहमत होंगे तभी वरुण की कांग्रेस में वापसी की पटकथा लिखी जाएगी। और इसकी सम्भावना सबसे ज्यादा है।