अखिलेश अखिल
देश के भीतर एक धारणा बैठी है कि सरकार और न्यायपालिका के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। सरकार न्यायपालिका पर कब्जा चाहती है और फिर वही कुछ करना चाहती है जो अन्य संस्थाओं के साथ सरकार का रवैया है। विपक्ष से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता भी इस बात को खूब प्रचारित करते हैं कि सरकार और न्यायपालिका में सबकुछ ठीक नहीं है। विपक्ष कभी-कभी इससे भी ज्यादा तल्ख़ बयान करता है। लेकिन उधर सरकार भी मौन रहती है और न्यायपालिका भी। लोकतंत्र में इस तरह के खींचतान चलते ही रहते हैं। हाँ एक बात तो तय है कि कोई भी सरकार चाहती है कि उसके कोई भी फैसले पर अडंगा नहीं लगे। सरकार यह भी चाहती है कि चुनी हुई सरकार कोई भी फैसला लेती है तो देश हिट में ही लेती है और फिर उस फैसले पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। लेकिन इस मोदी सरकार में कुछ जिद ज्यादा ही है। वह अपने हर फैसले को सटीक मानती है और जब उस पर सवाल उठते हैं तो सरकार और देश के खिलाफ द्रोह करने का आरोप भी लगा देती है। इतना तो साफ़ है कि कम से कम यह सरकार अपनी खिलाफत नहीं चाहती।
लेकिन चुनी हुई अपनी सरकार के फैसले पर जितना मोदी सरकार इतराती है वही बात जब अन्य राज्य की सरकार तरफ से आती है तो मोदी सरकार उससे मुकर जाती है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के साथ मोदी सरकार और उसके तंत्र का क्या व्यवहार है यह कौन नहीं जनता ! लोकतंत्र के नाम पर ऐसा प्रहसन कही नहीं देखा गया। बीजेपी के प्रवकत जब कोई प्रलाप करता है तो सिर्फ हंसी आती है।
अब मामला सरकार और न्यायपालिका के बीच के सम्बन्धो लेकर। पिछले दिनों वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि विपक्ष कहता है कि सरकार और न्यायपालिका में टकराव है। लेकिन सच तो यही है कि मोदी सरकार के हर फैसले की रक्षा न्यायपालिका ही करती है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि कैसे न्यायपालिका ने मोदी की छवि बचाई। उन्होंने कई मामलों की जिक्र किया। सीतारमण ने कहा कि चाहे राफेल विमान सौदे का मामला हो, नोटबंदी का फैसला हो, ईडी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों की नेताओं के खिलाफ जांच का मामला हो, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट हो या आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने का मामला हो, हर मामले में विपक्ष ने दुष्प्रचार किया और अदालत ने मोदी की छवि और उनके फैसले को सुरक्षित रखा।
सीतारमण के ये बयान काफी अहम्वि हैं। इसको काट नहीं सकते। और इसकी आलोचना भी नहीं कर सकते। सच तो यही है कि जिन मामलों की बात वित्त मंत्री कर रही है उन मामलों में अदालत ने ही मोदी सरकार की रक्षा की है। अगर अदालत सरकार के फेवर में नहीं आती तो संभव है कि देश की मौजूदा राजनीति का दृश्य कुछ और ही होता। वित्त मंत्री का यह बयान विपक्ष की आँख खोलने के लिए काफी है। लेकिन सच तो कुछ और भी हो सकता है। सवाल तो कई और भी उठ सकते हैं। क्या कोई फैसला आने के बाद सम्पूर्ण न्याय मिल जाता है ? कदापि नहीं। सच और न्याय के बीच में एक झिनझिनि चादर होती है जिसे कभी भी बदला जा सकता है।
ऐसे में बड़ा सवाल है कि चाहे अदालती निर्णय जो भी हो ,क्या विपक्ष ने मान लिया है कि राफेल का सौदा सही था? ध्यान रहे राफेल सौदे की जांच पर भले भारत में सर्वोच्च अदालत ने पूर्णविराम लगा दिया हो लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में यह मामला खुला हुआ है। कई देशों में इसकी जांच चल रही है। इसी तरह नोटबंदी को भले सुप्रीम कोर्ट ने कानून रूप से सही माना हो लेकिन इसका असर देश की अर्थव्यवस्था और नागरिकों पर अच्छा हुआ है यह कोई नहीं मानता। उसी तरह सुप्रीम कोर्ट भले ईडी के अधिकारों को स्वीकार करे लेकिन विपक्षी नेताओं के खिलाफ उसकी जांच को लेकर आगे भी सवाल उठते रहेंगे। बहरहाल, भाजपा की बड़ी नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री का न्यायपालिका को लेकर दिया गया बयान मामूली नहीं है। यह बड़ा सवाल है कि न्यायपालिका इसे किस रूप में ले? ऐसे में एक सवाल है कि सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव की बात सच है या एक दिखावा ?