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राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने की सोच रखने वालों का सिकुड़ता जनाधार… क्या 2024 में विपक्षी एकता का प्लान हो जाएगा फेल?

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न्यूज डेस्क
चुनाव आयोग ने उन दलों को बहुत बड़ा झटका दिया है जो 2024 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हराने की रणनीति बना रहे थे। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का मुकाबला करने वाले इन दलों का जनाधार इतना कम था कि चुनाव आयोग ने इनसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा ही छीन लिया। इनमें ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस ,मायावती की बसपा और कम्युनिस्ट पार्टी शामिल हैं। लोकसभा चुनाव से पूर्व चुनाव आयोग के इस ऐलान के बाद विपक्षी दलों की एकजुट होने की कोशिशों कों यह बहुत बड़ा झटका है।

चुनाव आयोग ने किया इन दलों के प्रदर्शन का रिव्यू

चुनाव आयोग के मुताबिक इन दलों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया था लेकिन ये दल उतना रिजल्ट नहीं ला पाए इसलिए यह दर्जा वापस लिया गया है। इन्हें 2 संसदीय चुनावों और 21 राज्य विधानसभा चुनावों के पर्याप्त मौके दिए गए थे। इसके बाद इन दलों के प्रदर्शन को रिव्यू किया गया और फिर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया गया। हालांकि ये पार्टियां आगे के चुनावी चक्र में प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा वापस हासिल कर सकती हैं।

चुनाव आयोग ने जारी किया ​था नोटिस

जिन तीन दलों का इस बार राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीना है उन्हें चुनाव आयोग ने जुलाई 2019 में कारण बताओ नोटिस जारी किया था। उस नोटिस में उन तीनों दलों से पूछा गया था कि उस वर्ष लोकसभा चुनावों में उनके प्रदर्शन के बाद उनकी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा क्यों नहीं रद्द कर दिया जाना चाहिए।

नेशनल पार्टी होने के फायदे

राष्ट्रीय दल को पूरे देश में एक ही चुनाव चिह्न आवंटित हो जाता है। इस चिह्न का उपयोग कोई अन्य दल नहीं कर सकता। चुनाव में नामांकन दाखिल करने के दौरान उम्मीदवार के साथ महज एक प्रस्तावक होने पर भी मान्य किया जाता है। चुनाव आयोग मतदाता सूची संशोधन पर दो सेट मुफ्त में देता है। साथ ही उम्मीदवारों को भी मतदाता सूची मुफ्त में देता है। इसके अलावा चुनाव के कुछ समय पहले इन दलों को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर टेलीविजन और रेडियो प्रसारण के लिए समय दिए जाने की अनुमति भी मिलती है। इसका फायदा वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने में कर सकते हैं।

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