अखिलेश अखिल
मोदी सरकार ने अपने इस अंतिम पूर्ण बजट में वह सब कर दिखाया जिसकी कल्पना की जा रही थी। सरकार ने बहुत कुछ देने की बात कही है लेकिन सच है कि इस बजट में ऐसा कुछ भी नहीं जिससे देश की जनता को इतराना पड़े। युवाओं को दुदुम्भी बजाना पड़े। युवाओं को बड़ी उम्मीद थी कि कम से कम इस बजट में मोदी सरकार कोई बड़ा पहल रोजगार निर्माण को लेकर करेगी ,लेकिन युवाओं के सपने पर पानी फिर गया। वैसे सरकार का दावा है कि युवाओं के लिए वह बहुत कुछ करने जा रही है। लेकिन उसका सच बड़ा ही बेतुका है और मर्माहित करने वाला भी। युवाओं की हर योजना भविष्य के गर्त में है। कह सकते हैं कि युवाओं को कहा गया है कि पहले सरकार को वोट दो और फिर तुम्हारे बारे में हम आगे सोचेंगे। एक चतुर सरकार का यह खेल लुभा भी रहा है और भरमा भी रहा है।
लेखिन खेल देखिये ! देश भर में बीजेपी की आईटी सेल ने बड़े स्तर तरह -तरह की बनावटी खबरों के जरिये लोगों को साधना शुरू कर दिया है। आठ बजे सुबह से ही थोक के भाव में गांव -गांव तक खबरे प्रसारित की गई कि गांव के लोगो ,गरीब किसानो ,गरीब गुरबों और महिलाओं के लिए मोदी सरकार ने बजट में जो किया है ,आजाद भारत में कभी नहीं किया गया। मोदी है तो मुमकिन है के नारे गांव -गांव में लगने लगे। पांच सेर अनाज और बैंकों में सीधे नकदी पाने वाले लोग थिरकने लगे। बजट आने से पहले ही मोदी सरकार के जयकारे लगने लगे। अमृत काल का यह बजट महोत्सव आज से पहले कभी देखा नहीं गया।
सरकार का यह बजट कहने को तो बहुत कुछ कहता है लेकिन ताई सीतारमण ने अपनी सरकार के आदेश पर जैसा बजट पेश किया है उसमे चुनाव ज्यादा है बाकी आर्थिक सम्भावनाये काफी कम। वित्त मंत्री ने दो बातो पर ज्यादा फोकस किया है। पहली बात तो यह है कि वित्त मंत्री ने बजट को सप्तर्षि कहा। दूसरी बात आयकर में छूट की कहानी रची। लेकिन जो तीसरी सबसे अहम् बात हो सकती थी वह थी बेरोजगारी। सरकार ने इस पर लीपापोती कर गई। बेरोजगार तकते रह गए। वे लम्बे समय तक समझ भी नहीं पाएंगे कि सरकार ने उनके लिए क्या किया ? जब समझ पाएंगे तब तक दस राज्यों के चुनाव संपन्न हो जायेंगे। धार्मिक खेल में बहेंगे और बाध्य होकर वोट तो डालेंगे ही।
वित्त मत्री निर्मला सीतारमण ने बजट के सात आधार बताए है। इन्हें सप्तर्षि कहा गया है। 1. समावेशी विकास, 2. वंचितों को वरीयता, 3. बुनियादी ढांचे और निवेश, 4. क्षमता विस्तार 5. हरित विकास, 6. युवा शक्ति, और 7. वित्तीय क्षेत्र। वित्त मंत्री ने कहा कि अमृत काल का विजन तकनीक संचालित और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। इसके लिए सरकारी फंडिंग और वित्तीय क्षेत्र से मदद ली जाएगी। इस ‘जनभागीदारी’ के लिए ‘सबका साथ, सबका प्रयास’ अनिवार्य है।
इस पर गौर कीजिये तो पता चलता है कि हर बजट में इन्ही विषयों पर फोकस रहता है लेकिन आजतक उस पर कभी काम नहीं होता। अगर काम होता तो आज देश में कोई समस्या नहीं होती। मूल समस्या रोजगार निर्माण का है। क्या वित्त मंत्री यह बताने को तैयार हैं कि उनकी ये सप्तर्षि योजनाए कब पूरी होगी और कब रोजगार का निर्माण होगा ?इसका जबाव किसी के पास नहीं है।
देश का यूथ वित्त मंत्री सीतारमण से आज जॉब्स को बूस्टर डोज देने की उम्मीद कर रहा था, ताकि फ्यूचर ब्राइट हो जाए। उनका भी और देश का भी। लेकिन इस पर सब कुछ अभेद्य किला की तरह है। जिसे समझा नहीं जा सकता। वर्तमान में कुछ है नहीं और भविष्य के बारे में कोई दृष्टि भी नहीं। आश्चर्य की बात है कि जब वित्त मंत्री बजट को पढ़ रही थी देश के युवा टकटकी लगाए बैठे थे लेकिन कुछ हुआ नहीं। पिछली बार की तरह फाइनेंस मिनिस्टर ने पूरे बजट में रोजगार या जॉब्स शब्द का इस्तेमाल ही महज चार बार किया।वित्त मंत्री ने अपने भाषण में पीएम कौशल विकास योजना का ही 4.0 वर्जन लॉन्च करने की बात कही। दूसरी ओर युवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नौकरियों के लिए तैयार करने के लिए अलग-अलग राज्य में 30 स्किल इंडिया सेंटर खोले जाने की घोषणा की। याद रहे ये सभी भविष्य की बात है।
रोजगार के नाम पर क्या बाते कही गई जरा इस पर गौर कीजिये। मंत्री ने कहा कि पीएम कौशल विकास योजना 4.0 लॉन्च की जाएगी, जिसके जरिए ऑन जॉब ट्रेनिंग दी मिलेगी।यूनिफाइड स्किल इंडिया डिजिटल प्रोग्राम के तहत अलग-अलग राज्यों में 30 स्किल इंडिया सेंटर खोले जाएंगे।47 लाख युवाओं को सपोर्ट देने के लिए पैन इंडिया नेशनल एप्रेंटिसशिप स्कीम शुरू की जाएगी, जिसके तहत 3 साल तक स्टाइपेंड/भत्ता दिया जाएगा।
कह सकते हैं कि कुल मिलाकर बजट में जॉब्स को लेकर सिर्फ 3 ही घोषणाएं हुईं। बजट के बाद आपके जरूरत की कई चीजें सस्ती और महंगी भी हो गई हैं। हालांकि, पांच साल पहले जीएसटी आ गया था। उसके बाद से बजट में ये समझना मुश्किल होता गया कि सस्ता-महंगा क्या होगा। क्योंकि अब यहां डायरेक्ट टैक्स की बात नहीं होती। इंडायरेक्ट टैक्स में कुछ ऊंच-नीच होती है। तो उसके असर के तौर पर सस्ते-महंगे का हिसाब लगाया जाता है।
पिछले साल भी रोजगार निर्माण को लेकर कोई बड़ी बाते नहीं कही गई थी। और जो कही गई उसे भी परख सकते हैं। पिछले साल सरकार ने 5 साल में 60 लाख नौकरियों का ऐलान किया था। 31 जनवरी 2023 को जारी आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक फाइनेंशियल ईयर 2022 में बताया गया कि प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम के तहत 3 लाख रोजगार जनरेट हुए।अक्टूबर 2020 में लागू हुई आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना के तहत 16 लाख नौकरियों का ऐलान किया गया था। इसकी क्या सच्चाई है अभी तक किसी को कुछ भी पता नहीं।
तो सच क्या है / सच यही है कि देश चुनावी मोड में है। पहले दस राज्यों में चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव। देश के लोगों को मोदी जी के इकबाल पर विश्वास रखना होगा। बीजेपी को जिताना होगा और फिर उनसे कुछ मांग करनी पड़ेगी। मोदी सरकार को युवाओं पर भले ही कोई भरोसा नहीं हो लेकिन अब उसे लगने लगा है कि पांच सेर अनाज ,दो हजार की नकदी और अब टैक्स में जिसे छूट दी गई है वही लोग बीजेपी का बेरा पार करेंगे। बाकी काम के लिए कॉर्पोरेट तो उनके साथ है ही।