पटना :(वीरेंद्र कुमार झा) आरजेडी के कई नेताओं के द्वारा की जा रही बयानबाजी और उनकी क्रियाविधि से महागठबंधन सरकार के साथ ही आरजेडी की भी स्थिति असहज होती जा रही है। इसे रोकने के उद्देश्य से तेजस्वी यादव ने अपने नए अधिकार का प्रयोग करते हुए आरजेडी के सभी नेताओं को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि मैं चाहे पसंद होऊं या नहीं होऊं पार्टी के नेताओं को पार्टी के निर्देश के अनुसार ही चलना होगा। मेरे पिताजी के साथ काम करने का यह मतलब नहीं कि वे अपने मनमर्जी करें । उन्हें भी पार्टी लाइन पर ही चलना होगा। लेकिन तेजस्वी की इस चेतावनी का भी आरजेडी के कई नेताओं पर असर नहीं देखा जा रहा है। कुछ नेता तो अभी भी सरकार पर बरस रहे हैं।
राज्य के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने भले ही दिल्ली में आयोजित आरजेडी के राष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लिया लेकिन महागठबन्धन वाली सरकार को अपने निशाने पर लेना उन्होंने अभी भी नहीं छोड़ा है। कैमूर के हाता में आयोजित एक अभिनंदन समारोह में सुधाकर सिंह ने कहा कि सरकार की नजर में मंत्री चपरासी और रबर स्टांप हैं। विभागीय सचिव फाइल ला कर देता है और मंत्री डर से साइन कर देता है ताकि मास्टर साहेब (नीतीश कुमार) नाराज न हो जायें।
मंत्री जमा खां को खड़ा किया कटघरे में
चैनपुर के विधायक और नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री वाले महागठबंधन सरकार में मंत्री जमा खां को भी सुधाकर सिंह ने अपने निशाना पर लेटे हुए कहा कि खरवार जाति को आदिवासी का दर्जा मिलना चाहिए। इसके लिए उन्होंने विधानसभा तक में आवाज उठाई थी। लेकिन दो साल से मंत्री रहने के बावजूद जमा खान खरवार जाति के लोगों को आदिवासी का दर्जा नहीं दिलवा पाए हैं तो यह समझा जा सकता है कि महागठबंधन वाली सरकार में मंत्रियों की हैसियत चपरासी वाली या रबर स्टांप वाली होकर रह गई है।
सुधाकर सिंह को डेढ़ महीने में देना पड़ा था इस्तीफा
सुधाकर सिंह को नीतिश कुमार वाली महा गठबंधन सरकार ने कृषि मंत्री का दर्जा दिया था। लेकिन सरकारी पदाधिकारी और अपने ही सरकार के कामकाज पर जब उन्होंने सवाल उठाना शुरू किया तो उन्हें डेढ़ महीने के अंदर ही इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया गया। मंत्रिमंडल से बाहर हो जाने और तेजस्वी की चेतावनी के बावजूद भी सुधाकर सिंह सरकार को अपने निशाने पर लेना जारी रख रहे हैं तो इससे बिहार का राजनीतिक पारा एक बार फिर से गर्म होता नजर आ रहा है।