Homeदेशसमलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं और ना शादी मौलिक अधिकार:सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं और ना शादी मौलिक अधिकार:सुप्रीम कोर्ट

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बीरेंद्र कुमार झा

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद मंगलवार को फैसले का दिन था।सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच में सुनवाई के दौरान कई पॉजिटिव टिप्पणी की गई।इसे लेकर माना जा रहा था कि अदालत से कोई बड़ा फैसला आ सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर कोई निर्णय नहीं दिया और गेंद सरकार के पाले में डाल दिया।चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हम इसपर ना तो कानून बना सकते हैं और न ही सरकार पर इसके लिए दबाव डाल सकते हैं।हालांकि कोर्ट ने समलैंगिक शादियों को लेकर कई अहम टिप्पणियां करते हुए समर्थन जरूर जताया।

शीर्ष कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां

* अदालत में साफ कहा की शादी के अधिकार को मूल अधिकार नहीं माना जा सकता। यदि दो लोग शादी करना चाहे तो यह उनका निजी मामला है, और वह संबंध में आ सकते हैं। इसके लिए कोई दिक्कत नहीं है ,लेकिन समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए कानून बनाना सरकार का काम है। हम संसद को इसके लिए आदेश नहीं दे सकते। हां!इसके लिए कमेटी बनाकर विचार जरूर करना चाहिए कि कैसे इस वर्ग को अधिकार मिले।
* चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी के भी पास अपना साथी चुनने का अधिकार है। लेकिन हम इसके लिए कानून नहीं बना सकते ।सुप्रीम कोर्ट कानून की व्याख्या जरूर कर सकता है। इसके साथ ही सीजेआई ने यह भी कहा कि समलैंगिकता को शहरी एलिट लोगों के बीच की चीज बताना भी गलत है। उन्होंने कहा विवाह ऐसी संस्था नहीं है जो स्थिर हो, और उसमें बदलाव न हो सके।
* जस्टिस कौल ने कहा कि समलैंगिकता और विपरीत लिंग वाली शादियों को एक ही तरीके से देखना चाहिए यह मौका है जब ऐतिहासिक तौर पर हुए अन्याय और भेदभाव को खत्म करना चाहिए। सरकार को इन लोगों को अधिकार देने पर विचार करना चाहिए।
* चीफ जस्टिस ने कहा कि केंद्र सरकार को एक कमेटी बनानी चाहिए। इसका मुखिया कैबिनेट सचिव को बनाना चाहिए। यह कमेटी समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों पर विचार करे।उन्हें राशन कार्ड, पेंशन, उत्तराधिकार और बच्चे को गोद लेने के अधिकारों को देने पर बात होनी चाहिए।
* कोर्ट में अभी तक समलैंगिकों के लिए हॉटलाइन बनानी चाहिए।इस पर उन्हें उनकी मुश्किलों के लिए समाधान देने चाहिए।
* शीर्ष अदालत ने कहा यदि समलैंगिक लोग शादी करते हैं तो वे उसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पंजीकृत कर सकते हैं। उनके लिए सुरक्षित घर भी बनाए जाने चाहिए।
*शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि समलैंगिक जोड़ों की शादी को मान्यता न देना और अप्रत्यक्ष तौर पर उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
* समलैंगिक जुड़े बच्चों को गोद ले सकते हैं।
*संवैधानिक बेंच ने कहा कि यह तो संसद को ही तय करना है कि कैसे इस मामले में अधिकतर तय किए जाएं हम तो कानून नहीं बना सकते हैं। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि समलैंगिक शादियों की रक्षा करे और उनके अधिकार तय हो। यह किसी का भी अधिकार है कि वह किससे शादी करें।स्पेशल मैरिज एक्ट को भी असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।
*सीजेआई ने कहा कि उनका फैसला समलैंगिक शादी करने वाले लोगों को कोई सामाजिक या वैधानिक स्टेटस नहीं देता है। लेकिन यह जरूर तय करता है कि उन्हें भी वैसे ही अधिकार मिले जैसे अन्य लोगों को मिलते हैं।

समलैंगिक शादी को लेकर दुनिया के अन्य देशों की स्थिति

भारत में समलैंगिक शादी को लेकर लोग स्पष्ट रूप से दो भाग में बनते हुए हैं ।लोगों का एक बड़ा वर्ग इसे अनैतिक मानते है और इसे मान्यता नहीं देने के पक्षधर हैं, जबकि लोगों का कुछ वर्ग इन्हें मानवाधिकार के नाम पर वैध करने की भी बात करते हैं । दुनिया भर के देशों को लेकर बात करें तो समलैंगिक शादी को दुनिया के 34 देश में मान्यता प्राप्त है। 22 देश में इस पर कानून है। वही इसे लेकर कट्टर कानून का पालन करने वाले 10 मुस्लिम देशों में भी समलैंगिक शादी वैध है। जिन मुस्लिम देशों में समलैंगिक शादी को मान्यता प्राप्त है उसमें लेबनान, कजाकिस्तान, माली ,नाइजर ,तुर्की और इंडोनेशिया प्रमुख हैं। हालांकि इंडोनेशिया, तुर्की और नाइजर में इसे लेकर कोई कानून नहीं बना हुआ है।साथ ही यहां समान लिंग वाले जोड़ों को विषमलैंगिक जोड़ों के समान कानूनी सुरक्षा नहीं दी जाती है।

 

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