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अडानी -हिंडनबर्ग मामले की जाँच पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट का झटका ,जांच के लिए अब शीर्ष अदालत बनाएगी कमेटी

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अखिलेश अखिल   

अडानी हिंडनबर्ग मामले की जांच को लेकर शीर्ष अदालत ने आज सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को बड़ा  झटका दिया है। शीर्ष अदालत ने अडानी -हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए विशेषज्ञ के नाम सीलबंद लिफाफे में लेने से साफ़ इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारदर्शिता के लिए जरुरी है कि हम अपनी तरफ से जांच कमिटी बनाएंगे ,अदालत ने इतना कहकर आदेश को सुरक्षित रख लिया। बता दें कि पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत के  कहने पर सरकार केस की जांच के लिए एक्सपर्ट कमिटी बनाने को तैयार थी। उस समय सरकार ने एक्सपर्ट कमिटी का नाम बंद लिफ़ाफ़े में देने की पेशकश की थी।
     आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  वह केस की जांच में ट्रांसपेरेंसी चाहता है। लिहाजा केंद्र का सुझाव नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा- आपने जो नाम सौंपे हैं, वह दूसरे पक्ष को नहीं दिए गए तो पारदर्शिता की कमी होगी। इसलिए, हम अपनी तरफ से कमेटी बनाएंगे। उन्होंने कहा कि हम आदेश सुरक्षित रख रहे हैं।
       
   जांच के लिए अदालत में चार याचिकाएं

   इस मामले में अभी तक 4 जनहित याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। एडवोकेट एम एल शर्मा, विशाल तिवारी, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सोशल वर्कर होने का दावा करने वाले मुकेश कुमार ने ये याचिकाएं दायर की हैं। इस मामले में पहली सुनवाई चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला ने शुक्रवार (10 फरवरी) को की थी। दूसरी सुनवाई सोमवार (13 फरवरी) को हुई।
                   मनोहर लाल शर्मा ने याचिका में सेबी और केंद्रीय गृह मंत्रालय को हिंडनबर्ग रिसर्च के फाउंडर नाथन एंडरसन और भारत में उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच करने और एफआईआर करने के लिए निर्देश देने की मांग की है। विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाली एक कमेटी बनाकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की मांग की। तिवारी ने अपनी याचिका में लोगों के उन हालातों के बारे में बताया जब शेयर प्राइस नीचे गिर जाते हैं। जया ठाकुर ने मामले में भारतीय जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक की भूमिका पर संदेह जताया है। उन्‍होंने एलआईसी  और एसबीआई  की अडाणी एंटरप्राइजेज में भारी मात्रा में सार्वजनिक धन के निवेश की भूमिका की जांच की मांग की है।जबकि मुकेश कुमार ने अपनी याचिका में सेबी ,ईडी , आयकर विभाग, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस से जांच के निर्देश देने की मांग की है।

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से निवेशकों को नुकसान

याचिकाओं में दावा किया गया है कि हिंडनबर्ग ने शेयरों को शॉर्ट सेल किया जिससे ‘निवेशकों को भारी नुकसान’ हुआ। इसमें ये भी कहा गया है कि रिपोर्ट ने देश की छवि को धूमिल किया है। यह अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। इसके साथ ही रिपोर्ट पर मीडिया प्रचार ने बाजारों को प्रभावित किया और हिंडनबर्ग के फाउंडर नाथन एंडरसन भी भारतीय नियामक सेबी को अपने दावों का प्रमाण देने में विफल रहे।

       सरकारी जांच पर आशंका की सम्भावना थी 

माना जा रहा है कि आज सुप्रीम कोर्ट ने जो खुद ही जांच कमिटी बनाने की बात कही है उसी सब कुछ साफ़ हो जाएगा। अगर सरकार अपनी कमिटी के जरिये जांच कराती तो संभव था कि निष्पक्ष जांच नहीं होती और फिर जांच  पर कई सवाल भी उठते। इसकी वजह भी है। दरअसल यह मामला सिर्फ शेयर बाजार में एक कंपनी के कथित तौर पर गड़बड़ी करके पैसे कमाने का नहीं है, बल्क कई  तरह से आम नागरिकों को नुकसान पहुंचाने का भी है। यह तकनीकी जांच का भी मामला है क्योंकि आरोप धन शोधन का भी लग है। जो सरकारी गुप्त  कमेटी जांच करती तो वह निवेशकों के हितों के उपाय ही सुझाती।लेकिन काला धन शेयर बाजार में निवेश करने के आरोपों की जांच कौन करेगा? अगर भारत से काला धन दुनिया के टैक्स हैवन देशों में गया है और वहां से निवेश या कर्ज की शक्ल में एक कंपनी के पास आया है या शेयर बाजार में लगा है तो उसकी जांच यह सरकारी कमेटी कैसे करती ?
      उसी तरह से एक बड़ा सवाल यह है कि भारतीय स्टेट बैंक और जीवन बीमा निगम ने कैसे उस कंपनी में इतना बड़ा निवेश किया और कंपनी की कथित गड़बड़ियों के खुलासे के बाद इन दोनों सार्वजनिक उपक्रमों को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा? आखिर इन कंपनियों का पैसा भी तो आम लोगों का पैसा है! क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि सरकार जो कमेटी बनाती  या जिन लोगों के नाम सुझाती वे लोग वस्तुनिष्ठ तरीके से इन सारे मसलों की जांच कर पाते ? लेकिन अब सब कुछ पारदर्शी हो सकता है। अगर जांच सही दिशा में चली जाए तो देश के भीतर एक जानकारी सामने आ सकती है। 

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