कोलकाता (बीरेंद्र कुमार): सुभाष चन्द्र बोस के रिश्तेदार चंद्र बोस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े तथ्यों को विकृत किए जाने का आरोप लगाते हुए केंद्र सरकार से उचित कार्यवाही की मांग को लेकर कोलकाता हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर किया है। उनका आरोप है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े साहित्य और फिल्मों में सुभाष चंद्र बोस के जुड़े हुए तथ्यों को विकृत करते हुए प्रदर्शित किया जाता है। याचिका में फिल्मों में दिखाई जाने वाली घटना, किताबों व अन्य प्रकाशनों में दिखाए गए तथ्यों की ऐतिहासिक प्रमाणिकता की सावधानीपूर्वक पुष्टि किए जाने की मांग की है।
2016-17 में मोदी सरकार ने नेता जी से जुड़ी कई फाइलों को किया था सार्वजनिक
याचिकाकर्ता चंद्र बोस ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े तथ्यों पर गंभीर चिंता प्रकट की है। उनका कहना है कि 2016 तक हम सभी भ्रमित थे कि नेताजी कब शहीद हुए थे। लेकिन 2016-17 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने सुभाष चंद्र बोस से जुड़े कई फाइलों को सार्वजनिक कर दिया था। इन फाइलों से पता चलता है कि 18 अगस्त 1945 में ही नेता जी ने अपना बलिदान दे दिया था। लेकिन कुछ लोग आज भी नेता जी को लेकर कारोबार कर रहे हैं। ऐसी किताबें लिखी जा रही है, जिसमें उन्हें गुमनामी बाबा बताया जा रहा है और कहा जा रहा है कि वे 35 वर्षों तक छिपे रहे।
नेता जी से जुड़े तथ्यों को किया जा रहा विकृत
सुभाष चंद्र से जुड़े हुए तथ्यों को विकृत करते हुए फिल्में भी बन रही हैं। ऐसे में एक और जहां नेता जी को सम्मान देते हुए इंडिया गेट पर उनकी मूर्ति स्थापित की जा रही है और लाल किला में नेताजी पर म्यूजियम बनाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर नेताजी को लेकर विकृत सामग्री भी बाजार में पहुंचाई जा रही है। हम चाहते हैं कि सरकार एक फाइनल स्टेटमेंट दे कि नेताजी का निधन 1945 में 18 अगस्त को हो गया था। चंद्र बोस ने कहा कि जापान के रेकोजी मंदिर में रखे नेताजी की अस्थियों को भी भारत लाने का प्रयास किया जाए। नेताजी हमेशा चाहते थे कि वे आजाद भारत में ही अपने देश वापस आएं, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका तो कम से कम उनकी अस्थियों को ही भारत लाया जाए। भारत में उनका हिंदू रीति रिवाज से श्राद्ध किया जाएगा।