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होलिका, ढुंढी, पूतना और कामदेव… वे पौराणिक कथाएं जिनके क्लाइमैक्स से हुई होली की शुरुआत

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होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं. इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की. विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार- प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था. ब्रह्मदेव की तपस्या करके उसने ऐसा वरदान मांग लिया, जिससे उसकी स्वाभाविक मृत्यु तो असंभव सी हो गई और वह लगभग अमरता पाने के बराबर हो गया. अब उसके अत्याचार बढ़े. उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी.

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं. इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की. विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार- प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था. ब्रह्मदेव की तपस्या करके उसने ऐसा वरदान मांग लिया, जिससे उसकी स्वाभाविक मृत्यु तो असंभव सी हो गई और वह लगभग अमरता पाने के बराबर हो गया. अब उसके अत्याचार बढ़े. उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी.

राक्षसी ढुंडी के अंत की कथा
इसी तरह की एक कहानी रघुवंश के राजा रघु से भी जुड़ी हुई है. उनके राज्य में ढुंडी नाम की एक राक्षसी थी, जिसे भगवान शिव से वरदान मिला था. ढुंडी ने घमंड में आकर पागलों और बच्चों से बचाव का वरदान नहीं मांगा था. उसने भोलेनाथ से यह वरदान मांगा था कि उसको देवता, दैत्य और शस्त्रों से कोई हानि न पहुंचे. ऐसी बाते सुनकर भगवान शिव तथास्तु कहकर वहां अन्तर्ध्यान हो गये.

अब ढुंडी ने उत्पात मचाना शुरू किया. राक्षसी के प्रकोप से परेशान लोग राजा रघु के पास गए तो उन्होंने राक्षसी से मुक्ति के लिए वशिष्ठ मुनि से मदद मांगी. महर्षि वशिष्ठ को वरदान की बात पता थी, तब उन्होंने कहा कि, खेलते हुए बच्चों का शोर-गुल या हुडदंग ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा. उनकी सलाह मानकर फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सभी बच्चे एकत्रित होकर नाचने-गाने का कार्यक्रम शुरू किया.

फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को राज्य भर बच्चों को एकत्रित करके गोबर के कंडे का ढेर तैयार कराया गया. साथ में वहां पर सूखे पत्ते, पेड़ों की सूखी टहनियों से एक विशाल ढेर बनवाया गया. इसी के आसपास एकत्रित होकर बच्चों ने हुड़दंग मचाना शुरू किया. इस दौरान बच्चों का झुंड देखकर राक्षसी वहां पहुंची और गांव के लोगों द्वारा बनाए गए ढेर में छिप गई. तभी मंत्र से अग्नि जला दी गई और राक्षसी उसमें राख बन गई. होलिका दहन के दिन जो गोबर के कंडे की माला बनाई जाती हैं, उन्हें ढुंढेरी या गुलरियां ही कहा जाता है.

बच्चों ने अगले दिन इसकी राख उड़ाकर-उड़ाकर होली खेली और तबसे इस पर्व का नाम होली ही हो गया.

श्रीकृष्ण का बचपन और पूतना वध की कथा

ठीक ऐसी ही मिलती-जुलती कथा श्रीकृष्ण के बचपन की भी है. जब कंस को पता चला कि उसका संहारक जन्म ले चुका है और मथुरा से दूर गोकुल में पल रहा है, तब उसने अपनी एक धाय पूतना जो कि राक्षसी थी, उसे गोकुल भेजा. पूतना से कहा कि दो रात पहले से लेकर बीते छह महीने के जो भी नवजात शिशु हैं, उन्हें मार डालो.

पूतना खिलौने बेचने वाली का वेष बनाकर गोकुल पहुंची और एक-एक सभी नवजातों को अपना दूध पिलाकर मारने लगी. गोकुल में कोहराम मच गया. इस तरह पूतना कृष्ण के घर भी पहुंची और चुपके से नवजात कृष्ण को उठा लाई और दूध पिलाने लगी, लेकिन कृष्ण दूध के बजाय उसके प्राण पी गए. पूतना मारी गई. जब वह मरी तो उसका आकार भयंकर हो गया. लोगों ने विशालकाय पूतना के शरीर पर नन्हें कृष्ण को खेलते देखा.

पूतना के मरने पर गोकुल के लोगों ने खुशी मनाई और उसके शरीर को जलाकर भस्म कर दिया. चूंकि कृष्ण को उसने क्षण भर के लिए ही सही, अपना दूध पिलाया था, इसलिए वह पूतना राक्षसी नहीं, बल्कि पूतना मां बन गई.

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