HomeदेशCover Story: कट्टरपंथ की दीवार ढहा सकती हैं मारवा जैसी लड़कियां

Cover Story: कट्टरपंथ की दीवार ढहा सकती हैं मारवा जैसी लड़कियां

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ये कहानी काबुल की है। हाथों में विरोध का पोस्टर लिए तालिबानी फरमान से अकेले लोहा ले रही ये है 18 साल की अफगानी लड़की मारवा।दरअसल तालिबान के हालिया फरमान के मुताबिक अब अफगानिस्तान में महिलाएं कॉलेज और यूनिवर्सिटी नहीं जा सकतीं।

मारवा कुछ महीने बाद विश्वविद्यालय जाने वाली थी, वो ऐसा करने वाली अपने अफगान परिवार की पहली महिला होती, लेकिन अब वो अपने भाई को उसके बिना यूनिवर्सिटी जाते हुए देखेगी. तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान में महिलाओं को अब पढ़ने के लिए विश्वविद्यालय जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. यहां पिछले एक साल से लगातार उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई है. मारवा इस फरमान से आहत हुई वो कहती हैं अगर उन्होंने महिलाओं का सिर कलम करने का आदेश दिया होता, तो वो भी इस प्रतिबंध से बेहतर होता. अपना दर्द बयां कर वो कहती है कि अगर हम इतने बदकिस्मत हैं, तो काश हम पैदा ही नहीं होते. मुझे दुनिया में अपने अस्तित्व के लिए खेद है. हमारे साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है. जानवर अपने आप कहीं भी जा सकते हैं, लेकिन हम लड़कियों को अपने घरों से बाहर निकलने का भी अधिकार नहीं है।

हालांकि मारवा डरी नहीं बल्कि डट गई तालिबानी फरमान के खिलाफ। हाथ में एक पोस्टर लिया जिस पर लिखा था ‘इकरा’ यानि पढ़ाई। और इस पोस्टर को लिए वो अकेली विरोध जताती हुई खड़ी हो गई काबुल यूनिवर्सिटी के सामने। उनकी बहन ने इस मुखालिफत का वीडियो बना लिया जिससे चारों ओर मारवा के इस एकल प्रतिरोध की चर्चा शुरु हो गई और मारवा सुर्खियों में आ गई।

अब वो कहती है कि मैंने अपने जीवन में पहली बार इतना प्राउड, मजबूत और पावरफूल महसूस किया है क्योंकि मैं तालीबान के खिलाफ खड़ी थी और उस अधिकार की मांग कर रही थी जो ईश्वर ने हमें दिया है.

मारवा ये भी कहती है जब मेरी अन्य बहनें देखती हैं कि एक अकेली लड़की तालिबान के खिलाफ खड़ी हो गई है, तो इससे उन्हें तालिबान के खिलाफ आवाज उठाने में मदद मिलेगी. वो कहती है कि मैं उन्हें एक अकेली अफगान लड़की की ताकत दिखाना चाहती थी, और यह भी कि एक व्यक्ति भी उत्पीड़न के खिलाफ खड़ा हो सकता है.सच भी यही है।

कट्टरपंथ सिर्फ़ काबुल में नहीं है, उसके खिलाफ अन्याय के खिलाफ असमानता के खिलाफ उत्पीड़न के खिलाफ खड़ा तो होना ही होगा। महिलाओं को एकजुट होना होगा संगठित होना होगा। या फिर अकेले ही अपनी अपनी जगहों पर कट्टरता के खिलाफ लड़ना ही पड़ेगा।आज मारवा की हिम्मत हौसला और साहस हमें यही सिखाता है।मारवा की कहानी ऐसी है जो आपको हमें और सारी उन अधिकारों से वंचित महिलाओं को देखनी सोचनी और समझनी चाहिए।

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