अखिलेश अखिल
दिल्ली में केजरीवाल की सरकार है। निगम चुनाव में भी आप की भारी जीत हुई लेकिन सरकार से लेकर निगम पर आज भी केंद्र की पकड़ है। कब्जा भी कह सकते हैं। दिल्ली के एलजी केजरीवाल की बात सुनते नहीं और केजरीवाल की आवाज केंद्र मानती नहीं। पिछले साल ही दिल्ली की सरकार सुप्रीम कोर्ट गई ,यह शिकायत करने कि हम क्या करें ,सरकार की ताकत है भी या नहीं !
एलजी और दिल्ली सरकार की ताकत का अदालत ने व्याख्या की। लगा सब कुछ नार्मल हो जाएगा। लेकिन खेल वही है। एलजी अपने रौब में हैं तो दिल्ली के मुखिया अपने रौ में।
दिल्ली विधान सभा का सत्र चल रहा है। तीन दिनों का सत्र है। कल तक चलेगा। कौन चाहता है कि सत्र चले और छीछालेदर हो। न सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष। जनता को तो कोई मतलब रह नहीं गया। राजनीति के ये खिलाड़ी आपस में ही भड़ते हैं और फिर एक हो जाते हैं। बेहाल ,बदहाल ,फटेहाल जनता बेकारी और महंगाई से ही परेशान है।
सदन पहुंचे केजरीवाल साहब गुस्से में दिखे। मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि पूरे देश में सवाल उठ रहा है कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार की चलनी चाहिए या एक व्यक्ति विशेष की चलनी चाहिए। समय बहुत बलवान होता है कोई भी चीज परमानेंट नहीं होती है। बहुत सरकार और चली गई। हो सकता है कि केंद्र में हमारी सरकार हो। दिल्ली में एलजी हमारा हो। उस दौरान दिल्ली में भाजपा या कांग्रेस की सरकार हो सकती है। मगर हमारा एलजी ऐसे काम नहीं करेगा। हम चुनी हुई सरकार की इज्जत करते है। दिल्ली में 2 करोड़ लोग हैं।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि इसी कड़ी में टीचर को भेजा जा रहा था। हम 30 टीचर को विदेश भेजना चाहते हैं। लेकिन एलजी जाने नहीं देते। जब हम लाइसेंस बनाने जाते हैं तो बार-बार आपत्ति लगा कर भ्रष्टाचार करते हैं। गरीबों के बच्चों को अच्छी शिक्षा देने से क्यों रोका जा रहा है। भाजपा और दूसरे पार्टी के नेता के बच्चे विदेश जाकर अच्छी शिक्षा लेते हैं। कोई इसका विरोध नहीं करता। हम अपने बच्चों को विदेश की शिक्षा के लिए भेजेंगे।
केजरीवाल साहब उबल पड़े। उपराज्यपाल पर फिर बोलने काज। कहा बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना। एलजी पर यह प्रहार था। दिल्ली वालों के टैक्स के पैसे से भेजेंगे। कौन एलजी जो हमारे सिर पर आ कर बैठ गया। दिल्ली सरकार के कार्यों में अड़ंगा लगा रहे हैं, जबकि उनका कोई अधिकार नहीं है। हम तय करेंगे हमारे बच्चे कहां पढ़ेंगे। एलजी के पास पावर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि तीन मुद्दों के अलावा उनके पास पावर नही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपराज्यपाल व्यक्तिगत तौर पर कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है। वह सेवा कानून व्यवस्था और पुलिस से संबंधित मामलों में निर्णय ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दो बार लिखा है कि एलजी के पास पावर नही हैं।
मगर उपराज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मान रहे हैं और वे लगातार दिल्ली सरकार के काम में अड़ंगा लगा रहे हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल राय दी थी। मैं पढ़ने के दौरान टॉपर रहा था, कभी मेरे टीचरों ने मेरा होमवर्क चेक नहीं किया और उपराज्यपाल हमारी फाइल चेक कर रहे हैं जैसे वह मेरे हेड मास्टर हैं। संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति कैसे बोल सकता है कि कोर्ट का ऑर्डर नहीं मानेंगे। एमसीडी में पार्षद मनोनीत करने के मामले में भी आपत्ति जताई है। मैं मुख्यमंत्री हूं। मैने सब कुछ देख लिया। मैं पहली से 12वीं तक प्रथम आया। मेरे टीचर ने भी कभी ऐसे जांच नहीं कि जैसे एलजी कर रहा हैं। किस धारा में कहा गया है कि कॉस्ट एनालिसिस करवाएंगे। हाईकोर्ट का ऑर्डर लेकर गया था। एलजी सीधे किसी भी विषय पर आदेश दे रहे हैं। केजरीवाल बोलते जा रहे थे और सदन कभी ऊंघ रहा था तो कभी ठहाका लगा रहा था। लोकतंत्र का यह खेल गजब का है।
सचमुच जब चुनी हुई किसी काम की नहीं तब दिल्ली में चुनाव की जरूरत क्यों ? जब दिल्ली में विधान सभा की जरूरत नहीं तो फिर सांसदों की जरूरत क्यों ? लेकिन कोई है जो इस पर बोले !