पूरे देश भर में आज गणतंत्र दिवस की धूम रही।मुख्य कार्यक्रम राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक कर्तव्य पथ पर आयोजित हुए। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस अवसर पर राष्ट्रध्वज का झंडोत्तोलन किया और परेड की सलामी ली। इस अवसर पर उनके साथ पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्य अतिथि के तौर पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो समेत कई सम्मानित लोगों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस मौके पर 16 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेश और केंद्र सरकार के 10 विभागों की झांकियां भी निकाली गई।एक से बढ़कर एक निकली गई विभिन्न झांकियां ने सभी का मन मोह लिया।संविधान और इससे संविधान के जनक भीमराव अंबेडकर की आती आवाज वाली झांकी देख पीएम मोदी अपनी खुशी रोक नहीं पाए और हाथ हिला कर उस झांकी का स्वागत किया।संविधान की झांकी से मोदी सरकार ने विपक्ष को भी दो टूक संदेश देने की कोशिश की।
पिछले कुछ महीनो से विपक्ष खासकर कांग्रेस पार्टी संविधान को लेकर मोदी सरकार पर खूब हमलावर रही है ।2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस और विपक्षी दलों ने जनता के बीच जाकर इस बात का जमकर प्रचार किया कि अगर तीसरी बार मोदी सरकार जीत गई तो संविधान को ही खत्म कर देगी।एक देश एक चुनाव समेत कई मुद्दों को लेकर विपक्ष ने मोदी सरकार को खूब घेरा था और मोदी सरकार चुनाव में इस नैरेटिभ की शिकार भी हो गई थी।जिन नैरेटिभ की वजह से 400 पार का नारा देने वाली बीजेपी 240 सीट पर ही सिमट गई,उसमें इस नैरेटिभ की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। चुनाव परिणाम के बाद भी राहुल गांधी और अखिलेश यादव समेत कई विपक्षी नेताओं ने हाथ में संविधान की कॉपी लेकर पद और गोपनीयता की शपथ लेते हुए नरेंद्र मोदी की सरकार पर संविधान को समाप्त करने का आरोप लगाते हुए जमकर हमला बोला था।
विपक्ष के इस नैरेटिभ को तोड़ने के लिए ही इस बार गणतंत्र दिवस पर सरकार ने संविधान की झांकी से विपक्ष पर कड़ा प्रहार किया। इस झांकी के माध्यम से सरकार ने विपक्ष को यह संदेश दिया कि वह केवल आलोचना तक सीमित न रहे,बल्कि देश के विकास और संविधान के मूल्य की रक्षा के लिए एक जिम्मेदार भूमिका भी निभाए। सामने के हिस्से में अशोक चक्र और पिछले हिस्से में भारत का संविधान रखा यह झांकी गणतंत्र दिवस परेड में कर्तव्य पथ पर केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के द्वारा निकाली गई थी।सीपीडब्ल्यूडी के मुताबिक अशोक चक्र दर्शाता है कि चलते रहना ही जीवन है और इसके ठहरने का मतलब अंत है। इस झांकी में से बाबा साहब अंबेडकर की 17 दिसंबर 1946 को संविधान के लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पर बहस के दौरान कही गई उन बातों को दुहराया गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि जहां तक अंतिम लक्ष्य का सवाल है, मुझे लगता है कि हम में से किसी को भी इसे लेकर कोई आशंका नहीं होनी चाहिए, इसे लेकर हमें से किसी को कोई संदेह भी नहीं होना चाहिए।हमारी समस्या अंतिम भविष्य को लेकर नहीं है, हमारी समस्या यह है कि आज जो विविधता भरा समूह हमारे पास है,वह एक सामान्य निर्णय कैसे ले और उसे लेकर कैसे सहयोगात्मक मार्ग पर उसे लेकर आगे बढ़े जो हमें एकता की ओर ले जाता है। हमारी समस्या अंतिम लक्ष्य को लेकर नहीं है, हमारी समस्या शुरुआत को लेकर है।
स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि हमने 1947 में स्वाधीनता प्राप्त कर ली थी,लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता के कई अवशेष लंबे समय तक विद्यमान रहे ।हाल के दौर में उस मानसिकता को बदलने के ठोस प्रयास हमें दिखाई दे रहे हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह भी कहा कि स्वाधीनता के समय देश के बड़े हिस्से में घोर गरीबी और भुखमरी की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन हमारा आत्मविश्वास कभी डिगा नहीं। हमने ऐसी परिस्थितियों बनाने का संकल्प लिया जिनमें सभी को विकास करने का अवसर मिल सके ।