अखिलेश अखिल
देश की राजनीति लम्बे समय से दलबदलुओं के सहारे चलती रही है। ऊपर से देखने में यह नेताओं में चारित्रिक दोष के रूप में देखा जा सकता है लेकिन सच यही नहीं है। असली दोष तो उस राजनीति की होती है जिसका कोई चरित्र ही नहीं होता ,जिसके कोई रंग नहीं होते। जिसकी कोई जाति नहीं होती और न ही जिसका कोई न पाना होता है और न ही पराया। आजादी से पहले भी ऐसे लोगों की भरमार थी। तब एक तरफ आजादी की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी थी तो दूसरी तरफ अंग्रजों की भलाई चाहने वाले कुछ लोग और संगठन थे। आजादी के बाद पार्टियां बनी। चुनाव की स्थितियां आई और फिर राजनीति की पैतरेबाजी शुरू हो गई। कल तक जो लोग जनता के लिए मर मिटने की कसम खा रहे थे ,अचानक उनके मन बदलते गए और फिर जो होता गया उसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
आज का सच ये है कि देश की राजनीति दलबदलुओं द्वारा ही संचालित होती है। ये दलबदलू किसी के नहीं होते। इनकी किसी भी व्यक्ति में न आस्था होती है और न ही किसी पार्टी के प्रति समर्पण। इनकी आस्था किसी गठबंधन के साथ भी नहीं होती। इनको हमेशा लाभ की उम्मीद रहती है। इनकी राजनीति इस आशा के साथ आगे बढ़ती है कि उन्हें कुछ मिलता रहे। जीत गए तो मलाई खाएंगे और हार गए तो भी मलाई की जगह पर रहेंगे। लेकिन जब उस पर रोक की बारी आती है तो ये बिफर जाते हैं और फिर दल बदलने में कोई गुरेज नहीं करते। इस खेल में कोई किसी को दोषी नहीं ठहरा सकता। पहले कांग्रेस ने यह खेल शुरू किया और बाद में बीजेपी ने कांग्रेस को इस खेल में पीछे छोड़ दिया। आज का सच ये है कि दलबदलू वाली राजनीति करने में बीजेपी सबसे अब्बल है। बीजेपी की पूरी राजनीति आज दलबदलू पर के सहरे ही चलती है और दलबदलुओं ने ही बीजेपी को ऊंचाई पर पहुँचाया भी है।
लेकिन सवाल यह है कि कर्नाटक चुनाव के दौरान अचानक दलबदलू वाली राजनीति क्यों सामने आ गई ? इसकी वजह है। पिछले दिनों कर्णाटक में एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा की कांग्रेस दलबदलू नेताओं के सहारे कर्नाटक का चुनाव लड़ रही है। शाह का यह बयान काफी गंभीर है। इस पर मंथन करने की जरूरत है। बता दें कि शाह का यह बयान तब आया है जब बीजेपी के दो कद्दावर नेता शेट्टार और सावदी बीजेपी छोड़कर कांग्रेस से जा मिले हैं। कांग्रेस ने इन्हे टिकट भी दिया है। लेकिन बड़ा सच तो यही है कि कांग्रेस बीजेपी से आये इन दोनों नेताओं के सहारे चुनाव नहीं लड़ रही है। लेकिन बीजेपी तो ऐसे नेताओं के सहारे ही चुनाव लड़ती रही है और जीत भी हासिल करती रही है। क्या बीजेपी को अपने गिरेवां पर देखना नहीं चाहिए।
दूसरा सच ये है कि कई राज्यों में बीजेपी की राजनीति उन लोगों के सहारे ही चल रही है जो कभी कांग्रेस में थे। बीजेपी को अपना बयान देने से पहले कुछ सोंचना भी चाहिए था। कहा जा रहा है कि शेट्टार और सावदी के जाने से बीजेपी परेशान हो गई है। कांग्रेस में आये ये दोनों नेता लिंगायत समाज से आते हैं जिनकी पकड़ लिंगायतों में काफी मजबूत है। बीजेपी की यही परेशानी है।
लेकिन जब बात निकल ही गई है तो अब यह जानने की जरूरत है कि कर्नाटक में सबसे ज्यादा दलबदलुओं की राजनीति कौन कर रही है ?अमित शाह के इस बयान के बीच यह जानना जरूरी है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में किस पार्टी में कितने दलबदलू हैं और ये दलबदलू भाजपा, कांग्रेस, जेडीएस जैसे दलों के लिए महत्वपूर्ण क्यों हैं?
‘दक्षिण का द्वार’ कहे जाने वाले कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के ऐलान 29 मई 2023 को किया गया था। मुख्य चुनाव आयुक्त ने चुनावी तारीख का ऐलान करते हुए कहा कि 224 विधानसभा सीट वाले कर्नाटक में एक चरण में 10 मई को चुनाव कराया जाएगा। वोटों की गिनती 13 मई को होगी। राज्य में चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही सियासी उठापटक होने शुरू हो गए थे। कई नेताओं ने टिकट काटे जाने की आशंका के बीच पार्टी बदली। कई इधर से उधर हुए। कई के टिकट कटे, कई किनारा किए गए।
कर्नाटक में सत्ता विरोधी माहौल को समाप्त करने के भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन में सबसे ज्यादा मशक्कत की। भाजपा ने सबसे अंत में प्रत्याशियों के ऐलान किए। पार्टी ने राज्य के 52 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए। भाजपा ने पार्टी के संस्थापकों में से एक रहे पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार व पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे लक्ष्मण सावदी का भी टिकट काट दिया।
एंटी इनकंबेंसी के बीच विधायकों का टिकट काटे जाने को लेकर भाजपा की ओर से पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार, पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी, के. अंगारा, आर शंकर, एमपी कुमार स्वामी सहित कई एमएलसी ने पार्टी छोड़ दी। इनमें से कई नेता कांग्रेस में शामिल हो गए। कुछ जेडीएस में चले गए। शेट्टार को कांग्रेस ने हुबली सेंट्रल विधानसभा से टिकट दिया है। शेट्टार के अलावा बीजेपी से आए लक्ष्मण सवादी को भी कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है।
बता दें कि कर्नाटक चुनाव के बीच दलबदल करने वाले नेताओं में जगदीश शेट्टार सबसे बड़ा नाम है। जगदीश शेट्टार 6 बार विधायक, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री सहित कई बार मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। इतने लंबे राजनीतिक जीवन में उन पर कभी किसी तरह के आरोप नहीं लगे हैं। इसलिए उनकी छवि साफ मानी जाती है। जगदीश शेट्टार की गिनती लिंगायत समुदाय के दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप में होती है। पहले नंबर पर बीएस येदियुरप्पा हैं।
अब ज़रा इस पहलु को समझिये। कर्नाटक में विधानसभा की 224 सीटें है। सत्तारूढ़ भाजपा, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और जेडीएस के बीच मुख्य मुकाबला है। इन तीनों दलों में दलबदलूओं की बात करें तो सबसे ज्यादा जेडीएस ने दलबदलूओं पर भरोसा जताया है। जेडीएस ने सबसे अधिक 28 दलबदलूओं को टिकट दिया है। इनमें कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टी से आए नेता शामिल हैं। भाजपा ने 17 तो कांग्रेस ने 6 दलबदलूओं को टिकट दिया है जबकि जेडीएस के दलबदलूओं पर सबसे ज्यादा भरोसा बीजेपी ने जताया है।
भाजपा ने दूसरी पार्टी से आए 17 नेताओं को टिकट दिया है। तीसरे नंबर पर कांग्रेस हैं। कांग्रेस ने दूसरी पार्टी से आए 6 नेताओं को टिकट दिया है। जिसमें जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सवादी सहित अन्य हैं।यह भी जान लीजिये कि चुनाव प्रचार के बीच कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा था कि बीजेपी से आने के लिए 150 लोग तैयार हैं, लेकिन हमारे पास जगह ही नहीं है, इसलिए सबको नहीं लिया जा रहा है।
लगभग हर चुनाव में कई नेता इधर से उधर जाते हैं। कर्नाटक इससे अछूता नहीं है। राजनीति के जानकारों की मानें तो दलबदलू कई बार पार्टी की मजबूरी तो कई बार जीत की गारंटी भी बनते हैं। चुनाव से पहले दलबदल कर आए नेता बयानों के जरिए माहौल बनाने में माहिर होते है। इन नेताओं को मीडिया भी खूब तवज्जो देती है।
दरअसल ,दलबदलु नेताओं के पास सामने वाली पार्टी की रणनीति की जानकारी रहती है। जिसका फायदा संबंधित पार्टियों को मिलता है। साथ ही कार्यकर्ताओं और जातीय समीकरण के सहारे दलबदलू चुनाव जीतने में सफल हो जाते हैं। ऐसे में कर्नाटक में दलबदलू नेता सभी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण हो चुके हैं।कई बार किसी संबंधित क्षेत्र में मजबूत उम्मीदवारों की कमी होने पर राजनीतिक दल दूसरी पार्टी के नेताओं को तोड़कर अपने पाले में कर लेती है। देश के चुनावी इतिहास को देंखे तो इस मामले में भाजपा बड़ी माहिर है। बीजेपी ने कांग्रेस सहित अन्य दलों के कई बड़े नेताओं को तोड़कर कई राज्यों में सत्ता हासिल की है।