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प्रकृति भारतम्

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उदय भारतम् पार्टी का मूल उद्देश्य भारत के प्राचीन गौरव से न सिर्फ देश और विदेश में बसे हर भारतीयों को इससे अवगत कराकर गौरवान्वित करना है, बल्कि दुनिया के समस्त जन को भारत की जनोपयोगी नीति,सिद्धांतों और आदर्शों की जानकारी देकर विश्व समुदाय को सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चित दुःखभाग भवेत्।।यानि सभी सुखी हों,सभी रोगमुक्त हों। सभी अच्छा देखें और किसी को कोई कष्ट ना हो। की भावना से ओत-प्रोत करना है। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उदय भारतम् पार्टी अपने 10 सूत्रीय वाक्यों के साथ पूरे जोर- शोर से राजनीति से लेकर मीडिया और अन्य सामाजिक गतिविधियों में संलग्न है।

उदय भारतम् पार्टी के 10 सूत्र वाक्यों में एक प्रमुख सूत्र वाक्य है ‘ प्रकृति भारतम् ‘।उदय भारतम् पार्टी के अनुसार ‘प्रकृति भारतम्’ भारत की समृद्ध प्राकृतिक विरासत और जैव विविधता का सार का प्रतीक है।राजसी हिमालय से लेकर विशाल थार रेगिस्तान तक, और हरे-भरे पश्चिमी घाट से लेकर गंगा के उपजाऊ मैदान तक, भारत पारिस्थितिकी तंत्र और वन्य जीवन की एक विविध टेपेस्ट्री का दावा करता है। प्रकृति भारतम् मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के विचार को समाहित करता है, जो भारतीयों के अपने पर्यावरण के साथ गहरे संबंध को दर्शाता है। यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए भारत के प्राकृतिक खजाने को संरक्षित करने के लिए संरक्षण और टिकाऊ प्रथाओं के महत्व पर जोर देता है। वन्यजीव अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और पर्यावरण जैसी पहलों के माध्यम से जागरूकता अभियान, ग्रह के पारिस्थितिक संतुलन की रक्षा और पोषण के लिए प्रयास किए जाते हैं। प्राकृतिक दुनिया का सम्मान और पोषण करके, भारत जैव विविधता के वैश्विक संरक्षक और पर्यावरण प्रबंधन के एक प्रतीक के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रखने का प्रयास करता है।

उदय भारतम् पार्टी की ‘ प्रकृति भारतम्’ सूत्र वाक्य की महत्ता कोरोना के वक्त को याद कर समझा जा सकता है। कोरोना के फेज 2 के समय पूरे देश भर में सिर्फ और सिर्फ ऑक्सीजन की समय पर आपूर्ति नहीं हो पाने की वजह से कितने ही लोगों ने दम तोड़ दिये थे।साथ ही यह घटना उन क्षेत्रों में ज्यादा घटी थी, जहां पेड़ पौधे पर्याप्त मात्रा में नहीं थे।

पीपल और वट जैसे दिन के 24 घंटे में लगभग 20 घंटे तक वातावरण में लगातार ऑक्सीजन छोड़ने और वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसों को अवशोषित करने वाले बड़े वृक्षों को छोड़ भी दें तो घरों में लगाए जाने वाले छोटे सजावटी पौधे भी वातावरण में प्राण वायु देने और वातावरण से जहरीली गैसों को अवशोषित करने में कम नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर एरेका पाम वह पौधा है जो वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को लेता है और फिर ऑक्सीजन छोड़ता है। यह पौधा आसपास हवा में मौजूद खतरनाक कार्बन डाइऑक्साइड,फॉर्मेल्डिहाइड और जाइलीन को अवशोषित कर लेता है।इसी तरह स्‍नेक प्‍लांट पौधे की खासियत यह है कि यह दिन के 24 घंटे में 20 घंटे से भी ज्यादा समय तक ऑक्‍सीजन उत्सर्जन करता है।साथ ही यह पौधा कार्बन डाइऑक्साइड, बेंजीन, फार्मलडिहाइड, ट्राई क्लोरो ईथिलीन, ट्राईक्लोरो जाइलीन, जैसी जहरीली गैसों को अवशोषित कर लेता है।इसी तरह मनी प्‍लांट वह पौधा है जो बहुत कम रोशनी में भी ऑक्सीजन तैयार करने की क्षमता रखता है,और कार्बन डाइऑक्साइड, बेंजीन, फॉर्मेल्डिहाइड, जाइलीन, और ट्राईक्लोरोईथिलीन जैसी जहरीली गैसों को अवशोषित करने की क्षमता रखता है।इनके अलावे ऐसे कई पौधों में इसी तरह वातावरण में प्राणवायु विमुक्त करने और वातावरण से खतरनाक जहरीली गैसों को अवशोषित करने की क्षमता होती है,तो कई पौधे और जीव – जंतु विभिन्न बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाले होते हैं।

बात प्रकृति और जैव विविधता की की जाए तो जैव विविधता विभिन्न खाद्य आहार श्रृंखलाओं और खाद्य जालों के द्वारा विभिन्न ट्राफिक स्तरों पर सामंजस्य बनाते हुए जीवो की निरंतरता बनाए रखने में मदद करती है। वहीं इसका विपरीत यानी जैव विविधता के कम होने से विभिन्न खाद्य आहार श्रृंखलाएं और खाद्य जालें बुरी तरह से प्रभावित होती है जिससे भविष्य में मनुष्य समेत विभिन्न प्राणियों के अस्तित्व पर एक बड़ा संकट उपस्थित हो जा सकता है।

भारत में जैव विविधता को नष्ट करने की प्रक्रिया अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुई और काफी परवान चढ़ी।अंग्रेजों ने ज्यादा लाभ के चक्कर में विभिन्न पेड़ों की प्रजातियां की जगह सिर्फ इमारती लकड़ी और फल देने वाली उन्हीं प्रजातियां के पौधों को लगाना शुरू किया जिससे ज्यादा मुनाफा होता था। अंग्रेज जैव विविधता को नष्ट करते हुए यहां तक धांधली करने लगे कि किसानों ने उनके आतंक की डर से खरीफ और रबी की खाद्य फसलों को लगाना छोड़ नील की खेती करना प्रारंभ कर दिया। अंग्रेजों के जमाने मैं प्रारंभ हुई जैव- विविधता को नष्ट करने की यह प्रक्रिया आज भी समाप्त नहीं हुई है, बल्कि अब तो विभिन्न जगहों पर जंगलों का समूल नाश तक कर दिया जा रहा है।

बात भारत के प्राचीन काल और जैव – विविधता की की जाए तो भारत का प्राचीन काल इस मामले में काफी गौरवमयी था। हमारे सनातन धर्म में एक तरफ जहां विभिन्न धार्मिक अवसरों पर पीपल, वट , आंवला और तुलसी जैसे कई पौधों की पूजा करने का विधान बताया है,तो वहीं दूसरी तरफ इस धर्म में गायों और अन्य पशुओं की पूजा का भी विधान है। इतना ही नहीं सनातन धर्म में तो चूहा और सांप जैसे जंतुओं की पूजा का भी विधान है।

इस दृष्टिकोण से अगर उदय भारतम् पार्टी की ‘ प्रकृति भारतम् ‘ के सूत्र वाक्य पर विचार करें तो यह एक बहुत ही लाभकारी प्रतीत होती है।

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