Homeदेशदेश में राम की धुन लेकिन पश्चिम बंगाल में सद्भावना की दुदुम्भी

देश में राम की धुन लेकिन पश्चिम बंगाल में सद्भावना की दुदुम्भी

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अखिलेश अखिल 
अयोध्या राममय है और देश मोदीमय। गोदी मीडिया ने अपने सारे संस्कारों को ताख पर रखकर जो नजारा दिखा रहा है उससे साफ़ लगता है कि आजादी के 75 साल बाद भारत में राम की पूजा पहली बार की जा रही है। देश के प्रधानमंत्री हिन्दू धर्म के सबके बड़े रक्षक और संस्थापक हो गए हैं और भारत अचानक सेक्युलर देश से बदलकर हिन्दू राष्ट्र बन गया है। सच तो यही है कि गोदी मीडिया इसी नरेटिव के जरिये पिछले दस दिनों से देश को राममय किये हुए है। लेकिन दिल्ली से दूर बंगाल में क्या कुछ हो रहा है इस पवार भी लोगों की निगाहें गई है।

पश्चिम बंगाल में ममता का राज है और वहां रामभक्ति से अलग सद्भावना की दुदुम्भी बज रही है। यह ऐसी दुदुम्भी है जिसमे सभी जाति और सभी धर्म के लोगों की सहभागिता से देश को सेक्युलर समाज बनाये रखने की चुनौती है। देश को संविधान पर चलाते रहने का संकल्प है और देश को जोड़ने की बात भी। ममता के राज में सद्भाव की ही अपेक्षा की जा सकती है। क्योंकि वह जानती है कि जिस दिन देश का सेक्युलर मिजाज बदल गया उस दिन यह देश नहीं बच सकता।   

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने तो गुरुवार को ही सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस द्वारा 22 जनवरी को तय ‘सद्भाव रैली’ को सशर्त मंजूरी दे दी, जो अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के दिन तय की गई है। इस मंजूरी के बाद टीएमसी ने पार्टी नेताओं को ‘सद्भाव रैली’ में धार्मिक नेताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। कोलकाता में रैली का नेतृत्व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी करेंगी, जो दक्षिण कोलकाता में हाजरा क्रॉसिंग से शुरू होने वाली है और मध्य कोलकाता में पार्क सर्कस सेवन-पॉइंट क्रॉसिंग पर समाप्त होने वाली है।

पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता ने बुधवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस आधार पर ममता की रैली को स्थगित करने में अदालत के हस्तक्षेप की मांग की थी कि इससे राज्य में कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है। हालांकि, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने रैली के आयोजन के लिए कुछ शर्तें लगाते हुए विपक्ष के नेता की याचिका खारिज कर दी।

पहली शर्त यह है कि रैली या अगली सभा से कोई ऐसा नारा या बयान नहीं दिया जा सकता, जिससे किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचे। साथ ही कलकत्ता उच्च न्यायालय ने प्रशासन के साथ-साथ संबंधित रैली आयोजक पक्ष को भी निर्देश दिया कि प्रस्तावित सद्भाव रैली को सामान्य यातायात आंदोलन को बाधित नहीं करना चाहिए, खासकर एम्बुलेंस की आवाजाही के संबंध में।

हालांकि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 22 जनवरी को पूरे राज्य में केंद्रीय सशस्त्र बलों के जवानों की तैनाती के लिए विपक्ष के नेता की अतिरिक्त याचिका को भी खारिज कर दिया, लेकिन राज्य के गृह सचिव और राज्य पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने के लिए पहल करने का निर्देश दिया कि उस दिन पश्चिम बंगाल में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति खराब न हो।

राज्य के सभी जिलों में इसी तरह की ‘सद्भावना रैलियां’ आयोजित करने के सत्तारूढ़ दल के प्रस्ताव पर, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सभी जिला मजिस्ट्रेटों और जिला पुलिस अधीक्षकों को यह जांच करने का निर्देश दिया कि क्या ऐसी जिला स्तरीय रैलियां आयोजित करने के लिए स्थानीय प्रशासन से आवश्यक अनुमति मांगी गई थी। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि यदि कार्यक्रम के दौरान कोई अप्रिय घटना होती है तो रैली आयोजक जिम्मेदार होंगे।

हाईकोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में अपने जिला स्तरीय नेतृत्व को 22 जनवरी को राज्य भर में होने वाली सद्भावना रैलियों में धार्मिक नेताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में मुख्य ‘सद्भाव रैली’ कोलकाता में होगी, वहीं, उस दिन राज्य के सभी जिलों में भी ऐसी ही रैलियां होंगी।

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