अखिलेश अखिल
यह बात और है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने ऐलान कर दिया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वह किसी भी गठबंधन के साथ चुनाव नहीं लड़ेगी। वह अकेले मैदान में आजायेगी। मायावती का अभी तक का यही स्टैंड है। मायावती का यह स्टैंड हो सकता है कि चुनाव के आखिरी समय तक भी बना रहे। लेकिन जानकार ऐसा नहीं मानते। बसपा के लोग हालांकि सार्वजनिक तौर पर बहुत की काम बयान देते हैं लेकिन सूत्रों के हवाले से यह खबर जरूर मिलती है कि पांच राज्यों में चुनाव के बाद जो परिणाम आते हैं उसके बाद मायावती की सोंच और समझ में कुछ बदलाव आ सकते हैं। पांच राज्य में जहाँ चुनाव होने हैं उनमें से दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। ये राज्य है राजस्थान और छत्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है। मिजोरम में बीजेपी की गठबंधन की सर्कार है और तेलंगाना में बीआरएस की सरकार है। कह सकते हैं कि इन पांच राज्यों में से तीन राज्य हिंदी पट्टी के हैं। एक राज्य पूर्वोत्तर के हैं जबकि एक राज्य दक्षिण भारत के।
मायावती को लग रहा है कि हालिया चुनाव माहौल में जिस तेजी से कांग्रेस का ग्राफ आगे बढ़ रहा है अगर चुनाव में भी कांग्रेस की सरकार तीन राज्यों में बन जाती है तो बहुत कुछ बदल जायेगा। अगर कांग्रेस मौजूदा भी अपनी सरकार को बचा लेती है तो भी यह चुनाव कांग्रेस के पक्ष में ही माना जायेगा। यह भी कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस पांच राज्यों किसी तीन राज्यों में भी वापसी करती है तो माहौल बदल जाएगा और एनडीए पर भी इसका असर पडेगा। क्योंकि एनडीए में भी अधिकतर दल ऐसे ही है जिनकी राजनीति बहुत कमजोर है और लोकसभा से लेकर विधान सभा में जिनकी एक सीट भी नहीं है। ऐसे में अपनी क्षेत्रीय अस्मिता को बचाने के लिए बहुत से दल एनडीए से निकल सकते हैं लेकिन इससे बीजेपी पर कोई बड़ा सारा नहीं पडेगा।
लेकिन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम अगर एनडीए के पक्ष में जाते हैं तो खेल बड़ा होगा। इंडिया में भगदड़ मच सकती है। बड़ी टूट की सम्भावना है। कई दल इससे बहार निकल सकते हैं। यही वजह है कि कांग्रेस और बीजेपी के लिए यह पांच राज्यों का चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह है।
ऐसे में जब पांच राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आ जायेंगे तो बसपा सुप्रीमो अपना नया पत्ता खेल सकती है। जिधर की राजनीति भारी पड़ेगी उधर वह जा सकती है और इस बात की भरपूर सम्भावना है कि वह बिना गठबंधन के चुनावी मैदान में बसपा को नहीं उतार सकती है। चाहे वह जिधर भी जाए।
लेकिन यह सब बाद की बात है। इधर की राजनीतिजो यूपी में दौड़ती दिख रही है वह भी कम रोचक नहीं है। यह सब जानते है कि बसपा का कोर वोटर जो दलित समुदाय है उसमे लगातार गिरावट ा रही है। बसपा के बहुत से लोग बसपा से अलग कही और जा रहे हैं। पिछले कुछ चुनाव ारिणामो का आंकलन करे ताओ साफ हो जाता है कि जो बसपा कभी अपने बुरे दिनों में भी 23 फीसदी वोट पा लेती थी अब 12 फीसदी पर पहुँच गई है। यह कि पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा सपा के साथ में आयी थी और उसे दस सीटें भी मिल गई लेकिन अब अगर वह अकेले मैदान में जाती है तो यह असंभव सा है।
लेकिन खेल तो और भी कुछ हो रहा है। यूपी में सपा ने दलित वोटों को साधने के लिए बड़ा अभियान चला रखा। सपा का यह अभियान पीडीए के नाम से चल रहा है। पीडीए का मतलब है पिछड़ा ,दलित और अल्पसंख्यक। सपा के नेता तरीके से मायावती अपने पाले में लाते दिख रहे हैं और इसमें सपा को कामयाबी भी मिल रही है। उधर कांग्रेस की नजर भी मायावती के दलित वोट पर है। खासकर पासी और जाटव समाज पर कांग्रेस की तेज निगाह है और कांग्रेस भी इस समाज को साधने के लिए कई अभियान चला रही है। जो जानकारी मिल रही है कांग्रेस को पश्चिमी और पूर्वी इलाकों में काफी कच्छ लाभ मिला भी है।
उधर बीजेपी दलित महासम्मेलन की तैयारी कर रही है। वह भी प्रदेश के हर जिले में दलितों को अपने साथ जोड़ने के लिए बड़ा अभियान बना रही है। वैसे यूपी में दलितों का एक बड़ा वर्ग जुड़ा तो है लेकिन अब बीजेपी को लग कि दलितों का कुछ वर्ग और भी बीजेपी के साथ जुट जाए तो खेल बेहतर हो सकता है।
ऐसे में मायावती आगे क्या कुछ करेगी देखना होगा। हालिया राजनीति दो समुदाय पर जाकर टिक गई है। ओबीसी और दूसरा समुदाय है दलित। इन दो समुदायों के साथ तीसरा समुदाय जिसके साथ मिलेगा उसकी जीत पक्की हो सकती है। मायावती सब समझ रही है। आगे वह क्या कुछ करती है इसे देखने की बात होगी।