विकास कुमार
भारत के नए संसद में ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक को पेश किया गया है। यह विधेयक निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद ही लागू हो सकेगा। गौरतलब है कि महिलाओं को आरक्षण दिए जाने की यह कवायद 27 साल पहले शुरू की गई थी, लेकिन बार-बार इसमें अड़चनें आती रहीं। इस विधेयक में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण को शामिल किया गया है,लेकिन अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए कोटा नहीं दिया गया है क्योंकि संविधान में भी वह विधायिकाओं के लिए नहीं दिया गया। यह कोटा राज्यसभा अथवा राज्यों की विधान परिषदों में भी लागू नहीं किया जाएगा।
महिला आरक्षण बिल के मुताबिक, लोकसभा और विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए सीधे चुनाव से भरी जाएंगी। इसके अलावा, महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें एससी और एसटी के लिए आरक्षित होंगी,लेकिन ओबीसी को महिला आरक्षण में भागीदारी नहीं मिलेगी। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी राज्यसभा में चर्चा के दौरान इस मुद्दे को उठाया,लेकिन सांसदों और विधायकों के निर्वाचन में पहले भी केवल एससी और एसटी को आरक्षण दिया गया है। इसलिए महिला आरक्षण में भी केवल एससी और एसटी वर्ग को ही आरक्षण दिया गया है।
128 वां संशोधन संविधान अधिनियम, 2023 के प्रभावी होने के बाद होने वाली पहली जनगणना के आंकड़े प्रकाशित होने के बाद होने वाले निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद लागू होंगे,और लागू होने के 15 साल बाद ये प्रभावी नहीं रहेंगे। इस विधेयक में कहा गया है कि अनुच्छेद 239ए.ए, 330ए और 332ए के प्रावधानों के अधीन लोकसभा, विधानसभा और एनसीआर दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें उस तिथि तक आरक्षित रहेंगी, जो संसद कानून से तय करेगी।
मोदी सरकार ने महिला आरक्षण का प्रस्ताव देकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया है।’नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के पारित होने के बाद महिलाओं को नीति निर्माण में बड़ी भागीदारी मिलेगी,साथ ही राजनीतिक दलों को भी 33 फीसदी महिलाओं को टिकट देना पड़ेगा। इससे राजनीति में पुरूषों का वर्चस्व टूटेगा और महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण होगा।