विकास कुमार
विपक्षी दलों के अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने मंजूर कर लिया है। समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने का मन बना लिया था। वहीं कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने बताया कि यह निर्णय लिया गया है कि हमारे पास अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होगा। क्योंकि सरकार मणिपुर के मुद्दे पर विपक्षी दलों की मांग स्वीकार नहीं कर रही है। कम से कम पीएम को संसद में कड़ा बयान देना चाहिए। क्योंकि वह भारत के प्रधानमंत्री के अलावा संसद में हमारे नेता भी हैं,लेकिन वह हमारी मांग को अस्वीकार कर रहे हैं।
वहीं सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा है,लेकिन इसके बावजूद विपक्षी दलों के अविश्वास प्रस्ताव लाने की रणनीति से सभी लोग हैरान हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि संख्या बल के हिसाब से हार तय होने के बाद भी विपक्ष यह कदम क्यों उठा रहा है? दरअसल विपक्षी दलों की दलील है कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेर कर नैरेटिव सेट करने की लड़ाई जीत जाएंगे। विपक्षी दलों ने दलील दी कि यह मणिपुर मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में बोलने के लिए मजबूर करने की रणनीति भी है। दरअसल केंद्र सरकार जोर दे रही है कि मणिपुर की स्थिति पर चर्चा का जवाब केवल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह देंगे। वहीं विपक्षी पार्टियों का साफ-साफ कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में मणिपुर पर जवाब दें।
वहीं अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय माना जा रहा है,क्योंकि संख्या बल स्पष्ट रूप से बीजेपी के पक्ष में है और विपक्षी दलों के पास लोकसभा में डेढ़ सौ से कम सदस्य हैं। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोल चुके हैं कि इस प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं है। पीएम का कॉन्फिडेंस यूं ही नहीं है,विपक्षी दलों का अविश्वास प्रस्ताव संख्या बल के लिहाज से विफल होना पक्का है।यह और बात है कि विपक्ष को पूरा भरोसा है कि वे अपनी मंशा को पूरी करने में कामयाब होंगे।