बिहार में एक तरफ आरजेडी के नेतृत्व वाली महागठबंधन है तो दूसरी तरफ है बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन। इन दोनों के बीच नीतीश कुमार अक्सर सी- शॉ के खेल की तरह बैलेंस बनाते रहते हैं कभी इस पक्ष में तो कभी दूसरे पक्ष में। और हद तो यह कि जिस भी पक्ष में नीतीश कुमार गए वहां विधायकों की संख्या कम होने के बावजूद मुख्यमंत्री यही बने। लेकिन इस बार प्ररिदृश्य थोड़ा बदला- बदला सा है।महागठबंधन के साथ रहते हुए भी अब नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित नहीं है, और एनडीए भी इस बार उन्हें कुर्सी देने के मूड में नहीं है। ऐसे में नीतीश कुमार इस समय कभी राज्यपाल से मिलते हैं तो कभी अपने नेताओं के साथ बैठक करते हैं , यानि कुल मिलाकर इन्होंने बिहार के राजनीति में एक नई गर्मी ला दी है।
महागतबंधन में लालू यादव तेजस्वी के लिए चाहते हैं सीएम की कुर्सी
महागठबंधन के बारे में शुरू से ही यह कहा जा रहा था कि कुछ दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में चले जाएंगे और बिहार की कुर्सी तेजस्वी यादव को सौंप देंगे, लेकिन शुरू में एक बार जब कुर्सी हथिया ली, तो फिर नीतीश कुमार इसे छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हैं। भले ही कभी नीतीश कुमार ने कहा था कि 2025 के चुनाव में महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा। लेकिन ये सब बात बातों तक ही रही,कभी हकीकत नहीं बन सकी। दिल्ली में इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक के बाद से ही नीतीश के मन बदलने की अटकलें लगने लगी थी।वहीं इससे पहले लालु यादव अपने बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनने के लिए लगातार नीतीश कुमार पर दबाव डाल रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने शुरुआती दौर में यह कहकर कि इंडिया गठबंधन में नीतीश कुमार या कोई एक ही संयोजक नहीं होगा, बल्कि इसमें कई संयोजक होंगे, लालू प्रसाद ने तेजस्वी के पक्ष में मुख्यमंत्री की कुर्सी देने के लिए नीतीश कुमार के मार्ग में रोड़ा अटकाया। लेकिन लालू यादव के मंसूबे पूरे नहीं हुए और नीतीश ने अब यह एक नया हंगामा खड़ा कर दिया है ,एनडीए खेमे में जाने वाला।
कर्पूरी ठाकुर की जन्म सदी के अवसर पर भी दिखी आरजेडी -जेडीयू के बीच बढ़ी तल्खी
जननायक कर्पूरी ठाकुर को एनडीए की सरकार के द्वारा भारत के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा के दूसरे ही दिन कर्पूरी ठाकुर के जन्म के 100 साल पूरे हुए। इस अवसर पर पटना में कर्पूरी ठाकुर की जन्म सदी का कार्यक्रम मनाते हुए भी आरजेडी और जेडीयू दोनों दलों के बीच तल्खी देखी गई। दोनों ने ही इसे लेकर अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किया और इसमें किसी भी दूसरे दल के नेताओं को शामिल नहीं किया।
लाल की बेटी रोहनी पर भड़के नीतीश तो रोहिणी ने डिलीट किया तीनों ट्वीट
लाल यादव नीतीश कुमार की राजनीतिक ट्यूनिंग इस समय पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। इसके पहले से ही लगातार संकेत मिल रहे थे। पटना में लंबे समय के बाद दोनों मकर संक्रांति पर 10 मिनट के लिए मिले जिसमें लालू प्रसाद ने पिछले दो बार की तरह नीतीश को दही का टीका नहीं लगाया तो संदेह के बादल मंडराने लगे थे। इसके कुछ ही दिन के बाद लालू यादव और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री से मिलने उनके मुख्यमंत्री आवास पर गए तो ऐसी चर्चा चली कि पिता- पुत्र दोनों नीतीश कुमार को मनाने गए हैं कि वह महागठबंधन में ही बने रहे और एनडीए के पक्ष में ना जाएं। यहां तक की कर्पूरी जन्म सदी पर जेडीयू की रैली में नीतीश कुमार ने परिवारवाद के खिलाफ बोला, जिसे माना गया कि यह लालू प्रसाद के ऊपर किया गया था। इसके बाद लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने भी इशारों- इशारों में तीन ट्वीट किया। माना जाता है कि इसमें नीतीश कुमार को निशाना बनाया गया था।उनका पहला ट्वीट था अक्सर कुछ लोग नहीं देख पाते हैं अपनी कमियां ,लेकिन किसी दूसरे पर कीचड़ उछालने को करते हैं बदतमिजियां उनका दुसर ट्वीट था खीज जताए क्या होगा, जब हुआ न अपना कोई योग्य,विधि का विधान कौन टाले,जब खुद की नियत में हो खोट।उनका तीसरा ट्वीट था समाजवादी पुरोधा होने का करता वही दावा है,हवाओं की तरह बदलती जिसकी विचारधारा हो। हालांकि बाद में रोहनी आचार्य ने अपने उन तीनों ट्वीट को डिलीट कर दिया, जिससे लगता है कि नीतीश कुमार को मनाने की कोशिश अभी चल रही है।
नीतीश की कहीं नहीं चली तो कर सकते हैं विधानसभा भंग की सिफारिश
वैसे अब तक तो नीतीश कुमार ने चाहे वह आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ रहे चाहे वे बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के साथ, सब जगह उनकी ही चली और यह मुख्यमंत्री बन रहे, जबकि इनकी विधायकों की संख्या दूसरे दलों की तुलना में काफी कम थी। लेकिन इस बार थोड़ा पेंच फसता नजर रहा है। आरजेडी भले ही इन्हें मनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन साथ ही यह तेजस्वी के लिए कुर्सी भी चाह रही है। वहीं दूसरी तरफ एनडीए नीतीश कुमार का फिर से स्वागत करने के लिए तो तैयार बैठी है, लेकिन सीएम की कुर्सी को लेकर कोई समझौता करने के मूड में फिलहाल नहीं दिखती है।ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर दोनों ही जगह से नीतीश कुमार को निराशा हाथ लगी तो वह फिर करेंगे क्या ?लेकिन नीतीश कुमार के बारे में माना जाता है कि राजनीति में उन्होंने कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली है, इसलिए एक संदेश यह भी आ रहा है कि अगर चीज नीतीश कुमार के हिसाब से नहीं हुई तो वह राज्यपाल से विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं। लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव होने पर किसी भी गठबंधन में रहने पर नीतीश को जदयू के विधायकों की संख्या बढ़ाने का मौका मिल सकता है।इस समय जदयू तीसरे नंबर की पार्टी है ,लेकिन पहले बीजेपी और अब राजद के समर्थन से सरकार का नेतृत्व कर रही है।
तेजस्वी की कुर्सी के लिए लालू खेमा तलाश रहे हैं विधायक
नीतीश कुमार के आरजेडी से नाता तोड़ने के खबरों के बीच लालू खेमा ने भी 122 के जादुई आंकड़े तक पहुंचाने के लिए आठ और विधायकों को साधने की कवायद शुरू कर दी है। 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में इस वक्त सीटों का गणित कुछ इस प्रकार है।आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट की सीटों को मिला दिया जाए तो 79 + 19 + 16 यानी 114 का नंबर बनता है। मतलब साफ है कि बहुमत के लिए इन्हें आठ विधायकों की जरूरत पड़ेगी। लालू खेमा इन आठ विधायकों को साधने में जुट गया है।
राजनीति में कभी भी कुछ हो सकता है।ऐसे में नीतीश कुमार के इन हरकतों के बाद राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो वक्त ही बताएगा।