अखिलेश अखिल
60 सदस्यीय नागालैंड विधान सभा चुनाव के प्रचार अब अंतिम चरण में पहुंच गए है। प्रचार में जान की बाजी लगाने जैसे हालात हैं। कोई गला फाड़ रहा है तो कोई चीख चिल्ला रहा है। कोई विपक्ष पर हमलावर है तो कोई सत्ता पर दोष मढ रहा है। नागालैंड का पूरा भूगोल झंडे ,बैनर और पोस्टर से पटे हुए है लेकिन शांति किसी को नहीं हैं। कभी नागालैंड अशांत था आज राजनीतिक पार्टियां अशांत है। ऐसे में यह कहना मुश्किल हो रहा है कि सरकार किसकी बनेगी।
नगाओं का यह भूगोल शुरू से ही अशांत रहा। यह बात और है कि पिछले कुछ सालों से यहां कोई बड़ा उपद्रव और हिंसा नहीं हुए है लेकिन कब क्या हो जाए किसी को पता नहीं। मौजूदा समय में वहां बीजेपी और एन डी पी पी की सरकार है लेकिन इस बार माहौल बदला हुआ है। कोई 13 पार्टियां चुनावी मैदान में दुदुंभी बजा रही है लेकिन यकीन किसी को नहीं। सत्तासीन पार्टियां भी विपक्ष के हुंकार से सहमी हुई है। कांग्रेस ने पूरी ताकत के साथ सत्ता पक्ष को चुनौती दे रखी है तो कई स्थानीय दल भी मजबूती के साथ चुनाव लड़ रही है। बिहार की तीन पार्टियां भी यहां मौजूद है। राजद ,जदयू और लोजपा मैदान में है।
पिछले चुनाव में बीजेपी और एनडीपीपी साथ लड़े थे और जदयू के सहयोग से सरकार बनाने में कामयाब हुए थे। हालांकि इस बार भी बीजेपी एनडीपीपी साथ लड़ रहे है। पिछले चुनाव में पहली बार बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली थी जबकि एनडीपीपी को 17 सीट मिली थी।लेकिन तब सबसे बड़ी पार्टी के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री टी आर जेलियांग की पार्टी एनपीएफ को 26 सीटें मिली थी। लेकिन जोड़तोड़ कर बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही।
इस बार बीजेपी 20 सीटो पर चुनाव लड़ रही है जबकि उसकी सहयोगी एनडीपीपी 40 सीटों पर मैदान में है। इसी तरह कांग्रेस सभी सीटों पर मैदान में है तो टीएमसी भी मैदान में मजबूती से खड़ी है। वाम दल भी मैदान में है और कई स्थानीय पार्टियां भी चुनावी माहौल को गर्म किए हुए है।
नई बात यह है कि बिहार की तीन पार्टियां यहां चुनाव लड़ रही है। राजद ने पांच उम्मीदवार उतारे है तो जदयू 9 सीटो पर लड़ रही है। राजद यहां कई चुनाव लड़ चुकी है और एक समय में उसके पास 6 फीसदी वोट भी रहे हैं। जदयू यहां 2003 से ही चुनाव लड़ रही है और कुछ सीटें जीतती भी रही है।इसके पास भी करीब 4 फीसदी वोट रहे हैं।लोजपा यहां पहली बार मैदान में है। लेकिन खेल यह है कि जहां बिहार में आरजेडी और जदयू के बीच दोस्ती है वही यहां दोनो एक दूसरे के खिलाफ मैदान में है। उम्मीद है कि आरजेडी और जदयू को इस बार भी कुछ सीटें मिल सकती है।