रांची (बीरेंद्र कुमार): झारखंड में नगर निकाय चुनाव का मुद्दा अब हेमंत सोरेन सरकार के गले की फांस बनती नजर आ रही है। इस फांस का एक सिरा अनुसूचित जाति के पास है तो दूसरा सिरा अनुसूचित जनजाति के पास। एक ने भी डोर खींचा तो हेमंत सोरेन सरकार के गले का यह फांस कसता चला जाएगा।
सरकार द्वारा टीएसी की बैठक के निर्णय के विरोध में होगा आंदोलन
झारखंड सरकार के नगर निकाय चुनाव पर राज्यपाल के मुहर लगने के बावजूद झारखंड में नगर निकाय चुनाव की अधिघोषणा जारी नहीं हुई तो सिर्फ इसलिए , क्योंकि अनुसूचित जनजाति के कुछ नेताओं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात कर न सिर्फ रांची नगर निकाय में मेयर के पद को अनुसूचित जाति से बदल कर फिर से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित करने की मांग रखी बल्कि सभी अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निकाय के एकल पदों को भी अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों के लिए आरक्षित करने की मांग रखी। वोट बैंक की राजनीति के तहत हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में टीएसी की बैठक में इस संबंध में निर्णय लिए जाने से फिलहाल यहां नगर निकाय चुनाव टलता नजर आ रहा है। लेकिन अब अनुसूचित जाति का संगठन हेमंत सोरेन सरकार के इस निर्णय का पुरजोर विरोध करने का मन बना चुकी है।
अनुसूचित जाति की उपेक्षा कर सिर्फ अनुसूचित जनजाति को फायदा पहुंचाने वाले सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध अब झारखंड की अनुसूचित जातियां एकजुट होकर आवाज उठाने लगी है। 22 अनुसूचित जातियों के लोगों ने रांची में आर पी रंजन की अध्यक्षता में एक महापंचायत की। इसमें रांची नगर निगम महापौर आरक्षण रोस्टर प्रणाली के तहत आरक्षित अनुसूचित जाति की सीट को सरकार द्वारा बदलने वाले निर्णय का विरोध किया किया गया। साथ ही शीघ्र चुनाव कराने के लिए यथाशीघ्र परिसीमन लागू करने की मांग की गई।
महापंचायत में यह भी निर्णय लिया गया की राज्य सरकार की इस रवैया को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग को ज्ञापन देने के साथ-साथ राज्यपाल और मुख्यमंत्री को भी ज्ञापन देकर आरक्षण रोस्टर व्यवस्था के अनुरूप शीघ्र चुनाव कराने की मांग की जाएगी। वक्ताओं ने कहा कि चुनाव आयोग अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करते हुए यथाशीघ्र नोटिफिकेशन जारी करे। सरकार द्वारा अगर जल्द इनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया और इनकी हकमारी जा प्रयास हुआ तो फिर ये लोग राज्य में एक बड़ा आंदोलन करने के लिए बाध्य हो जाएंगे।