न्यूज डेस्क
कर्नाटक बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कहा जा रहा है कि बहुत से विधायकों को इस बार टिकट नहीं दिए जायेंगे। विधायकों में भ्रम की स्थिति है। कई विधायक दूसरी पार्टी से संपर्क बनाये हुए हैं। कहा जा रहा है कि दर्जन भर से ज्यादा विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं। कुछ इतने ही विधायक जेडीएस के नेताओं से मिल रहे हैं। जब से यह कहा गया है कि गुजरात की तरह ही पुराने चेहरों की जगह नए चेहरे मैदान में उतारे जायेंगे तभी से पार्टी के भीतर कोहराम मचा हुआ है।
इधर काफी दिनों से मुख्यमंत्री बदलने की बात चल रही थी उस पर भी कोई फैसला नहीं हुआ है। मंत्रिमंडल फेरबदल की बात थी, वह भी रुका पड़ा है। पार्टी के भीतर असमंजस बना हुआ है। कर्नाटक में दो महीने में चुनाव की घोषणा होने वाली है। अप्रैल-मई में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और भारतीय जनता पार्टी सबसे अधिक दुविधा में दिख रही है। पार्टी कुछ भी तय नहीं कर पा रही है। मुख्यमंत्री पिछले दो महीने में कम से कम तीन बार कह चुके हैं कि जल्दी ही वे नए मंत्रियों को शामिल करेंगे। वे बार बार दिल्ली के चक्कर काट रहे हैं और यह भी संकेत दे चुके हैं कि नए मंत्रियों के नाम पर पार्टी आलाकमान की सहमति मिल गई है। फिर भी मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो रहा है और बीवाई विजयेंद्र से लेकर रमेश जरकिहोली और केएस ईश्वरप्पा जैसे नेता परेशान हो रहे हैं।
मुख्यमंत्री बदले जाने की चर्चा बंद हो गई है लेकिन यह चर्चा शुरू हो गई है कि अगर भाजपा चुनाव जीत जाती है तो बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। इससे लिंगायत समुदाय में कंफ्यूजन है। कहा जा रहा है कि चुनाव में अगर भाजपा जीतती है तो गुजरात की तरह पूरी सरकार बदली जा सकती है यानी सारे नए लोग मुख्यमंत्री और मंत्री बनेंगे।
भाजपा ने जिस अंदाज में वोक्कालिगा वोट के लिए जोड़-तोड़ शुरू किया है उससे भी पार्टी के कोर मतदाता समूह यानी लिंगायत में दुविधा है। दूसरी ओर यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि राज्य में गुजरात का फॉर्मूला लागू किया जा सकता है। यानी एक तिहाई विधायकों की टिकट कट सकती है। इससे विधायकों में भगदड़ मची हुई है। कुल मिलाकर चुनाव से पहले सब कुछ बिखरा हुआ दिख रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे का इंतजार हो रहा है। कहा जा रहा है कि उसके बाद सब कुछ स्थिर होगा।