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बसपा प्रमुख मायावती ने साफ़ कर दिया कि वह अगला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। किसी के साथ बसपा गठबंधन नहीं करेगी। इसके साथ ही मायावती ने यह भी कहा कि संगठन को मजबूती के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है और तामझाम वाले कार्यक्रमों से दूर रहने की भी जरूरत है। हमें जनता से जुड़ने का कार्यक्रम करना चाहिए और समाज में एकता की बात करनी चाहिए।
मायावती ने प्रदेश के वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारियों, प्रभारियों और अन्य जिम्मेदार लोगों के साथ बैठक कर पिछलीबैठक में दिये गये निर्देशों की रिपोर्ट ली। बैठक में गहन चिंतन के बाद स्पष्ट हुई कमियों पर प्रभावी नियंत्रण करते हुए पूरे तन मन धन से लोकसभा चुनाव में जुटने का आह्वान किया। उन्होंने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव के ठीक बाद लोकसभा चुनाव की अपेक्षित घोषणा को देखते हुए पार्टी उम्मीदवारों के चयन को लेकर खासी सावधानी बरतने के निर्देश दिये।
उन्होंने कहा प्रदेश में बसपा को गठबंधन के कारण फायदा कम और नुकसान अधिक हुआ है क्योंकि बसपा के वोट अन्य दलों को ट्रांसफर हो जाता है।दूसरी पार्टियां हमारे उम्मीदवार के पक्ष में वोट ट्रांसफर करने की न तो नीयत रखते हैं और न क्षमता। इससे पार्टी के लोगों का मनोबल प्रभावित होता है और इस कड़वी हकीकत को नजरअंदाज कर आगे नहीं बढ़ा जा सकता है।
मायावती ने कहा कि जहां तक चुनावी माहौल का सवाल है तो सभी तरफ से यही फीडबैक है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की संकीर्ण जातिवादी और सांप्रदायिक नीतियों के कारण पूरी जनता त्रस्त है और इसी कारण भाजपा का जनाधार कमजोर हो गया है और यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी। इस कारण उत्तर प्रदेश का चुनाव एकतरफा न होकर काफी दिलचस्प तथा देश की राजनीति को एक नयी करवट देने वाला साबित होगा।
बसपा सुप्रीमो ने कहा कि जबरदस्त महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, द्वेषपूर्ण राजनीति और देश में बिगड़ते माहौल से आमजन पूरी तरह से त्रस्त है। भाजपा की तरह ही कांग्रेस की भी कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। कुल मिलाकर एक ओर सत्ता तथा विपक्षी दलों का गठबंधन लोकसभा चुनाव में जीत के अपने अपने दावे ठोक रहे हैं लेकिन दोनों के ही दावे सत्ता में बने रहने के बावजूद खोखले साबित हुए हैं। दोनों की ही नीतियों और कार्यशैलियों से देश के गरीब, पिछड़े,दलित और मजदूर और एक तरह से सर्वजन का हित तो कम ,अहित अधिक हुआ है।