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Maharashtra: महाराष्ट्र में ‘माधव’ समीकरण के भरोसे बैठी है बीजेपी, Pankaja Munde के साथ के बिना नाकाम रहेगी भाजपा

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विकास कुमार
2024 में महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है। शिवसेना को दो फाड़ में करने के बाद बीजेपी आलाकमान ने एनसीपी के भी दो टुकड़े कर दिए हैं। लेकिन इसके बावजूद महाविकास अघाड़ी को हराना बीजेपी के लिए लोहे के चने चबाने जैसा है। इसलिए बीजेपी आलाकमान महाराष्ट्र के चुनावी रण को जीतने के लिए एक खास रणनीति पर काम कर रही है। बीजेपी ने महाराष्ट्र में जीत तय करने के लिए माधव फार्मूला पर काम तेज कर दिया है। माधव फॉर्मूला का मतलब है मा से माली, ध से धनगर और वा से वंजारी। माधव जाति ओबीसी समुदाय में आते हैं। महाराष्ट्र में मराठा की आबादी 31 फीसदी से ज्यादा है, तो वहीं ओबीसी कई उपजातियों में बंटी हुई हैं। बीजेपी फिलहाल इन्हीं दोनों समुदाय को अपने पाले में लाने की रणनीति पर काम कर रही है।

माधव समुदाय को खुश करने के लिए बीजेपी ने कई कदम उठाए हैं। पहले तो अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यानगर कर दिया गया है। वहीं बारामती गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज का नाम भी अहिल्या देवी होलकर के नाम पर किए जाने का ऐलान किया गया है। गौरतलब है कि धनगर समुदाय अहिल्यादेवी होलकर को भगवान की तरह पूजते हैं।

माधव समुदाय का असर महाराष्ट्र के कई जिलों में है कोल्हापुर,सांगली,सोलापुर,पुणे,अकोला और परभणी में माधव समुदाय का असर है। इसके अलावा नांदेड़ और यवतमाल में भी माधव समुदाय मजबूत स्थिति में है। 80 के दशक में बीजेपी ने माधव फॉर्मूला अपनाया था। पहले बीजेपी को उच्च वर्ग के नेतृत्व के लिए जाना जाता था। लेकिन पार्टी की इसी छवि को बदलने के लिए वसंतराव भागवत ने 80 के दशक में माधव फार्मूला को अपनाया था। स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे, पांडुरंग फंडकर, महादेव शिवंकर और दूसरे नेताओं की मदद से माली, धनगर और वंजारी ने बीजेपी का साथ दिया था, लेकिन गोपीनाथ मुंडे के असमय निधन ने इस समीकरण को लगभग ढहा ही दिया है। बीजेपी ने माधव समुदाय के जिन नेताओं के साथ मिलकर कभी “माधव” समीकरण खड़ा किया था। उसके ज्यादातर नेता या तो अब नहीं हैं या फिर राजनीति से संन्यास ले चुके हैं। हालांकि वंजारी समुदाय की कमी पूरी करने के लिए गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे पार्टी का हिस्सा हैं। लेकिन अभी बीजेपी आलाकमान उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहा है।

2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर माली, धनगर और वंजारी समुदाय के लोगों को अपने पाले में लाने की कोशिश में बीजेपी जुट गई है। लेकिन अपने मकसद में बीजेपी किस हद तक कामयाब रहेगी ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा।

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