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ओपीएस की मांग : रामलीला मैदान में जुटे लाखों कर्मियों की हुंकार से गड़बड़ हो सकता है बीजेपी का सियासी खेल !

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अखिलेश अखिल 


जब देश के पांच राज्यों में पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस लागू है तो फिर देश भर में यह योजना लागू क्यों नहीं हो सकती ? कुछ इसी तरह के नारे आज दिल्ली के रामलीला मैदान में लगते रहे। देश भर से आये लाखों कर्मियों ने आज रविवार को विशाल रैली का आयोजन किया। कहा जा रहा है कि इस तरह की रैली आज तक नहीं हुई थी। हर राज्य के कर्मी इस रैली में शामिल हुए थे और बस एक ही मांग कर रहे थे कि हमें नयी पेंशन योजना स्वीकार नहीं। .हमें पुरानी पेंशन योजना चाहिए।                
        केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठनों के नेताओं ने ‘पेंशन शंखनाद महारैली’ में कहा, अगर सरकार अपनी जिद नहीं छोड़ती है तो ‘वोट की चोट’ के आधार पर ‘पुरानी पेंशन’ बहाल कराएंगे। सरकारी कर्मियों, पेंशनरों और उनके रिश्तेदारों को मिलाकर यह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। चुनाव में बड़ा उलटफेर करने के लिए यह संख्या निर्णायक साबित होगी। बता दें कि  रैली का आयोजन नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के बैनर तले हुआ है। एनएमओपीएस के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा कि पुरानी पेंशन, कर्मियों का अधिकार है। वे इसे लेकर ही रहेंगे। दिल्ली का रामलीला मैदान, सरकारी कर्मियों से खचाखच भरा हुआ था।               
            बंधु ने कहा, ‘पुरानी पेंशन’ बहाली का मुद्दा, अब जीवन मरण का प्रश्न बन चुका है। जब पांच राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल हो सकती है तो पूरे देश में क्यों नहीं। देश की आंतरिक और सीमा की सुरक्षा में तैनात सीएपीएफ जवानों को भी पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को भारत संघ के शस्त्र बल मानते हुए उन्हें पुरानी पेन्शन का फायदा देने का फैसला सुनाया था। केंद्र सरकार ने उसे लागू करने की बजाए सुप्रीम कोर्ट में स्थगन आदेश ले लिया।
                  ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद ‘जेसीएम’ के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा था, लोकसभा चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू नहीं होती है तो भाजपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कर्मियों, पेंशनरों और उनके रिश्तेदारों को मिलाकर यह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। चुनाव में बड़ा उलटफेर करने के लिए यह संख्या निर्णायक है। केंद्र के सभी मंत्रालय/विभाग, रक्षा कर्मी (सिविल), रेलवे, बैंक, डाक, प्राइमरी, सेकेंडरी, कालेज एवं यूनिवर्सिटी टीचर, दूसरे विभागों एवं विभिन्न निगमों और स्वायत्तशासी संगठनों के कर्मचारी, ओपीएस पर एक साथ आंदोलन कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा एनपीएस में चाहे जो भी सुधार किया जाए, कर्मियों को वह मंजूर नहीं है। कर्मियों का केवल एक ही मकसद ‘पुरानी पेंशन योजना’ को बहाल कराना है।  
                   बता दें कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बीडी चंद्रचूड, जस्टिस बीडी तुलजापुरकर, जस्टिस ओ. चिन्नप्पा रेड्डी एवं जस्टिस बहारुल इस्लाम शामिल थे, के द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत रिट पिटीशन संख्या 5939 से 5941, जिसको डीएस नाकरा एवं अन्य बनाम भारत गणराज्य के नाम से जाना जाता है, में दिनांक 17 दिसंबर 1981 को दिए गए प्रसिद्ध निर्णय का उल्लेख करना आवश्यक है। इसके पैरा 31 में कहा गया है, चर्चा से तीन बातें सामने आती हैं। एक, पेंशन न तो एक इनाम है और न ही अनुग्रह की बात है जो कि नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर हो। यह 1972 के नियमों के अधीन, एक निहित अधिकार है जो प्रकृति में वैधानिक है, क्योंकि उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के खंड ’50’ का प्रयोग करते हुए अधिनियमित किया गया है। पेंशन, अनुग्रह राशि का भुगतान नहीं है, बल्कि यह पूर्व सेवा के लिए भुगतान है।

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