अखिलेश अखिल
इतना तो सबको पता है कि आगामी चुनाव में वरुण गांधी को लेकर बीजेपी काफी सतर्क है और संभव है कि उनको पार्टी टिकट भी न दे। बीजेपी के भीतर इस बात को लेकर भी मंथन जारी है कि वरुण के इलाके से किसी दूसरे नेता को मैदान में उतारा जाए। चर्चा तो वरुण गांधी की मां मेनका गाँधी को लेकर भी चल रही है कि बीजेपी उन्हें भी शायद ही मैदान में उतार पाएगी। ऐसे में चर्चाओं के इस खेल में यह साफ़ लगता है कि मौजूदा बीजेपी अभी वरुण और मेनका को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पायी है। लेकिन बीजेपी को यह भी डर है कि अगर इन्हे टिकट नहीं दी गई तो फिर कौन दुसरा आदमी होगा जो इनके इलाके से चुनाव जीतकर पार्टी को मजबूत बना सकेंगे और सरकार बनाने के लिए यूपी के लक्ष्य को पूरा कर सकेंगे।
लम्बे समय से संघ और बीजेपी नेताओं के बीच इस पर मंथन जारी है। लेकिन एक खबर ये भी है कि वरुण और मेनका चुनाव लड़ेंगे और अपनी सीटों से से ही लड़ेंगे इसकी घोषणा वे पहले ही कर चुके हैं और उनके लोग चुनावी मैदान में खड़े भी है और काम भी कर रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर वरुण और मेनका किस पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़ेंगे ? क्या वे निर्दलीय लड़ेंगे या फिर कांग्रेस ,सपा ,टीएमसी या किसी और पार्टी के साथ जायेंगे ?
काफी समय से इसकी चर्चा हो रही है। इस चर्चा को और ज्यादा बल तब मिला था जब राहुल गाँधी की अगुवाई में भारत जोड़ो यात्रा निकाली जा रही थी। कई जगहों पर प्रत्रकारों ने वरुण को लेकर राहुल से सवाल पूछे थे। लेकिन राहुल ने कोई ख़ास जबाब नहीं दिया था केवल इतना भर कहा था कि वरुण अभी जिस विचारधारा में है अगर वे कांग्रेस में आते हैं तो उन्हें कठिनाई होगी। राहुल गाँधी ने इससे ज्यादा कुछ भी नहीं कहा था। कई लोगो ने राहुल के इस बयान के कई मायने निकालने की कोशिश की। यात्रा तो अब खत्म हो गई है लेकिन वरुण से जुड़े सवाल आज भी जस के तस है। वरुण आज भी अपने तरीके की राजनीति करते दिख रहे हैं और अपनी रौ में आगे बढ़ रहे हैं।
लेकिन राजनीति में सबकुछ वही नहीं होता जो दिखता है। राजनीति में यह भी नहीं होता जो बयान समाने आते है। नेताओं के बयान कुछ भी हो सकते हैं लेकिन जो परिणाम सामने आते हैं वे बयान से उलट होते हैं। समय के साथ राजनीति बदलती है और उसके मिजाज भी बदलते हैं। ऐसे में अब सवाल है कि जब देश के भीतर आगामी लोक सभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है तब फिर से वरुण को लेकर बाते ज्यादा ही होने लगी है। कांग्रेस के भीतर भी कुछ लोग वरुण को लेकर चर्चा कर रहे हैं। वरुण के आने और नहीं आने को लेकर बाते हो रही है।
जहां तक कांग्रेस के भीतर वरुण को लेकर जो चर्चा चल रही है उसमे दो तरह की बाते हैं। कुछ मान रहे हैं कि वरुण को पार्टी में लेकर कांग्रेस को मजबूती प्रदान की जा सकती है। यूपी के तराई इलाकों में वरुण की ख़ास पहचान है और करीब दर्जन भर सीटों पर उनका असर भी है। वरुण अगर कांग्रेस में आते हैं तो इसका लाभ पार्टी को मिल सकता है। वरुण जिस अंदाज में बोलते हैं। लोगों को प्रभावित करता है। वरुण की पहचान एक राष्ट्रीय वोकल नेता की है और राष्ट्रीय मसलों पर वे तर्कों के साथ अपनी बात रखते हैं। इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में वरुण के जरिये पार्टी को जो भी लाभ हो लेकिन राज्य के चुनाव में बीजेपी की राजनीति को ध्वस्त करने में वरुण बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। प्रियंका और वरुण की जोड़ी कमाल कर सकती है और इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। कुछ इसी तरह की बातें पार्टी नेताओं के बीच चलती है।
लेकिन कुछ ऐसे लोग भी है कि जो वरुण को लेकर घबराते भी हैं। ऐसे लोगों की कहानी ये हैं कि उन्हें कि वरुण कांग्रेस में आते हैं तो उनकी राजनीति ख़राब हो सकती है। वरुण की छवि अभी तक कटटर हिंदुत्व वाली रही है और इस मामले में वे जेल भी जा चुके हैं लेकिन वरुण अब बदल भी चुके हैं। वे बीजेपी की छवि को छोड़ भी चुके हैं। पिछले समय के उनके भाषणों को देखे तो साफ़ लगता है कि वरुण वही कुछ कहते नजर आते हैं जो बार -बार राहुल गाँधी कहते रहे हैं। एकता अखंडता की बात राहुल भी करते हैं और वरुण भी। सेक्युलर समाज की बात राहुल भी करते हैं और वरुण भी। अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई की बात राहुल भी करते हैं और वरुण भी। हिन्दू -मुसलमान के बीच तनाव की बात राहुल भी करते हैं और वरुण भी और साथ ही किसानो के हित की बात राहुल भी करते हैं और वरुण भी।
फिर भी वरुण और राहुल के बीच अभी तक मिलान की सम्भावना नहीं बन सकी है। एक सवाल के जबाब में राहुल गाँधी ने यह भी कहा था कि वरुण को लेकर जो भी फैसला होना है वह पार्टी अध्यक्ष को करना है। यानी मलिकार्जुन खड़गे इस पर फैसला करेंगे। लेकिन अभी इस पर कोई बात नहीं हुई है। सच तो यही है कि इस पर फैसला खड़गे को नहीं करना है। यह फैसला तो वरुण मेनका और सोनिया के बीच होना है। अगर दोनों परिवार के बीच सहमति बनती है तो सब कुछ मिनटों सुलझ सकता है।
कहा जा रहा है कि प्रियंका गाँधी वरुण को पार्टी में लाएंगे .लेकिन सवाल है कि क्या वरुण खुद भी कांग्रेस में आने को अभी तैयार हैं ? लगता है अभी वरुण भी इसकी प्रतीक्षा करेंगे। यह बात और है कि वरुण को लेकर सपा और टीएमसी भी गंभीर है और इन दलों की चाट भी है कि वरुण इनके साथ जुड़े लेकिन वरुण मौन हैं।
दस राज्यों के चुनाव की दुदुम्भी बज चुकी है और कहा जा रहा है कि मई महीने के बाद वरुण कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। राहुल की नजर भी वरुण पर है और राहुल चाहते हैं कि छोटे भाई का साथ उन्हें मिले। लेकिन वक्त से पहले कुछ शायद ही संभव हो पाए। निश्चित तौर पर वरुण के जरिये कांग्रेस यूपी को साध सकती है। वरुण के जरिये उत्तराखंड को भी कांग्रेस साध सकती है लेकिन अभी कांग्रेस भी इंतजार में है। कांग्रेस की भीतरी रणनीति का इन्तजार कीजिये ,बहुत कुछ नया देखने को मिलेगा। उस नया में वरुण की राजनीति भी दिखेगी और बीजेपी को घेरने की कूटनीति भी।