रांची (बीरेंद्र कुमार): आज पूरा देश भगवान बिरसा मुंडा की जयंती मना रहा है। झारखंड के लिए तो यह विशेष महत्व का दिन है, क्योंकि बिरसा मुंडा का जन्म इसी झारखंड के खूंटी जिला के उलिहातू गांव में हुआ था। बिहार से बंटकर झारखंड अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में भी बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर को ही आया था।
बिरसा मुंडा ने अपने मुठ्ठी भर अनुयायियों के साथ मिलकर किया था अंग्रेजों की तोप बंदूकों का सामना
बिरसा मुंडा ने अपने मुट्ठी भर अनुयायियों के साथ मिलकर पारंपरिक हथियारों के साथ अंग्रेजों के गोली- बंदूक और तोप का सामना करते हुए उसे नाकों चने चबवा दिया था। फिर भी भारतीय इतिहास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था। अब यह नरेंद्र मोदी का आदिवासी प्रेम हो या फिर आदिवासी प्रेम के नाम पर वोट के जुगाड़ करने की सोच, लेकिन उन्होंने पिछले वर्ष से पूरे देश में भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन को बिरसा जयंती के रूप में मनाने की परंपरा प्रारंभ कर दी। अब लोग बिरसा मुंडा के बारे में और बहुत सारी बातें जानना चाहते हैं।
जानें भगवान बिरसा मुंडा की वंशावली
धरती आबा के नाम से प्रसिद्ध भगवान बिरसा मुंडा की बात करें तो इस समय उलीहातू में उनकी पांचवी पीढ़ी रह रही है। भगवान बिरसा मुंडा की वंशावली में सबसे पहला नाम लकरी मुंडा का आता है। लकरी मुंडा के दो पुत्र हुए पहला सुगना मुंडा और दूसरा पसना मुंडा। उसके बाद सुगना मुंडा के तीन पुत्र हुए पहला कोन्ता मुंडा दूसरा भगवान बिरसा मुंडा और तीसरा कानु मुंडा। कोन्ता मुंडा और भगवान बिरसा मुंडा के कोई पुत्र नहीं हुए। इसके बाद भगवान बिरसा मुंडा का वंश उनके भाई कानू मुंडा से चला।
कानू मुंडा के एक पुत्र हुए मोंगल मुंडा। मोंगल मुंडा के दो पुत्र हुए। पहला सुखराम मुंडा और दूसरा बुधराम मुंडा। बुधराम से 1 पुत्र रवि मुंडा हुआ और उसके बाद उसका वंश वहीं खत्म हो गया। दूसरी तरफ सुखराम मुंडा के 4 पुत्र हुए, पहला मोंगल मुंडा दूसरा जंगल सिंह मुंडा मुंडा तीसरा कानू मुंडा और चौथा राम मुंडा। कानू मुंडा के 2 पुत्र हैं , पहला बिरसा मुंडा और दूसरा नारायण मुंडा। उलिहातू में इस समय भगवान बिरसा मुंडा के पोते सुखराम मुंडा,उनके तीन बेटे और बहूऐं रहती हैं। आदिवासी समाज में पूर्वजों के नाम पर बच्चों के नाम रखने की परंपरा है। यही कारण है कि इस वंशावली में कानू मुंडा और बिरसा मुंडा जैसे नाम दुहराए गए हैं।