विकास कुमार
कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस पार्टी ने पांच बड़े वादे किए थे। अब इन पांच वादों को पूरा करने के लिए सरकार को भारी भरकम खर्च करना पड़ रहा है। इस वजह से विकास के काम के लिए ज्यादा फंड नहीं बचा है। फंड नहीं मिलने से कांग्रेस पार्टी के कुछ विधायक नाराज बताए जा रहे हैं। इस बीच डीके शिवकुमार ने कहा कि सरकार इस साल विकास के ज्यादा कार्य नहीं कर सकती है,क्योंकि सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता पार्टी द्वारा जारी किए गए चुनाव पूर्व गांरटी को लागू करना होगा।
वहीं विधायकों के नाराज होने की खबर को उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने खारिज कर दिया है,लेकिन आग के बिना धुआं नहीं होता है। बताया जा रहा है कि कुछ विधायकों ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को चिट्ठी लिखकर शिकायत की है। इस चिट्ठी में विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए पैसे का आवंटन न होने पर नाराजगी जताई थी। वहीं उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इस मामले पर सफाई दी है कि मुख्यमंत्री को 11 विधायकों का वह शिकायत पत्र फर्जी था। कोई भी रैंडम लेटर पैड का उपयोग नहीं कर सकता और उसमें इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकता है। हमें शेष वित्तीय वर्ष के लिए पांच चुनावी वादों के लिए 40 हजार करोड़ रुपए अलग रखने होंगे। हम इस साल नई विकास परियोजनाओं के लिए पैसा नहीं दे सकते हैं। मुख्यमंत्री ने अपने बजट भाषण में सभी विधायकों को धैर्य रखने की सलाह दी थी। विधायकों को फंड के लिए इंतजार करने के लिए कहा गया था। क्योंकि चुनावी वादों को पूरा करने पर पैसे का एक बड़ा खर्च होगा।
वहीं इस मामले पर डीके शिवकुमार ने तर्क दिया है कि राज्य के लोगों के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा चुनाव पूर्व जो पांच गारंटी का वादा किया था। उसके लिए सरकार को संसंधान जुटाने होंगे। इसलिए विधायकों को अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के लिए पैसे की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। कम से कम इस वित्तीय वर्ष के दौरान तो नहीं ही करनी चाहिए। यहां तक कि मेरे विभाग- जल संसाधन और सिंचाई को भी कोई धनराशि नहीं मिली है।
कर्नाटक सरकार को पांच चुनावी वादों के लिए हर साल लगभग 59 हजार करोड़ रुपए का इंतजाम करना होगा। ये टास्क किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक सरकार को पांच वादे पूरा करने का सख्त निर्देश दे दिया था। इसलिए बजट का बड़ा हिस्सा इन वादों को पूरा करने में लगा दिया गया है। ऐसे में विकास की रफ्तार पर असर पड़ना तय है। इसलिए राजनीतिक दलों को जनता से वादा करते वक्त समझदारी से काम लेना चाहिए। क्योंकि विकास की रफ्तार कम होने से किसी भी राज्य मे गरीबी बढ़ जाती है।