रांची (बीरेंद्र कुमार): झारखंड स्थापना दिवस, 15 नवंबर के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू होंगी। इस अवसर पर वे रांची के मुख्य कार्यक्रम में तो शामिल होंगी ही लेकिन इसके अलावा वे भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातु और डोंबारी बुरु भी जाएंगी। डोंबारी बूरु रांची से 50 किलोमीटर दूर खूंटी जिला के अड़की ब्लॉक मे स्थित है।
भगवान बिरसा मुंडा के उलगुलान का गवाह है डोंबरी बुरु
खूंटी जिला के उलिहातु जो भगवान बिरसा मुंडा का जन्म स्थल है, उसके पास स्थित है डोंबारी बुरु। मुंडारी भाषा में बूरु का अर्थ होता है पहाड़। इसी डोंबारी बुरु पर भगवान बिरसा मुंडा 9 जनवरी 1899 को अपने अनुयायियों के साथ एक सभा कर रहे थे।इस सभा में बड़ी संख्या में आसपास के गांवों के लोग भी आए थे ,जिसमें पुरुषों के साथ ही बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इस सभा में भगवान बिरसा मुंडा लोगों के बीच जल जंगल और जमीन को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध उलगुलान यानी क्रांति का बिगुल फूंक रहे थे। सभा बड़े ही गोपनीय तरीके से आयोजित की गई थी लेकिन अंग्रेजों को बिरसा मुंडा और उनके अनुयायियों द्वारा की जा रही इस सभा की खबर किसी तरह से मिल गई। खबर मिलते ही अंग्रेज अपनी सेना लिए पूरी तैयारी के साथ वहां आ गए और आते ही डोंबारी बूरू को चारों तरफ से घेर लिया।
अंग्रेजों को चकमा देने में सफर रहे बिरसा मुंडा
इसके बाद अंग्रेजी सेना ने बिरसा मुंडा को ललकारते हुए हथियार डालकर आत्मसमर्पण करने के लिए कहा और दबाव बढ़ाने के लिए चारो तरफ से गोलियां बरसाने लगे। बिरसा मुंडा ने भी हथियार डालने की जगह शहीद होना ही उचित समझा। उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ मंत्रणा की और फिर देखते ही देखते बिरसा मुंडा और उनके समर्थक आदिवासी भी अंग्रेजों पर कहर बनकर टूट पड़े। इस पर अंग्रेजी सेना और ज्यादा आक्रोशित हो गई और बिना इस बात पर विचार किए कि इस सभा में महिलाएं और बच्चे भी मौजूद हैं ,जमकर यहां गोलियां बरसाई जिसमें सैकड़ों लोग शहीद हो गए। हालांकि इस मुठभेड़ में भी अंग्रेजों पर प्रहार करते हुए बिरसा मुंडा चकमा देकर यहां से निकलने में सफल रहे।
शहादत की कहानी बयां करता विशाल स्तंभ
डोंबारी बूरू की चोटी पर 110 फीट ऊंचा एक स्तंभ है। यह स्तंभ आज भी 9 जनवरी 1899 की घटना में अंग्रेजी सेना द्वारा नृसंशतापूर्ण किए गए गोलीबारी में शहीद हुए वीरों की कहानियां बयां करती है। बरसों बाद इसी तर्ज पर अंग्रेजों ने जलिया वाले बाग में संस्था पूर्वक बड़ी मात्रा में उस सभा में मौजूद महिलाओं और बच्चों की गोली चला कर हत्या कर दी थी जिसे इतिहास में एक बड़ी घटना माना जाता है। लेकिन डोंबारी बुरु की घटना को इतिहास में वह स्थान नहीं मिला सका था। ऐसे में पूर्व राज्यसभा सांसद , समाजशास्त्री और साहित्यकार डॉ रामदयाल मुंडा के प्रयास से यहां एक विशाल स्तंभ का निर्माण कराया गया जो आज भी बिरसा मुंडा के उलगुलान और यहां के लोगों की शहादत की कहानी बयां करता है।