इजरायल हमास और लेबनान पर दो तरफा हमला कर रहा है. ईरान की सेना इजरायल को सबक सिखाने की तैयारी कर रही है. किसी भी समय इजरायल में हवाई हमले कर भयानक तबाही मचा सकती है. उधर, अमेरिका ने इजरायल के पड़ोस में सीरिया पर मिसाइल अटैक कर दिया है. इसमें 37 आतंकी मारे गए हैं, सीरिया भी अमेरिकी हमले के खिलाफ इजरायल को सबक सिखाने पर आमदा है. खतरे की आहट भांपते हुए अमेरिकी नौ सेना के युद्धक पोत फारस की खाड़ी की ओर रवाना हो चुके हैं.
घमासान में केवल इजरायल, फिलीस्तीन, लेबनान, सीरिया और अमेरिका ही शामिल नहीं हैं. इजरायल और ईरान लगातार एक-दूसरे को ललकार रहे हैं. कभी भी पूरी लड़ाई इजरायल और ईरान के बीच आमने-सामने की हो सकती है. ऐसे में अपने पुराने दुश्मन ईरान को सबक सिखाने के लिए अमेरिका चुुप नहीं बैठ सकता है. अमेरिका की ओर से फारस की खाड़ी की ओर रवाना किया गया युद्धपोत लेबनान या फिलिस्तीन के खिलाफ इजरायल को कवर देने के लिए नहीं है. बल्कि वह ईरान की कारगुजारियों से निपटने के लिए ही है.
इजरायल के मददगार रहे मुस्लिम देश जॉर्डन में भी आंतरिक संकट बढ़ रहा है. यह जॉर्डन के शाही परिवार के इजरायल को समर्थन दिए जाने के कारण ही है, ऐसे में जॉर्डन के शासक वर्ग पर भी खाड़ी संकट में अपना पाला चुनने की मजबूरी है. घरेलू आंतरिक दबाव के कारण जाहिर है कि जॉर्डन के लिए इस्लामी देशों के पक्ष में ही जाने की मजबूरी है. ईरान के सर्वोच्च आध्यात्मिक प्रमुख अयातुल्ला ने खुलेआम इजरायल से जंग में मुस्लिम देशों से समर्थन की अपील की है. इस अपील का असर व्यापक हो सकता है. ऐसे में अब्राहम समझौते की धज्जी उड़ते देर नहीं लगेगी. कतर पहले से ही हमास के समर्थन में है, हमास का राजनीतिक मुख्यालय भी कतर की राजधानी दोहा में है. ऐसे में कतर किधर होगा, आसानी से समझा जा सकता है.
खाड़ी संकट अगर बढ़ता है तो इसके भविष्य को लेकर सऊदी अरब की ओर सबकी निगाहें होंगी. क्योंकि खाड़ी देशों में ईरान के बाद सऊदी अरब सबसे ताकतवर है. धनी तो सबसे ज्यादा है. अमेरिका का दोस्त भी है. ऐसी स्थिति में सऊदी अरब की भूमिका इस पूरे प्रकरण में सबसे प्रभावी होगी. केवल सऊदी अरब ही इजरायल के साथ ईरान, लेबनान और फिलिस्तीन के संकट को विनाशक बनने से रोक सकता है. अमेरिका भी सऊदी अरब के सहारे ही इस संकट का हल निकाल सकता है या खाड़ी देशों के साथ खुद को युद्ध में झोंक सकता है.
भारत के इजरायल, ईरान, सऊदी अरब और अमेरिका सभी देशों से अच्छे संबंध हैं. ऐसे में भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है. हालांकि, ऐसे मामलों में भारत तटस्थता की नीति बरतता रहता है. परंतु बदले हुए संदर्भों में तटस्थता की जगह मध्यस्थता की नीति भारत के लिए ज्यादा कारगर हो सकती है. भारत को युद्ध के लंबा खींचने और ईरान समेत दूसरे खाड़ी देशों के शामिल होने से तेल संकट का भी सामना करना पड़ सकता है. हालांकि, इसके निदान के लिए भारत के पास रूस का विकल्प मौजूद है. फिर भी भारत के सामरिक रणनीतिकारों की इस पूरे संकट पर पैनी निगाह है.