अखिलेश अखिल
महाराष्ट्र एमवीए में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं है । एनसीपी और उद्धव की शिवसेना जिस तरह से कांग्रेस के एजेंडा पर हमला कर रही है उससे कांग्रेस के भीतर की परेशानी को देखा जा सकता है ।कांग्रेस के कई नेता यह मानकर चल रहे है कि अगर एनसीपी और उद्धव ठाकरे को राजनीति कांग्रेस को दबाव में रखने की है तो कांग्रेस को एमवीए से अलग हो जाने में ही भलाई है ।और कांग्रेस ऐसा नही करती है तो लोकसभा चुनाव में उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है ।
दरअसल एनसीपी और उद्धव ठाकरे लगातार कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ा कर रहे हैं ।कांग्रेस जो भी वैचारिक मुद्दे उठती है एनसीपी और ठाकरे को शिवसेना उसे नाकाम कर देती है । सावरकर के मामले में कांग्रेस का विरोध शिवसेना करती है तो अडानी के मसले पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार कांग्रेस के खेल को कमजोर कर रहे हैं ।यही वजह है कि महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने साफ कर दिया है कि जो हालत दिख रही है उसमे कांग्रेस को एमवीए से बाहर निकल जाना ही बेहतर है ।पटोले ने कहा है कि शिवसेना किसी भी सूरत में कांग्रेस की स्वाभाविक सहयोगी नही है ।एनसीपी जरूर स्वाभाविक सहयोगी है लेकिन कॉरपोरेट को बचाने के फेर में एनसीपी कांग्रेस के लिए बाधा बन जाती है । ऐसे में एनसीपी भी आगे कांग्रेस के साथ खड़ा नही हो सकती ।बेहतर तो यही है कि कांग्रेस एमवीए से निकल कर कुछ दलों के साथ मिलकर आगे की राजनीति करे ।
अडानी के मसले पर राहुल गांधी बेहद आक्रामक है ।वी लगातार अडानी और सरकार के रिश्ते पर हमला कर रहे हैं और सवाल दाग रहे हैं ।लेकिन शरद पवार अडानी को बचाते रहे हैं ।पिछले दिनों शरद पवार ने अडानी के न्यूज चैनल को इंटरव्यू दिया और कहा कि जिस हिंदनबर्ग को रिपोर्ट पर देश को राजनीति में हलचल है उस हिंदनवर्ग की क्या साख है इसकी जानकारी किसी को नहीं है । पवार ने कहा कि हिंदनवर्ग ने जानबूझ कर अडानी को टारगेट किया है ।पवार ने अडानी अंबानी की तुलना टाटा बिड़ला से की है और संसद में जेपीसी की मांग को गलत बताया है ।
अचानक पवार के बदले इस स्टैंड से सारा विपक्ष भी हतप्रभ है ।एनसीपी लगातार जेपीसी की मांग पर कांग्रेस के साथ खड़ी थी ।कांग्रेस की हर बैठक में एनसीपी नारे लगा रही थी और जेपीसी की मांग कर रही थी ।लेकिन अब पवार जेपीसी की मांग को गलत बता रहे हैं ।इस खेल से कांग्रेस का अभियान भी कमजोर हो रहा है । जानकर मान रहे हैं कि पवार की यह राजनीति कांग्रेस के एजेंडे को कमजोर करने की रणनीति है । कांग्रेस अभी इस बात को समझ नही पर रही है कि संसद सत्र के दौरान जब सभी विपक्ष अडानी के मसले पर एक थी तब अचानक क्या हो गया ।कांग्रेस इस मसले को कर्नाटक चुनाव तक जिंदा रखना चाहती है जबकि एनसीपी ऐसा नही चाहती ।लगता है पवार किसी और गुप्त एजेंडा पर काम कर रहे हैं ।
पिछले दिनों सावरकर पर राहुल गांधी के बयान को लेकर उद्धव ठाकरे नाराज हो गए थे। उन्होंने तालमेल खत्म करने तक की धमकी दे दी थी। उसके बाद कई दिन तक शिव सेना के नेता कांग्रेस की बैठकों का बहिष्कार करते रहे थे। तब भी शरद पवार ने कांग्रेस पर दबाव बनाया था कि उसके नेता सावरकर के बारे में बोलना बंद करें। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि हिंदुत्व को लेकर वह कुछ बोलती है और सावरकर के बहाने वैचारिक लड़ाई की जमीन तैयार करती है तो शिव सेना को दिक्कत होती है और कॉरपोरेट के खिलाफ लड़ाई छेड़ती है तो एनसीपी को दिक्कत होती है। सो, कांग्रेस के नेता इन महाराष्ट्र के बाहर इन दोनों सहयोगियों की अनदेखी करके बाकी पार्टियों के सहयोग से अपना एजेंडा आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है।