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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री 26 नवंबर को लेंगे शपथ,लेकिन मुख्यमंत्री का नाम अभी भी नेपथ्य में

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महाराष्ट्र में 26 नवंबर को महायुति के मुख्यमंत्री, पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे। लेकिन ये मुख्यमंत्री कौन होंगे, इसका खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है, और नेपथ्य में अभी तक इसपर विचार मंथन ही चल रहा है। महायुति को यह डर अभी भी सता रहा है कि मुख्यमंत्री पद के तीनो उम्मीदवारों के समर्थक दलों के कार्यकर्ताओं का रुख महायुति को लेकर तब क्या होगा जब इनमें से दो मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे।

अंदरखाने की बात करें तो महायुति के तीनों राजनीतिक दल के बड़े नेता सर्वमान्य मुख्यमंत्री के नाम का चयन करने में जुटे हुए हैं। चुनाव में महायुति के विभिन्न घटक राजनीतिक दलों के जीते हुए उम्मीदवारों के आंकड़े भी उपलब्ध हैं, लेकिन पूर्व में मुख्यमंत्री के चयन को लेकर कोई फार्मूला तय नहीं होने के कारण,अब तीनों घटक राजनीतिक दल इन आंकड़ों की व्याख्या कुछ इस तरह से कर रहे हैं, जिससे उनके दल का ही मुख्यमंत्री महायुति का मुख्यमंत्री बन सके। इस बीच अजीत पवार के द्वारा देवेंद्र फडणवीस को समर्थन देने की बात सामने आ रही है। अलबत्ता शिंदे समर्थकों का अभी भी मानना है कि शिंदे के नेतृत्व में महायुति के द्वारा विधान सभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद दोबारा मुख्यमंत्री पद इन्हें ही मिलना चाहिए। आईए प्रोबेबिलिटी थ्योरी के आधार पर जानें कि महाराष्ट्र का मुख्य मंत्री बनने की किसकी कितनी संभावना है।

महायुति गठबंधन के नेता के
तौर पर एकनाथ शिंदे को अगला मुख्यमंत्री पद मिलने की संभावनाओं को देखें तो प्रोबेबिलिटी के थ्योरी के अनुसार यह एक बटा तीन यानि 33.33 होता है, लेकिन अगर बीजेपी के अलग-अलग राज्यों में हुए चुनावों में मुख्य मंत्री पद देने को लेकर लिए गए निर्णय को एक वेटेज बनाया जाता है, तो एकनाथ शिंदे का यह 33.33% की संभावना वाली प्रोबेबिलिटी थ्योरी 100 % तक में बदल सकती है।

भारतीय जनता पार्टी जहां अकेले चुनाव लड़ती है तो वहां मुख्यमंत्री को लेकर भले ही इसके फैसले चौंकाने वाले होते हैं ।स्थापित मुख्यमंत्री की जगह पहली बार एमएलए बनने वाले तक को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है, लेकिन जहां गठबंधन की सरकार है तो वहां वह गठबंधन के घटक दल के अपने पिछले मुख्यमंत्री को ही आगे भी वरीयता देती है, चाहे भारतीय जनता पार्टी के पास कुल सीटों का कितना ही बड़ा प्रतिशत क्यों ना रहे। उदाहरण के तौर पर आप बिहार को ले सकते हैं जहां बीजेपी के पास लगातार बहुमत रहने के बावजूद इसके द्वारा नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाता रहा है।

नीतीश कुमार ने तो कई बार बीजेपी को धत्ता बताकर आरजेडी और कांग्रेस के साथ वाले गठबंधन में जाकर भी मुख्यमंत्री का पद संभाला है, लेकिन उसके बावजूद बाद में घूम कर एनडीए में आने पर हर बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही बनाया जाता रहा है। एकनाथ शिंदे ने तो अबतक कभी बीजेपी से दगाबाजी नहीं की है। यहां तक कि इन्हीं के नेतृत्व में महायुति ने महाराष्ट्र का यह चुनाव भी जीता है। शिवसेना समर्थक एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए जोरदार तरीके से नारे भी लगा रहे हैं, ताकि इनकी मांग पर केंद्र सरकार मोहर लगा सके।

दरअसल एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने करने के दौरान कार्यकर्ताओं और नेताओं में बड़े पैमाने पर मतभेद भी नहीं होगा, क्योंकि वर्तमान सरकार में जैसे सब मिलकर रह रहे हैं वही क्रम आगे भी चलता चला जाएगा।साथ ही बीजेपी का अपने गठबंधन के घटक दलों का ध्यान रखने वाली विशेष छवि भी बनेगी ।

बात अजित पवार के मुख्यमंत्री बनने की संभावना को लेकर की जाए तो प्रोबेबिलिटी के थ्योरी के अनुसार उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना भी एक बटा तीन यानी 33.33% है। उनके इस प्रतिशत को 100% तक पहुंचने में थोड़ी कठिनाई है,क्योंकि शिवाय अजीत पवार के खुद की चाहत के साथ इनकी पत्नी सुनेत्रा पवार और पार्टी वर्करों की चाहत के अलावा और कोई अन्य वेटेज नहीं है। यहां तक की इनके दल का स्ट्राइक रेट भी शिंदे के शिव सेना और फडणवीस के बीजेपी से कम ही है। साथ ही उनके द्वारा अड़ियल रुख अपनाना या साथ छोड़ने की स्थिति में भी महायुति गठबंधन सरकार बनाने में सक्षम है।

अब बात देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने की संभावना की की जाए तो सैद्धांतिक रूप से प्रोबेबिलिटी के थ्योरी के अनुसार इनके संभावना भी एक बटा तीन यानी 33.33% ही है लेकिन ज्यादातर वेटेज उनके पक्ष में है जो इस समय बढ़कर 100% तक जा सकता है यानि वे मुख्यमंत्री बन सकते है।सबसे पहले महायुति गठबंधन के तीनों ही दलों में न सिर्फ बीजेपी का विधानसभा सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा है, बल्कि इसका स्ट्राइक रेट भी 85% यानी सबसे कहीं अधिक है ।इतना ही नहीं उद्धव ठाकरे की सरकार के गिरने के बाद एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर सरकार बनाई जा रही थी तब पूर्व मुख्यमंत्री होने के बावजूद भी इन्होंने पार्टी अनुशासन के दबाव में आकर एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद संभाला था। तब शायद इन्हें कुछ पार्टी और सरकार के स्तर से कुछ सांत्वना तो जरूर ही दिया गया होगा। तब इन्होंने एक चेतावनी वाले शेर कि मेरा पानी उतरते देख, यहां घर ना बसा लेना,क्योंकि मैं समुंदर हूं ,वापस लौट के आऊंगा कहकर अपनी आगामी नीति का खुलासा कर दिया था।अब वे बड़ी बहुमत के साथ वापस आए हैं तो यह एक बड़ी लहर की ही तरह है, लोग अगर सहयोग करें तो ठीक अन्यथा विरोध करने वाले को बड़ी पटकनी भी दे दी जाएगी ।

प्रोबेबिलिटी थ्योरी किसी के लिए कितना ही फेवरेबुल क्यों न हो,हमेशा कुछ ना कुछ प्रोबेबिलिटी विपक्ष के लिए भी बचता ही है। ऐसे में अगर देवेंद्र फडणवीस किसी कारण विशेष से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बन पाते हैं,तब शायद वे इस बार सरकार में भी शामिल नहीं हों और ना ही छोटा-मोटा किसी आयोग का अध्यक्ष जैसा पद ही लें। तब देवेंद्र फडणवीस के लिए जो विकल्प बचता है वह हैं कि इन्हें केंद्र में मंत्री पद दिया जाए और राज्यसभा के माध्यम से इन्हें केंद्र में लाया जाए।

देवेंद्र फडणवीस के लिए एक अन्य विकल्प यह है कि उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति से ऊपर लेकर आया जाए और बीजेपी जेपी नड्डा को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर एक्सटेंशन देने पर रोक लगाकर देवेंद्र फडणवीस को यह पद सौंप दे।

कहा जाता है कि तर्क तो तर्क होता है और हकीकत हकीकत। हकीकत का फैसला तो शिवसेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष एकनाथ शिंदे, एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत पवार और भारतीय जनता पार्टी के पार्लियामेंट्री बोर्ड के द्वारा अधिकृत बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही मिलकर करना है,ताकि महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री सर्वमान्य हो।

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