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भारत की अध्यक्षता में आज ग्लोबल साउथ शिखर सम्मलेन की शुरुआत हुई। यह सम्मेलन वर्चुअल स्तर पर ही की गई। सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए ईराक के उप प्रधानमंत्री फुआद हुसैन ने सबसे पहले पीएम मोदी की काफी सराहना की साथ ही इस बात पर जोर दिया कि इराक ग्लोबल साउथ का एक अभिन्न अंग बना हुआ है और सभी के लिए एक स्थायी और समृद्ध भविष्य का साझा दृष्टिकोण चाहता है।
शिखर सम्मेलन में अपने भाषण में हुसैन ने सम्मेलन की मेजबानी के लिए भारत सरकार को धन्यवाद दिया और पीएम मोदी और विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर को अपना विशेष धन्यवाद दिया।
“साझा चुनौतियों” को संबोधित करते हुए, मंत्री ने जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा और सतत और टिकाऊ विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने के लिए विकसित देशों के साथ सामूहिक कार्रवाई के महत्व पर बात की।
इराक के विदेश मंत्रालय ने कहा, “उन्होंने बताया कि वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में इराक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने और बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने में अपनी निर्यात क्षमता का विस्तार करने के लिए देश की प्रतिबद्धता की ओर इशारा किया। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों से सभी के लिए एक स्थायी ऊर्जा भविष्य के निर्माण में सहयोग करने की अपील की।”
कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की दिशा में एक कदम के रूप में पांच मिलियन पेड़ लगाने की इराक की पहल पर प्रकाश डालते हुए, हुसैन ने कहा कि देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक उपायों के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग का समर्थन करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए नीतियों को लागू करना शामिल है।
सभा को संबोधित करते हुए, हुसैन ने दुनिया के सामने आने वाली सुरक्षा चुनौतियों का भी उल्लेख किया, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की अस्थिरता के मद्देनजर, गाजा पट्टी पर इजरायली बमबारी पर इराक की चिंता व्यक्त की, और क्षेत्र में सुरक्षा और शांति बढ़ाने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आह्वान किया।
विदेश मंत्रालय ने कहा, “मंत्री ने इराक के लिए सीमा पार जल संसाधनों के महत्व पर भी चर्चा की, इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए इराक के राजनयिक प्रयासों पर जोर दिया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन में शामिल होना भी शामिल है।”
हुसैन ने विस्तार से बताया कि इराक ने ‘विकास पथ’ पहल शुरू की है, जिसका मकसद खाड़ी क्षेत्र को तुर्की से जोड़ने वाला एक व्यापार गलियारा स्थापित कर क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक एकीकरण को बढ़ाना है, जिससे नए आर्थिक अवसरों के द्वार खुलेंगे और क्षेत्र के भीतर और बाहर व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
इराक, क्यूबा, ब्रुनेई, लेसोथो, मलेशिया, मालदीव, नाउरू, पनामा, पापुआ न्यू गिनी, सोलोमन द्वीप, ताजिकिस्तान, तुवालु, लाओस, कंबोडिया और तुर्कमेनिस्तान सहित कई देश शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।
शिखर सम्मेलन में कई राष्ट्राध्यक्ष और सरकार प्रमुख तथा विदेश मंत्री भाग लेते हैं, जहां वैश्विक विकास द्वारा उत्पन्न चुनौतियों तथा अधिक व्यापक और उन्नत वैश्विक प्रणाली बनाने के तरीकों पर चर्चा की जाती है। यह विकास प्राथमिकताओं और संबंधित समाधानों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा के मुद्दों पर भी चर्चा करता है।
इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ के दृष्टिकोण के विस्तार के रूप में हुई और यह भारत के ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के दर्शन पर आधारित है।