न्यूज़ डेस्क
रिजर्व बैंक की आज से तीन दिवसीय बैठक होने जा रही है। यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है। इस बैठक में कई मौद्रिक मसलो पर मुहर लगने की सम्भावना है। जानकारों के अनुसार आरबीआई की मीटिंग में रेपो रेट में बढ़ोतरी का ऐलान हो सकता है। उम्मीद है कि आरबीआई रेपो रेट में 0.25% तक का इजाफा कर सकता है। फिलहाल रेपो रेट 6.25% है।
मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक हर दो महीने में होती है। इस वित्त वर्ष की पहली बैठक अप्रैल में हुई थी। तब RBI ने रेपो रेट को 4% पर स्थिर रखा था। लेकिन आरबीआई ने 2 और 3 मई को इमरजेंसी बैठक बुलाकर रेपो रेट को 0.40% बढ़ाकर 4.40% कर दिया था। 22 मई 2020 के बाद रेपो रेट में ये बदलाव हुआ था। इसके बाद 6 से 8 जून को हुई बैठक में रेपो रेट में 0.50% इजाफा किया। इससे रेपो रेट 4.40% से बढ़कर 4.90% हो गई। फिर अगस्त में इसे 0.50% बढ़ाया गया, जिससे ये 5.40% पर पहुंच गई। सितंबर में ब्याज दर 5.90% हो गई। दिसंबर में ब्याज दर को बढ़ाकर 6.25% कर दिया गया।
बता दें कि रेपो रेट वह दर है जिस पर आरबीआई द्वारा बैंकों को कर्ज दिया जाता है। बैंक इसी कर्ज से ग्राहकों को लोन देते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ होता है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के लोन सस्ते हो जाएंगे, जबकि रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट से ठीक विपरीत होता है।
रिवर्स रेट वह दर है, जिस पर बैंकों की ओर से जमा राशि पर आरबीआई से ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट के जरिए बाजारों में लिक्विडिटी, यानी नगदी को नियंत्रित किया जाता है। रेपो रेट स्थिर होने का मतलब है कि बैंकों से मिलने वाले लोन की दरें भी स्थिर रहेंगी।
बता दें कि जब आरबीआई रेपो रेट घटाता है, तो बैंक भी ज्यादातर समय ब्याज दरों को कम करते हैं। यानी ग्राहकों को दिए जाने वाले लोन की ब्याज दरें कम होती हैं, साथ ही ईएमआई भी घटती है। इसी तरह जब रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है, तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण ग्राहक के लिए कर्ज महंगा हो जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कॉमर्शियल बैंक को आरबीआई से ज्यादा कीमतों पर पैसा मिलता है, जो उन्हें दरों को बढ़ाने के लिए मजबूर करता है।