Homeदेशअगर बीजेपी कर्नाटक से हार गई तो उसकी दक्षिण की विस्तारवादी राजनीति...

अगर बीजेपी कर्नाटक से हार गई तो उसकी दक्षिण की विस्तारवादी राजनीति रुक जाएगी !

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अखिलेश अखिल
पहले इन आंकड़ों पर नजर डालिये। पूरे दक्षिण भारत की बात करें तो लोकसभा की कुल 129 सीटें हैं, जिसमें से तमिलनाडु की 39, कर्नाटक की 28, आंध्र प्रदेश की 25, केरल की 20 और तेलंगाना की 17 सीटें शामिल है। बीजेपी को 2019 में 129 में से सिर्फ 29 सीटों पर जीत मिली थी। पार्टी को तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में एक भी सीटें नहीं मिली थी। कर्नाटक में अगर बीजेपी कमजोर होती है तो इसका नुकसान लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है। विधानसभा सीटों की करे तो दक्षिण के पांचों राज्यों में विधानसभा की कुल 892 सीटें हैं। इनमें तमिलनाडु की 234, कर्नाटक की 224, आंध्र प्रदेश की 175, केरल की 140 और तेलंगाना की 119 सीटें शामिल है। बीजेपी के पास अभी इन 892 में सिर्फ 109 सीटें हैं।

अब कर्नाटक को लेकर एक चैनल और सर्वे एजेंसी का हालिया ओपिनियन पोल से बीजेपी की परेशानी बढ़ गई है। यह ऐसी परेशानी है जिसकी कल्पना बीजेपी ने कभी नहीं थी। बीजेपी के लिए यह मामला केवल कर्नाटक में शिकश्त होने तक की नहीं है। मामला तो उसके आगे की है। जिस कर्नाटक के आसरे बीजेपी दक्षिण के राज्यों में अपना पैर पसार रही थी या पसारने की कोशिश कर रही थी उस पर भी लगाम लगने की सम्भावना बढ़ गई है। और ऐसा हुआ तो बीजेपी के लिए दक्षिण की राजनीति कमजोर पड़ जाएगी। और ऐसा हुआ तो फिर 2024 में क्या होगा इसकी कल्पना ही की जा सकती है। बीजेपी के भीतर अभी राहुल गांधी के मसले को लेकर जितनी चिंता नहीं है उससे कही अधिक कर्नाटक की चिंता होने लगी है।

पहले हालिया सर्वे पर ही एक नजर डाल लेते हैं। एबीपी और सी वोटर का यह सर्वे करीब 25 हजार लोगों पर की गई है। हलाकि कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में इतने कम सर्वे से कोई बड़े नतीजे पर नहीं पहुंचे जा सकते हैं लेकिन यह भी सच है कि एक माहौल का पता तो चल ही जाता है। संभव है कि सर्वे के मुताबिक चुनाव परिणाम नहीं आये और चुनाव होते -होते परिस्थितियां बदल भी जाए लेकिन अभी जो हालात हैं उससे साफ़ लगता है कि बीजेपी बैकफुट पर है और उसकी सरकार बनने की सम्भावना क्षीण हो गई है। बीजेपी वाले सारे गुना गणित लगा तो रहे हैं लेकिन आगे निकलने की संभावना दिख नहीं रही है।

सर्वे पोल में कहा गया है कि आसन्न चुनाव में कांग्रेस को 115 -127 सीटें मिल सकती है जबकि बीजेपी को 68 -80 सीटें मिल सकती है। 23 -35 सीटें जेडीएस को मिलती दिखाई गई है। 224 सदस्यीय कर्नाटक विधान सभा में सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 113 सीटों की जरूरत होती है। अगर इस सर्वे के मुताबिक चुनावी परिणाम आते हैं तो कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही है और बीजेपी की हार होती दिख रही है। यद् रहे ये सर्वे उस एजेंसी और चैनल की तरफ से कराये गए हैं जिनका झुकाव बीजेपी की तरफ रहा है। ऐसे में बीजेपी को भी लग रहा है कि इस बार कर्नाटक नहीं बचा तो दक्षिण की उसकी राजनीति को पलीता लग सकता है।

बीजेपी को अपने संगठन और प्रधानमंत्री मोदी के इकबाल पर चुनावी खेल बदलने की क्षमता रही है। बीजेपी को हमेशा इसका लाभ भी मिला है। इस सर्वे को दरकिनार भी कर दिया जाए तो एक दूसरे सर्वे ने बीजेपी को और भी चिंता में डाल दिया है। एक अन्य संस्था लोकपोल के मुताबिक कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को 116 -123 सीटें मिलने की बात कही गई है। इसी पोल के मुताबिक बीजेपी को 77 -83 सीटें मिलने की बात कही गई है जबकि जेडीएस के खाते में 21 -27 सीटें मिलने की बात कही गई है।

वैसे बीजेपी ने भी करीब तीन आंतरिक सर्वे कराये हैं लेकिन उसके परिणाम भी खुशनुमा नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी के आंतरिक सर्वे भी अधिकतम 70 -85 सीटों तक ही दस्तक देते हैं। खबर ही कि बीजेपी फिर से एक और आंतरिक सर्वे करा रही है और उसके परिणाम आने के बाद ही उम्मीदवारों की घोषणा की जाएगी।

बीजेपी को लग रहा है कि बीजेपी के सघन अभियान के बाद कर्नाटक की स्थिति बदलेगी। चुनवी प्रचार के लिए बीजेपी ने सभी बड़े नेताओं को मैदान में उतार दिया है। खबर है कि बीजेपी के पक्ष में लोगो का रुझान तैयार करने के लिए 18 हजार से ज्यादा बाहरी कार्यकर्ताओं को कर्नाटक भेजा गया है। बड़े स्तर पर प्रधान मंत्री मोदी ,गृहमंत्री अमित शाह ,पार्टी अध्यक्ष नड्डा और कई बड़े नेताओं के साथ ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सभा और रैली का आयोजन किया गया है। हिंदुत्व की राजनीति लोगो तक पहुंचे इसकी सभी तैयारी की गई है। लेकिन सवाल है कि क्या यह सफल होगा ?

इस बात की चर्चा चल रही है कि अगर ओपिनियन पोल अगर परिणाम में बदल जाते हैं तो बीजेपी को बड़ा झटका लगेगा। बीजेपी की अगली राजनीति तो प्रभावित होगी ही ंदक्षिण की विस्तारवादी राजनीति भी कुंद हो जाएगी। दरअसल कर्नाटक बीजेपी के लिए दक्षिण का द्वार है। यही से बीजेपी दक्षिण को साधने का खेल करती है। कर्नाटक में लोक सभा की 28 सीटें है। कर्नाटक की हार से बीजेपी को लोकसभा चुनाव में तो झटका लगेगा ही तेलंगाना की राजनीति भी प्रभावित होगी। और ऐसा हुआ तो बीजेपी को और भी झटका लगेगा। कर्नाटक की 28 सीटों में से पिछले 2019 के चुनाव में बीजेपी को 25 सीटें हाथ लगी थी। 2014 के चुनाव में बीजेपी को 17 सीटें मिली थी। 2013 में विधान सभा चुनाव में बीजेपी की सत्ता चली गई थी जिसका असर 2014 के लोक सभा चुनाव पर पड़ा और सीटें 17 पर आ गई थी। जबकि 2009 के चुनाव में बीजेपी यहां से 19 लोकसभा सीटें मिली थी। बीजेपी को लग रहा है कि अगर इस बार के चुनाव में हार हो गई तो लोकसभा सीट पर भी असर असर पडेगा और ऐसा हुआ तो फिर बीजेपी की परेशानी बढ़ेगी।

मामला केवल लोकसभा चुनाव पर ही असर पड़ने का नहीं है। राज्यसभा सीट पर भी हार का असर पडेगा। कर्नाटक में राज्यसभा की 12 सीटें है जिनमे से बीजेपी के पास अभी 6 सीटें है जबकि कांग्रेस के पास पांच सीटें और जेडीएस के पास एक सीट है। चुकी राज्य सभा के सदस्य विधान सभा के सदस्यों द्वारा ही चुने जाते हैं इसलिए अगर बीजेपी की हार होगी तो राज्य सभा सदस्यों पर भी असर पड़ेगा। अगले साल चार राज्य सभा सीटों पर यहाँ चुनाव होने हैं अगर बीजेपी की हार होती है तो वे सीटें भी बीजेपी के हाथ से निकल सकती है। बीजेपी की चिंता यह भी है।

दक्षिण के अन्य राज्यों केरल ,तेलंगाना ,आंध्रा और तमिलनाडु में वैसे कहने के लिए बीजेपी मौजूद जरूर है लेकिन उनकी कोई ख़ास जमीन नहीं है। पहली बार तेलंगाना में बीजेपी लड़ती दिख रही है लेकिन उसके परिणाम क्या होंगे कहे नहीं जा सकते। केरल और आंध्रा में बीजेपी के पास कुछ भी नहीं है। कोई सीट भी नहीं। तमिलनाडु और तेलंगाना में बीजेपी का खाता तो खुला हुआ है लेकिन चुनावी राजनीति में वह कोई बड़ा फेर बदल कर सकती है अभी इसकी संभावना कम ही है। इसलिए अगर कर्नाटक से बीजेपी की हार होती है तो बीजेपी को झटका लगेगा और दक्षिण की उसकी सभी राजनीति प्रभावित हो जाएगी।

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