आज भ्रातृ द्वितीया है।उसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। माना जाता है कि आज के दिन बहनों से तिलक करवाने वाले भाइयों की अकाल मृत्यु नहीं होती है।
इसे लेकर प्रचलित कहानी के अनुसार लंबे समय से अपनी बहन यमी से मुलाकात नहीं होने के बाद जब यमराज अपनी बहन यमी के घर पहुंचे तो वहां यमी ने तिलक लगाकर इनका स्वागत किया।फिर प्रसन्नता पूर्वक कुछ समय वहां बिताने के बाद जब वहां से चलने लगे तो उन्होंने बहन यमी से कुछ मांगने के लिए कहा।तब यामी ने भाई यमराज से कहा जैसे में आज आप से मिलकर प्रसन्न हो रही हूं वैसे ही हर बहन अपनी भाई से मिलकर प्रसन्न रहे इसलिए आप मुझे यह वरदान दें आज यानि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीय को जो भी भाई अपनी बहन से तिलक करवाए उसकी अकाल मृत्यु न हो।यमराज ने ऐसा ही होकर बहन यमी की मनोकामना पूर्ण करने का वचन दिया।
सम्प्रति यमराज उस स्थिति में हैं कि वे किसी की मृत्यु कब तक नहीं हो यह निर्धारित कर सकत हैं,लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि मृत्यु के देवता बनने से पूर्व एक बार खुद यमराज की भी मृत्यु हुई हो गई थी।आइए जानते हैं,कैसे यमराज की मृत्यु हुई थी,और फिर कैसे जीवनदान मिलने के बाद वे मृत्यु के देवता बने।
इसे लेकर पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार यमराज और शनि देव में युद्ध छिड़ गया था। दोनों भाई अपनी-अपनी माताओं के अधिकार के लिए आपस में लड़ पड़े थे।गौरतलब है कि यमराज सूर्य और संज्ञा देवी के पुत्र हैं,जबकि शनिदेव सूर्यदेव और छाया देवी की संतान हैं।
दोनों भाइयों शनि देव और यमराज के बीच कई महीनों से चला आ रहा यह युद्ध अब धीरे – धीरे भयंकर मोड़ लेने लगा। इसे देख सूर्य देव समेत सभी देवताओं ने इस युद्ध को रोकने का प्रयास किया, लेकिन सभी के प्रयास विफल हो गए।
चूंकि शनि देव को बालावस्था से ही महादेव के द्वारा न्याय का देवता होने का आशीर्वाद और उनकी कृपा के साथ साथ उनके द्वारा दी गई दिव्य शक्तियां भी प्राप्त थीं, लिहाजा शनि देव ने यमराज को परास्त कर दिया और उन्हें अपने दंडास्त्र से मृत्यु के घाट उतार दिया।
अपने पुत्र यमराज की मृत काया को देख सूर्य देव अत्यंत विचलित हो उठे। सूर्य देव और उनकी दोनों पत्नियों देवी संज्ञा और देवी छाया ने महादेव का आवाहन किया और महादेव के प्रकट होने पर उनसे यम को पुनःजीवित करने का आग्रह किया। लेकिन महादेव ने सूर्य देव की प्रार्थना को ठुकराते हुए उन्हें यह समझाया कि मृत्यु अटल सत्य है और एक मात्र उनके पुत्र के लिए वे इस सत्य को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं।
तब शनि देव ने स्वयं महादेव से प्रार्थना की और उन्हें यम को जीवित करने के पीछे का ठोस कारण बताया। शनि देव ने भगवान शिव से उनके और श्री कृष्ण के बीच हुए संवाद का जिक्र करते हुए कहा कि एक माह के बाद मृत्यु के देवता का दायित्व संभालने के लिए आप स्वयं देवताओं में से ही किसी का चयन करने वाले हैं। इस चयन का आधार मृत्यु के चक्र को पूरा करना है। यम देवता पुत्र हैं किन्तु उन्हें किसी भी प्रकार की दैवीय शक्ति प्राप्त नहीं हुई थी। इस कारण वे अमृत से वंचित थे और उनकी मृत्यु हुई।इस तरह यम ने सर्वप्रथम पृथ्वी पर मृत्यु का चक्र पूरा कर लिया है। इस आधार पर महादेव को यम को न सिर्फ जीवित करना चाहिए बल्कि उन्हें मृत्यु का देवता भी बनाना चाहिए।
भगवान शिव शनि देव के तर्क से प्रसन्न हुए और उन्होंने शनि देव के आग्रह पर सूर्य पुत्र यम को जीवित कर दिया। भगवान शिव ने सूर्य पुत्र यम को मृत्यु के देवता का कार्यभार सौंपा और इस प्रकार सूर्य पुत्र यम मृत्यु देव यमराज बने।
ईयर
मृत्यु देवता के रूप में यमराज न सिर्फ प्राणियों के प्राण हरते हैं बल्कि उनके समस्त कार्यों का लेखा-जोखा कर या तो उनकी आत्मा के मोक्ष की संस्तुति करते हैं या फिर आत्मा को नरक या स्वर्ग में भेजते हैं, जहां कर्मफल भोगने के पश्चात उनका पुनर्जन्म होता है।