झारखंड में खनिजों के अवैध उत्खनन और परिवहन का मुद्दा अक्सर हमारे सामने कभी नरम तो कभी गरम होकर हमारे सामने आता जाता रहता है। इस क्रम में यह मुद्दा इतना गरमा गया है कि विपक्ष से लेकर सत्तापक्ष तक के नेता प्रशासन और सरकार के कुछ प्रमुख पदधारियों द्वारा संचालित होने का आरोप लगाया जाने है। सड़कों पर ही नहीं, विधानसभा तक में यह मुद्दा उछला। समाधान के नाम पर कुछ अवैध खदानों को सील किया गया और इस अवैध धंधे में संलिप्त कुछ ट्रक और हाईवा भी पकड़े गए। लेकिन हकीकत यह है कि आज भी खनिजों का यह अवैध धंधा कमोबेस वैसे ही चल रहा है।
इसी पृष्ठभूमि में झारखंड में एक बड़ा मुद्दा निकलकर सामने आ गया। यह मुद्दा है हेमंत सोरेन द्वारा मुख्यमंत्री रहते हुए रांची के अनगड़ा में अपने नाम से एक खदान का लीज करवा लेना।
भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को आधार बनाकर झारखंड के राज्यपाल से शिकायत कर दी। इसके बाद राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 191 के अंतर्गत विधानसभा के सदस्य की निर्हर्ताओं से जुड़े मामले पर सुनवाई करने से पूर्व संविधान के अनुच्छेद 102 (2) के तहत चुनाव आयोग से राय मांगने की अनिवार्यता की वजह से राज्यपाल रमेश बैस ने चुनाव आयोग से इस बारे में राय मांगी।
चुनाव आयोग ने इस मामले पर राज्यपाल को अपनी राय देने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी सवाल – जवाब किया और इससे जुड़ी प्रक्रिया को पूरी करने के बाद चुनाव आयोग ने अपनी राय झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को भेज दी। चुनाव आयोग का लिफाफा राज्यपाल के पास आकर किस हालत में है और इसमें क्या लिखा है यह या तो चुनाव आयोग को पता है या फिर माननीय राज्यपाल महोदय को, क्योंकि दोनों में से किसी ने इसे अब तक सार्वजनिक नहीं किया है।
इस बीच मीडिया के माध्यम से खबर आने लगी कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन की विधान सभा की सदस्यता रद्द कर दी है। मीडिया के पास यह खबर कैसे आई यह अलग चर्चा और जांच का विषय है क्योंकि चुनाव आयोग से खबर लीक होने के अलावा मीडिया ट्रायल और तथ्यों के आकलन क्षमता से भी मीडिया में ऐसी खबरों का प्रकाशन हो सकता है। मीडिया की यह खबर सच भी ही सकती है और गलत भी।
लेकिन, हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने ऐसी ही खबरों के आधार पर हाल के दिनों मे अपनी हरकतें तेज कर दी। विधायकों का खूंटी और रायपुर भेजना, बिना किसी अविश्वास के विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर विश्वासमत प्राप्त करना और कैबिनेट से झारखंड की स्थानीयता के लिए 1932 के खतियान अनिवार्य करना ऐसी ही प्रमुख घटनाएं हैं।
सरकार ने पहले राज्यपाल से और बाद में चुनाव आयोग से ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में चुनाव आयोग के लिए गए फैसले को सार्वजनिक करने की मुहिम चलाई। राज्यपाल ने अध्ययन कर कुछ दिनों में इसे सार्वजनिक करने की बात कही तो चुनाव आयोग ने उसे दो संवैधानिक संस्थाओं के बीच हुए पत्राचार के प्रिविलेज कम्युनिकेशन का मुद्दा बताते हुए इसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को देने से इंकार कर दिया।
जबतक विधायिकी पर संशय तब तक क्या-क्या कारनामे करेंगे हेमंत?
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा अपने नाम से लीज लिए जाने के बाद ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले मैं विधान सभा की सदस्यता खत्म होना या ना होना एक संवैधानिक प्रश्न है, जिसका जवाब संविधान के दायरे में ही आएगा और नहीं आएगा तो संविधान के संरक्षक के रूप में सुप्रीम कोर्ट का विकल्प मौजूद है। लेकिन, विधानसभा की सदस्यता चली जाने के डर से विधायकों को खूंटी और रायपुर की सैर कराना, विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर बिना किसी के अविश्वास के विश्वास मत प्राप्त करना और फिर कैबिनेट से पुरानी स्थानीयता नीति के कट ऑफ 1985 की जगह 1932के खतियान को अनिवार्य करने के प्रयास करने जिसे 2002ईसवी मैं अस्वीकार कर दिया था और जिसके कारण राज्य एक बार फिर से 2002ईसवी की तरह बाहरी – भीतरी के नाम पर हिंसाग्रस्त होने की तरफ बढ़ रहा है, का उद्देश्य और इसका विकल्प क्या है?
सरकार की तरफ अंगुली उठाते इन प्रश्नों के साथ ही राज्यपाल के पास चुनाव आयोग की ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मुद्दे पर राय दे दिए जाने के बावजूद राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने में देरी करना भी एक बड़ा प्रश्न है। निर्णय लटकाने वाले मामलों में एक बड़ा प्रश्न झारखंड विधानसभा अध्यक्ष से भी जुड़ा हुआ है, जहां 1914 ईस्वी से ही बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव की दलबदल कानून के तहत विधायकी जाने या न जाने का मुद्दा भी अभी तक लटका हुआ है।
ये सारी बातें सिर्फ इसलिए हो पा रही है क्योंकि संविधान में इसके समय और तरीके को लेकर स्पष्टता नहीं है। ऐसी घटनाएं सिर्फ इसलिए हुईं हैं क्योंकि संविधान सभा के सदस्यों को तब शायद यह अनुमान नहीं रहा होगा कि आने वाले समय में राजनेता अपने फायदे के लिए ऐसी वैसी हरकत करने लगेंगे वरना उन्होंने संविधान में सदन में उठाए जाने वाले मुद्दों के लिए जनमत अनिवार्य कर दिया होता।