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गुलाम नबी आजाद ने नई पार्टी का किया ऐलान, पढ़े आजाद की राजनीतिक सफर का विस्तार।

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अंग्रेजी में यह लेख उपलब्ध

गुलाम नबी आजाद ने नई पार्टी का ऐलान कर दिया है। उनकी पार्टा की नाम ‘डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी’ है। आज सुबह जम्मू में एक कांफ्रेंस के जरिए उन्होंने पार्टी के नाम की घोषणा की। आजाद ने कुछ महीने पहले कांग्रेस से अपना रिश्ता नाता तोड़ दिया था। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि उनकी नई पार्टी के लिए लगभग 1,500 नाम उर्दू, संस्कृत में भेजे गए थे। लेकिन हिन्दी और उर्दू का मिश्रण ‘हिन्दुस्तानी’ है। गुलाम चाहते हैं कि नाम लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण और स्वतंत्र हो।

गुलाम ने बताया कि पार्टी की विचारधारा उनके नाम की तरह होगी और इसमें सभी धर्मनिरपेक्ष लोग शामिल हो सकते हैं। जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के अधिकतर वरिष्ठ नेता कांग्रेस पार्टी को छोड़कर आजाद के समर्थन में सामने आ रहे हैं। गुलाम की तरफ से पार्टी का एजेंडा भी पहले ही स्पष्ट किया जा चुका हैं।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मार्च 2022 में गुलाम नबी आजाद को पद्मभूषण मिला था। 1973 में गुलाम नबी ने डोडा जिले के भलेसा ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में अपनी राजनीति सफर की शुरुआत की थी। इसके बाद उनकी काम को लेकर सक्रियता और काम करने की शैली को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना।

महाराष्ट्र से 1980 में उन्होंने अपना पहला संसदीय चुनाव लड़ा और उसमे जीत दर्ज की उसके बाद उन्हें 1982 में केंद्रीय मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया गया। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली दूसरी यूपीए सरकार में आजाद ने देश के स्वास्थ्य मंत्री का पदभार संभाला था।

अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का विस्तार किया। साथ ही झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले शहरी गरीब लोगो की सेवा के लिए एक राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन का शुरुवात भी किया। नबी आजाद ने कई महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले हैं। नरसिंह राव की सरकार में संसदीय कार्य और नागरिक उड्डयन मंत्री भी रहे थे।

2005 में गुलाम बने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री
2005 में गुलाम नबी आजाद के राजनीतिक जीवन में वह स्वर्णिम समय भी आया जब उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री पद पर कार्यरत होकर जम्मू-कश्मीर की सेवा की। आजाद के जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत का परचम लहराया था। इसके परिणाम स्वरूप कांग्रेस प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन 2008 में अमरनाथ भूमि आंदोलन के चलते उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

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