अक्सर हम दिन में नींद आने को थकान, तनाव या कम सोने का नतीजा मानकर नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन अगर कोई व्यक्ति पूरी रात सोने के बाद भी दिन में बार-बार सो जाता है, बात करते समय या खाते समय झपकी लेने लगता है, तो यह एक गंभीर बीमारी नार्कोलेप्सी का संकेत हो सकता है. नार्कोलेप्सी एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जो मस्तिष्क की नींद और जागने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है.डॉक्टरों के अनुसार, यह बीमारी कम लोगों में पाई जाती है, लेकिन इसके प्रभाव व्यक्ति की पढ़ाई, काम और सामाजिक जीवन पर गहरा असर डाल सकते हैं.
नार्कोलेप्सी एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति को दिन में अचानक और ज्यादा नींद आने लगती है. यह नींद व्यक्ति की इच्छा के बिना आती है और कभी भी, कहीं भी आ सकती है. यह बीमारी आमतौर पर 10 से 30 साल की उम्र के बीच शुरू होती है और लंबे समय तक बनी रहती है.
नार्कोलेप्सी मुख्य रूप से दो तरह की होती है. टाइप 1 नार्कोलेप्सी (कैटेपलेक्सी के साथ), इस प्रकार में नींद के साथ-साथ अचानक मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है. हंसने, गुस्सा आने या भावुक होने पर शरीर ढीला पड़ सकता है. व्यक्ति गिर सकता है या बोलने में परेशानी हो सकती है. हालांकि इस दौरान व्यक्ति होश में रहता है. इसके बाद टाइप 2 नार्कोलेप्सी (कैटेपलेक्सी के बिना) में व्यक्ति को दिन में बहुत नींद आती है, लेकिन मांसपेशियों की कमजोरी नहीं होती क्योंकि लक्षण हल्के लगते हैं, इसलिए इसका निदान देर से हो पाता है.
नार्कोलेप्सी के कुछ आम लक्षण में दिन में बार-बार और ज्यादा नींद आना, पर्याप्त नींद लेने के बाद भी थकान महसूस होना, बात करते या काम करते समय झपकी लगना और अचानक नींद में चले जाना शामिल है।
इसके अलावा कुछ और लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं। जैसे स्लीप पैरालिसिस सोते या जागते समय शरीर हिलाने या बोलने में असमर्थता, सोते या जागते समय डरावने या अजीब सपने दिखाई देना, रात की नींद खराब होना और ऑटोमैटिक बिहेवियर बिना होश के लिखना, टाइप करना और बाद में याद न रहना. इन लक्षणों की गंभीरता हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकती है।
नार्कोलेप्सी का सटीक कारण अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन कुछ कारण माने जाते हैं. जैसे मस्तिष्क में हाइपोक्रेटिन (ओरेक्सिन) नामक रसायन की कमी, शरीर की इम्यूनिटी से खुद की कोशिकाओं पर हमला, जीन, संक्रमण, तनाव और हार्मोनल बदलाव. टाइप 2 नार्कोलेप्सी में हाइपोक्रेटिन का स्तर सामान्य रहता है, इसलिए इसके कारणों पर अभी शोध जारी है।
इस बीमारी की पहचान के लिए डॉक्टर कुछ विशेष जांच करते हैं। रात की नींद की जांच (पॉलीसोम्नोग्राफी), मल्टीपल स्लीप लेटेंसी टेस्ट (MSLT) दिन में कितनी जल्दी नींद आती है, यह जांचता है।इन जांचों से नार्कोलेप्सी को अनिद्रा, स्लीप एपनिया या डिप्रेशन जैसी बीमारियों से अलग किया जाता है
नार्कोलेप्सी का पूरी तरह इलाज संभव नहीं, लेकिन सही देखभाल से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। सतर्कता बढ़ाने वाली दवाएं, कैटेपलेक्सी और स्लीप पैरालिसिस के लिए एंटीडिप्रेसेंट, नई दवाएं जो मस्तिष्क के केमिकल्स पर असर करती हैं।इसके अलावा रोज एक ही समय पर सोना और उठना, दिन में तय समय पर छोटी झपकी, नियमित एक्सरसाइज और बैलेंस डाइट , कैफीन और शराब से दूरी, शांत और अंधेरा सोने का वातावरण शामिल हैं।
