अखिलेश अखिल
नेताओं और राजनीति पर वैसे भी कोई यकीन नहीं करता क्योंकि राजनीति तो चरित्रहीन होती ही है नेताओं का भी कोई चरित्र नहीं होता। झूठ पर टिकी राजनीति को मीडिया के द्वारा बस्ट किया जाता है ताकि जनता को बेवकूफ बनाया जा सके और अपने बारे में माहौल खड़ा किया जा सके। इस बात को जनता भी जानती है लेकिन मजबूरी यही है कि जनता सबकुछ जानकार भी खुद की मज़बूरी में नेताओं और राजनीति के जाल में फंसती चली जाती है। राजनीति और नेता इसी का लाभ उठाते हैं और खुद की और पार्टी की झोली भरते हैं ताकि नाम भी हो और दाम भी मिले।
बानगी के तौर पर बीजेपी और केसीआर के बीच जो भी चलता दिख रहा है उससे पता चलता है कि राजनीति और नेताओं का असली सच क्या है। लोकसभा 2024 का चुनाव पूर्व से लेकर पश्चिम, उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक की कई पार्टियों के लिए शुभ नहीं रहा।
पिछली साल तक जहां तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भारतीय जनता पार्टी को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने की बात कर रहे थे, वहीं आज वो बीजेपी के साथ हाथ मिलाने के लिए बेकरार है। इसके पीछे पार्टी से लेकर परिवार तक को बचाने की बात सामने आ रही है। लेकिन उससे पहले जान लेते है कि तेलंगाना में 2019 और 2024 में पार्टियों ने कैसा प्रदर्शन किया था।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति को करारी हार का सामना करना पड़ा है, जबकि केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने उम्दा प्रदर्शन किया है। राज्य की कुल 17 लोकसभा सीटों में से 8 पर बीजेपी की जीत हुई है, जबकि 8 पर राज्य की सत्ताधारी कांग्रेस और एक पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की जीत हुई है। 5 साल पहले यानी 2019 में केसीआर की पार्टी ने 9 और बीजेपी ने चार सीटों पर जीत दर्ज की थी।
हालिया चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद केसीआर जहां बीमार पड़े हैं और जनसंपर्क से कटे हुए हैं, वहीं बीआरएस के नेता एक-एक कर पार्टी छोड़ते जा रहे हैं। इसके अलावा बीआरएस को अपने नेताओं पर मुकदमे का भी डर सता रहा है क्योंकि राज्य की कांग्रेस सरकार पूर्ववर्ती सरकार के नेताओं पर शिंकजा कस रही है।
ऐसे में एक तरफ राज्य सरकार की एजेंसियों की कार्रवाई का डर है तो दूसरी तरफ केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर केसीआर की विधायक बेटी के कविता आई हुई हैं। वह दिल्ली के कथित शराब घोटाले में पिछले पांच महीने से जेल में बंद हैं और ईडी के निशाने पर हैं।
इन परिस्थितियों में माना जा रहा है कि के चंद्रशेखर राव पहले परिवार और फिर पार्टी को बचाने के लिए किसी के साथ भी गठबंधन करने को राजी हो सकते हैं। कांग्रेस चूंकि परंपरागत विरोधी रही है, इसलिए केसीआर के पास बीजेपी से गठजोड़ का विकल्प ज्यादा बेहतर हो सकता है और इसका त्वरित फायदा उन्हें बेटी को ईडी की कार्रवाई से राहत के रूप में मिल सकता है।
बीजेपी की दक्षिणी में विजय की चाह और केसीआर की सत्ता में वापसी की चाह दोनों दलों को बातचीत के लिए नजदीक आने पर मजबूर कर रही है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी के कुछ नेता इस सियासी संकट का लाभ उठाना चाह रहे हैं और संकटग्रस्त क्षेत्रीय पार्टी पर विलय का दबाव डालने की बात भी कर रहे हैं।
हालांकि, बीजेपी का ही एक धड़ा बीआरएस से गठूबंधन की संभावनाओं का विरोध कर रहा है और कह रहा है कि यह पार्टी के लिए गलत कदम हो सकता है। हालांकि इन सबके बीच कहा जा रहा है कि इन्हीं संभावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए के पूर्व सीएम चंद्रशेखर राव के बेटे और राज्य के पूर्व मंत्री के टी रामाराव पिछले दिनों हैदराबाद से दिल्ली तक की दौड़ लगा चुके हैं और भाजपा के कुछ नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं।