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मेरी आवाज ही मेरी पहचान है:लता मंगेशकर

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नाम गुम जाएगा, चेहरा यह बदल जाएगा,मेरी आवाज ही मेरी पहचान है, गर याद रहे।

28 सितंबर, 1929 को शास्त्रीय गायक और रंगमंच कलाकार पंडित दीनानाथ मंगेशकर और शेवंती के घर जन्मी लता मंगेशकर का देहावसान 6 फरवरी 2022 को 92 वर्ष की उम्र में मुंबई के ब्रिज कैंडी अस्पताल में हो गया।आज भले ही उनका चेहरा और अन्य पहचान ,हमारे बीच नहीं है, लेकिन अपने जीवनकाल में गाये गानों की मधुर आवाज के जरिए वे आज भी हमसब के बीच मौजूद हैं। अपने इस जीवन यात्रा के दौरान उन्होंने तकरीबन 36 भाषाओं में 5000 से कुछ ज्यादा ही गाने गाए हैं।
शोखियों से शरारतों तक, प्रेम से विरह तक और वैराग्य से भजन तक, जिंदगी का हर रस उनके गानों में है। उनके जन्म दिवस पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आइए जानते हैं उनसे जुड़ी हुई कुछ महत्वपूर्ण बातें।

शास्त्रीय संगीत से कुछ ज्यादा लगाव होने की वजह से लता जी के पिता दीनानाथ मंगेशकर नहीं चाहते थे की लता जी फिल्मों में गाना गाएं। हालांकि घर के वातावरण के संगीत मय होने और लता जी का संगीत में रुचि को देखते हुए उन्होंने बचपन से ही लता जी को संगीत की अच्छी तालीम दी थी। तब किसे पता था की इस छोटी सी बच्ची को दी जा रही संगीत की शिक्षा ही एक दिन दीनानाथ मंगेशकर जी के परिवार की रोजी-रोटी का जुगाड़ करेगा और वह भी फिल्म में गाये गए उनके गाने से।

जब लता मंगेशकर की उम्र मात्र 13 वर्ष थी, तभी उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की मृत्यु हो गई। भाई बहनों में सबसे बड़े होने के नाते पूरे परिवार का बोझ 13 वर्ष की इस छोटी सी बच्ची लता मंगेशकर के कंधों पर आ गया। फिर यहीं से शुरू हुआ लता बिटिया से उनका स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर बनने तक का सफर। फिल्मों के प्रसिद्ध दादा साहब फाल्के पुरस्कार से लेकर भारत का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न तक से लता मंगेशकर अपने इसी संगीत की वजह से सम्मानित हुई ।

लेकिन 13 साल की एक छोटी सी बच्ची के लिए फिल्मों में प्रवेश कर इसके सहारे अपने परिवार के लिए रोजी रोटी का जुगाड़ कर पाना इतना आसान नहीं था।13 साल की पिता विहीन बालिका लता जी के लिए यह बहुत मुश्किल भरा समय था।हालांकि उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर जी के एक दोस्त मास्टर विनायक ने उन्हें गाने और एक्टिंग की दुनिया में लाने में भरपूर मदद की थी।

आज पूरी दुनिया लता जी के गाए मधुर गीतों की दीवानी है,लेकिन एक समय वह भी था , जबकि लता जी की इसी मधुर आवाज को पतली आवाज कहते हुए एक फिल्म निर्माता ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था। यह फिल्म निर्माता थे एस मुखर्जी जिन्होंने अपनी फिल्म शहीद मैं गाना गाने के लिए लता मंगेशकर को लेने से सिर्फ यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि उसकी आवाज बहुत पतली है। हालांकि लता की गायन प्रतिभा से प्रभावित होकर दिलीप कुमार ने यह कहते हुए लता मंगेशकर को इस फिल्म में काम दिलाने का प्रयास किया था कि मराठी टोन होने की वजह से इसके साथ ऐसा हो रहा है,लेकिन एस मुखर्जी ने फिर भी लता मंगेशकर को फिल्म शहीद में काम नहीं दिया। तब दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर को उर्दू सीखने का सुझाव दिया था। बाद में लता मंगेशकर ने दिलीप कुमार के कहे बातों पर अमल भी किया था क्योंकि उन्हें परिवार चलने के लिए फिल्मों में काम भी पाना था और शोहरत भी।

लता मंगेशकर ने अपना पहला फिल्मी गाना नाचू या गाड़े ,खेलू साड़ी मनी होस भारी, मराठी फिल्म किट्टी हसल के लिए गाया था,जिसे सदाशिवराव नेवरेकर ने कम्पोज किया था। हालांकि यह गाना रिलीज नहीं हो पाया था। लता मंगेशकर ने हिंदी फिल्म के लिए अपना पहला गाना फिल्म आपकी सेवा में, पांव लागू कर जोरी, श्याम मेरे, ना छेड़ो मोही, गाया था।लता मंगेशकर को सबसे बड़ा ब्रेक फिल्म महल से मिला। उनका गाया गाना “आयेगा आने वाला” सुपर डुपर हिट था। हिंदी फिल्म में लता मंगेशकर का अंतिम गाना फिल्म बसंती में लुकाछिपी बहुत हुई,सामने आ जाना ।कहां-कहां ढूंढा तुझे ,शाम हुई आ जाना ,था। हालांकि लता मंगेशकर का हिंदी में अंतिम गाना सौगंध मुझे इस मिट्टी का, मैं देश नहीं मिटने दूंगा। मैं देश नहीं रुकने दूंगा ,मैं देश नहीं झुकने दूंगा गाया था। लता जी ने यह गाना खुद कंपोज करवाकर इसे देश के जवानों और देश की जनता को समर्पित किया था। अपने प्रारंभिक समय में लता मंगेशकर ने फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी अदा किए थे।

लता मंगेशकर संगीत को देवतुल्य मानती थी यही कारण था की फिल्मों के गानों का रिहर्सल हो या रिकॉर्डिंग इस दौरान लता मंगेशकरचप्पल उतार कर ही गाना गया करती थी।

गाना और गाने वाले गायको के सम्मान के लिए लता मंगेशकर हमेशा प्रयत्नशील रहती थी। उन दिनों गानों के रिकॉर्ड पर गायकों या गायिकाओं के नाम दर्ज नहीं किए जाते थे।तब रिकॉर्ड पर फिल्म, फिल्म निर्माता,निर्देशक और संगीतकार के ही नाम दिए जाते थे। लता मंगेशकर जी ने रिकॉर्ड बनाने वाली कंपनियों से गायक और गायिकाओं के नाम भी रिकॉर्ड पर लिखने के लिए कहा। रिकॉर्ड बनाने वाली कंपनियां ऐसा नहीं करना चाहती थी, इसलिए उन लोगों ने मोहम्मद रफी के माध्यम से यह कहलवाया की रिकॉर्ड कंपनियां गाना गाने की रॉयल्टी तो गायक और गायिकाओं को दे ही रहे हैं फिर यह नया बखेड़ा कैसा? लेकिन कहते हैं कि लता जी ने इसे नहीं माना और वह अपनी जिद पर अड़ी रहीं। इसे लेकर लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के बीच मन मुटाव इतना बढ़ गया कि दोनों ने साथ-साथ गाना गाना भी बंद कर दिया था। फिल्म पगला कहीं का’ गीत तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे के संगीतकार संकर जयकिशन ने जब लता जी का खूब मनुहार किया तो वे मोहम्मद रफी वाले गाने में अपना मुखड़ा गाने को तो तैयार हो गईं,लेकिन उन्होंने अपना अंतरा अलग रिकॉर्ड करवाया जिसे ले जाकर रफी के गाए साथ वाले हिस्से के साथ जोड़ दिया गया।बाद में रिकॉर्ड बनाने वाली कंपनियां गायक और गायायिकाओं के नाम भी रिकॉर्ड पर लिखने को तैयार हो गए।

लता जी के जीवन के साथ जुड़ी एक कहानी उनकी शादी को लेकर भी अक्सर चर्चा में रहती है। कहा जाता है कि क्रिकेट प्लेयर राज सिंह डूंगरपुर उनका प्यार थे। राज सिंह डूंगरपुर भी लता मंगेशकर से प्यार करते थे। लेकिन उनके पिता ने यह कहते हुए इस शादी करने से इनकार कर दिया कि लता जी किसी राज परिवार से नहीं आती हैं और उनके परिवार में शादियां राज परिवार के खानदान में ही होती है। कुछ तो इस बात से और कुछ घर वालों के खर्च चलाने की बोझ की वजह से लता मंगेशकर ने आगे फिर कभी शादी करने की कोई योजना नहीं बनाई और उनका प्यार सदा सदा के लिए संगीत हो गया।

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