न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी यानी बच्चों से संबंधित यौन सामग्री को डाउनलोड करने, अपने पास रखने या देखन मात्र को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉस्को) अधिनियम के तहत अपराध करार दिया है। शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। पीठ ने यह भी कहा कि भले ही ऐसी सामग्री को दूसरे तक फैलाया नहीं नहीं गया हो पर कोई व्यक्ति यदि इसे अपने पास रखता है तो यह पॉस्को और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराधी होगा।
इंटरनेट पर बिना डाउनलोड ऐसी सामग्री देखना भी पॉस्को अधिनियम की धारा 15 के तहत अपने पास रखने के समान अपराध माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल पोर्न सामग्री रखना अधूरा नहीं बल्कि पूरा अपराध है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस जेबी पारदीवाल की पीठ ने बच्चों के यौन उत्पीड़न को पूरी दुनिया के समाजों में प्लेग की तरह फैलने वाला व्यापक रोग मानते हुए इसे भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय करार दिया है। उन्होंने माना कि मद्रास हाईकोर्ट का इस बारे में दिया गया फैसला अन्यायपूर्ण था। हाईकोर्ट ने 11 जनवरी के फैसले में 28 साल के युवक को अपने फोन में बच्चों से जुड़ी यौन सामग्री डाउनलोड करने के मामले में पॉस्को के तहत आपराधिक कार्यवाही से बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि ऐसी सामग्री महज अपने पास रखना अपराध नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने फैसले में गंभीर चूक की है। हमारे पास फैसले को रद्द करने और तिरुवल्लूर जिला कोर्ट में आपराधिक कार्यवाही फिर से शुरू करने का निर्देश देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
इस संवेदनशली मुद्दे पर कई निर्देश जारी करते हुए पीठ ने संसद से आग्रह किया कि ऐसे अपराधों की वास्तविकता को ज्यादा सटीकता से दिखाने के लिए चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह बाल यौन उत्पीडन एवं दर्व्यवहार सामग्री का इस्तेमाल हो। इसके लिए पॉस्को कानून में अध्यादेश से संशोधन करने पर विचार हो।
पीठ ने सभी अदालतों को निर्देश दिया कि किसी भी न्यायिक आदेश या फैसले में चाइल्ड पोर्नो्ग्राफॅी शब्द का इस्तेमाल न किया जाए। इसके बदले बाल यौन उत्पीड़न एवं दुर्व्वहार सामग्री का उपयोग हो।
सुप्रीम कोर्ट ने यौन शिक्षा को व्यापक रूप से लागू करने का सुझाव दिया, जिसमें बाल यौन उत्पीड़न के काूनों व नैतिक प्रभावों की जानकारी हो। कोर्ट ने कहा कि इसमें संभावित अपराधों को रोकने में मदद मिल सकती है। इन कार्यक्रमों के जरिये आम गलतफहमियां दूर की जाएं। युवाओं को सहमति व शोषण के प्रभाव को स्पष्ट समझ दी जाए।
कोर्ट ने केंद्र सरकार के विशेषज्ञ समिति बनाने कि लिए विचार का समर्थन किया। समिति सेहत व यौन शिक्षा के लिए व्यापक कार्यक्रम या तंत्र बनाने में मदद करेगी। इसे साथ बचचों को कम उम्र से ही पॉस्को के बारे में जागरूक करने की सलाह दी गई ताकि बाल संरक्षण शिक्षा औरी बाल कल्याण के लिए मजबूत व सुविचारित दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके।