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मणिपुर हिंसा : अगर सेना पीछे नहीं हटती तो लाशों के ढेर लग जाते —–

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अखिलेश अखिल 

विदेश यात्रा  से लौटे पीएम मोदी को गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर की पूरी जानकारी दी है। आगे केंद्र सरकार क्या कुछ करती है इसे देखना बाकी है। फिलहाल हालत तो यही है कि मणिपुर में हिंसक झड़पे आज भी जारी है। लोगों में सेना के खिलाफ विद्रोही भावना भी पनप रही है और कहा जा कि केंद्र और मणिपुर सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठाती है तो इसके दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं। जानकारी के मुताबिक कई पडोसी देश मणिपुर की आग को और भी भड़काने को आतुर हैं इसके साथ ही कई पडोसी राज्य पर भी मणिपुर का असर पड़ सकता है।  
        बड़ा सच यही है कि मणिपुर विल्कुल अशांत हो चला है। अबतक सैकड़ों लोगों की जाने जा चुकी है और सैकड़ो लोग गंभीर रूप से घायल है। एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 80 हजार से ज्यादा लोग विस्थापन के शिकार हुए हैं। उनकी हालत और भी दर्दनाक है। महिलाओं की हालत बेहद पीड़ादायक बनी हुई है। बच्चो की पढाई लिखाई चौपट सी हो गई है। मणिपुर में मैतेई बनाम कुकी की लड़ाई अब सेना बनाम मैतेई और कुकी गुटों के बीच हो गई है।      
   शनिवार को इम्फाल पूर्वी जिले में जो हुआ वह कंपा देने वाला था। उग्र भीड़ ने सुरक्षा बलों को घेर लिया। नतीजा यह हुआ कि सेना को पीछे हटना पड़ा। अगर ऐसा नहीं होता तो वहां लाशों के ढेर बिछ गए होते। कांगलेई यावोल कन्ना लुप यानि केवाईकेएल संगठन के एक दर्जन उग्रवादियों को सेना ने पकड़ लिया था। बताया जा रहा है कि इन उग्रवादियों ने हथियारों का जखीरा जमा कर रखा था। उन्हें सेना लेकर आती, उससे पहले उग्र भीड़ ने सुरक्षा बलों को घेर लिया। हैरान करने वाली बात यह है कि इस उग्र भीड़ का नेतृत्व महिलाएं कर रही थीं। लगभग 1500 लोगों की भीड़ में महिलाओं की संख्या ज्यादा थी। उन्हें रोकने के बाद सेना ने स्थानीय नेताओं को छोड़ दिया।         
    एक रक्षा प्रवक्ता के अनुसार, शनिवार आधी रात के बाद सेना और असम राइफल्स ने विशिष्ट खुफिया सूचनाओं पर कार्रवाई करते हुए इंफाल पूर्वी जिले के इथम गांव में एक अभियान शुरू किया। स्थानीय लोगों को असुविधा से बचाने के लिए सेना ने पहले इलाके को घेर लिया गया। ऑपरेशन के परिणामस्वरूप 12 केवाईकेएल कैडरों को हथियारों, गोला-बारूद और युद्ध जैसे भंडार के साथ पकड़ा गया।
           स्वयंभू लेफ्टिनेंट कर्नल मोइरांगथेम तम्बा उर्फ उत्तम भी 12 आतंकवादियों में से एक था। वह डोगरा में 2015 को छठी बटालियन पर घात लगाकर किए गए हमले का मास्टरमाइंड था। महिलाओं और स्थानीय नेताओं के नेतृत्व में लगभग 1500 लोगों की भीड़ ने तुरंत इलाके को घेर लिया और बार-बार अपील के बावजूद सुरक्षा बलों को ऑपरेशन जारी रखने से रोका।
               प्रवक्ता ने कहा कि संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए बड़ी क्रोधित भीड़ के खिलाफ बल के प्रयोग ठीक नहीं लगा। आखिर सेना ने उस समय पीछे हटना ही मुनासिब समझा। मौके पर मौजूद अधिकारी ने सभी 12 केवाईकेएल उग्रवादियों को स्थानीय नेताओं को सौंपने का विचारशील निर्णय लिया। सेना और असम राइफल्स के जवानों ने घेरा हटा लिया और क्षेत्र से निकल गए। हालांकि सेना के जवान वहां जमा युद्ध जैसे हथियारों और गोला-बारूद को अपने साथ ले आए।
     लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि यह सब तो एक नजर भर था। पूरा मणिपुर उग्रवादियों का अड्डा बन गया है। तलाशी ली जाए तो सेना के भी होश उड़ जायेंगे। लेकिन सबसे बड़ी बात यही है कि केंद्र से लेकर मणिपुर में बीजेपी की सरकार है। पीएम मोदी को इस अशांत मणिपुर को शांत करने की पहल करने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो नागालैंड की समस्या भी उभर सकती है। नागालैंड पहले से ही जल रहा है। अभी केवल वहां शांति दिख रही है। ऐसे में नगालिम की मांग फिर से उठने लगी देश को बर्बादी से कौन बचा सकता है। 

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