राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और दीपांकर भट्टाचार्य की वोटर अधिकार यात्रा आरा में एक रैली के बाद समाप्त हो गई।
अब 1 सितंबर को पटना में एक अंतिम पदयात्रा होनी है।महागठबंधन की इस वोटर अधिकार यात्रा 14 दिनों तक चली,
जिसमें राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक के नेता और कार्यकर्ता बिहार के 22 शहरों से होकर गुजरे।ये शहर हैं- रोहतास, औरंगाबाद, गया, नवादा, नालंदा, लखीसराय, मुंगेर, भागलपुर, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, फारबिसगंज, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, मोतिहारी, चंपारण, सीवान, छपरा, मुजफ्फरपुर और आरा।
इस यात्रा की सबसे बड़ी खासियत रही कि यह राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के तर्ज पर आयोजित की गई थी।
राहुल गांधी और उनके साथ के लोग स्कूल या किसी बड़े अहाते में कैम्प लगाते थे और वहीं रहते थे, हर दिन उनके कंटेनर एक जगह से दूसरे जगह जाते थे।
भारत जोड़ो यात्रा की तरह बिहार की इस यात्रा में कांग्रेस के तीनों मुख्यमंत्री बारी-बारी से शामिल हुए।यहीं नहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी आए।मतलब राहुल गांधी ने बिहार में भी इंडिया गठबंधन की एकजुटता दिखाने की कोशिश की।
शायद कांग्रेस पार्टी को लगा कि यदि SIR की वजह से पूरा मानसून सत्र धुल सकता है तो क्यों नहीं इसका प्रदर्शन बिहार में भी किया जाए।राजद और माले का कार्यकत्ता तो इस यात्रा में निकला ही, मगर कांग्रेस का कार्यकर्ता भी सड़क पर आया जो शायद नवंबर में होने वाले चुनाव में कांग्रेस को फायदा पहुंचाए।
जानकारों का मानना है कि शायद ही कांग्रेस ने बिहार में अपनी पार्टी को लेकर इतनी गंभीरता दिखाई हो।यह पहली बार है कि जब कांग्रेस का पूरा नेतृत्व दो हफ्ते तक बिहार में डटा रहा।कहा यह जा रहा है कि कांग्रेस बिहार में इस बार 70 नहीं 55 के आसपास सीटें ही लड़ेगी।
मगर सबसे बड़ा सवाल ये है कि वोट चोरी का मुद्दा क्या सितंबर-अक्टूबर में होने वाले चुनाव तक बरकरार रहेगा और यदि मुद्दा बना रहा तो क्या वोट में तब्दील होगा? एक बात तो जरूर हुआ है कि लोग इस मुद्दे पर वोट करें या नहीं, मगर बातें जरूर करने लगे हैं।अब यह महागठबंधन के दलों पर निर्भर करता है कि वो इस मुद्दे को चुनाव तक जिंदा रख पाते हैं या नहीं।
राहुल और प्रियंका ने भीड़ इकट्ठा तो किया है, मगर उसको बूथ तक कौन लाएगा ये सबसे बड़ा सवाल है।यानी वोटर अधिकार यात्रा के बाद भी कई बड़े सवाल बने हुए हैं।मगर महागठबंधन को इस बात का संतोष होगा कि उन्होंने एक मजबूत शुरुआत जरूर की है।
वोटर अधिकार यात्रा का समापन पटना में एक और पदयात्रा के साथ होगा, जिसमें कांग्रेस के सभी बड़े नेता रहेंगे और कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी।फिलहाल इतना तो साफ है कि 1989 के भागलपुर दंगे के बाद बिहार से धीरे-धीरे सिमटती जा रही कांग्रेस इस यात्रा से पहली बार नजर आने लगी है।अब देखना है कि कांग्रेस बिहार के वोटरों का दिल कतना जीत पाती है।