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अग्निवीर योजना पर कोर्ट ने लगायी मुहर,देश और सेना के हित में बताया, दखल से इनकार

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न्यूज डेस्क
भारतीय सेना को मजबूत बनाने के लिए बनाई गई केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी अग्निपथ योजना की संवैधानिक वैद्यता पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मुहर लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि निर्णायक रूप से कहा जा सकता है कि यह योजना राष्ट्रहित में सशस्त्र बलों को बेहतर ढंग से सुसज्जित करने के लिए बनाई गई है। सीमाओं पर झड़पों को देखते हुए ऐसे सशस्त्र बलों की आवश्यकता बढ़ जाती है जो सेवा के साथ होने वाले मानसिक और शारीरिक संकट से निपटने में सक्षम हो।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 14 जून 2022 करे महत्वाकांक्षी अग्निपथ योजना की घोषणा की थी। इसके तहत रक्षा बलों में साढ़े 17 से 21 वर्ष की आयु के युवाओं की केवल चार साल के लिए भर्ती होगी। इसमें से 25 प्रतिशत को 15 साल के लिए सेना में बनाए रखने का प्राविधान है। इस योजना के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर ​दी थी।

अग्निवीरों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा विभिन्न पदों पर किया जाएगा समाहित

फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि कई अग्निवीरों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा विभिन्न पदों पर समाहित किया जाएगा। उन्हें विभिन्न प्रमाणपत्र दिये जाएंगे जो उन्हें सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में नौकरी पाने में सक्षम बनाएंगे। चार साल तक सेना में काम करने से निश्चित रूप से अग्निवीरों में राष्ट्रवाद की भावना पैदा होगी जो देश के युवाओं के लिए जरूरी है। राष्ट्रवाद की यह भावना इन व्यक्तियों को भविष्य में अपराध में जाने से भी रोकेगी। इन फायदों को इस इस आशंका के आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि चार चार के बाद ऐसे व्यक्ति बेरोजगार हो सकते हैं या अवैध या अनैतिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। बेतुकी बातों के आधार पर योजना में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

पेंशन नहीं मिलने की दलील को ठुकराया

चार साल बाद अग्निवीरों को पेंशन नहीं देने के तर्क को पीठ ने ठुकरा दिया। कहा कि ऐसी नीति को लागू करने वाले इजरायल और भारत के बीच प्रमुख अंतर यह है कि भारत सरकार ने राष्ट्र के युवाओं के लिए सशस्त्र बलों में सेवा करना अनिवार्य नहीं बनाया है। इसे सुविचारित निर्णय बताते हुए पीठ ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्यों के बजाय इसके लाभों पर ध्यान देना आवश्यक है। अग्निवीर योजना लीडर टु लीड के अनुपात को 1.1 प्रतिशत बढ़ाकर 1.28 कर देंगे।

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