अखिलेश अखिल
उत्तरप्रदेश के जरिये ही दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुआ जा सकता है। जिस पार्टी की यूपी में अच्छी जीत होती है ,केंद्र की सत्ता उसी के हवाले हो जाती है। जब कांग्रेस शिखर पर होती थी ,उस समय भी यूपी और बिहार को जीतकर ही कांग्रेस दिल्ली की सत्ता तक पहुँच जाती थी। उसके बाद बीजेपी को यह अवसर मिल रहा है। बीजेपी लगातार यूपी की अधिकतम सीटें जीत रही है और केंद्र की सत्ता पर बैठी हुई है। बीजेपी की कोशिश अब यह है कि वह तीसरी बार भी केंद्र की सत्ता पर बैठे और इसके लिए यूपी की सभी सीटें उसके पाले में आ जाए। यही है वजह है कि बीजेपी यूपी में मिशन 80 योजना पर काम कर रही है। इस योजना का आशय है सूबे की सभी 80 लोकसभा सीटों पर बीजेपी और एनडीए की जीत।
लेकिन क्या यह संभव है ? जानकार कह रहे हैं कि अब ऐसा संभव नहीं है। बीजेपी सीट जीतने की चरम सीमा पार कर चुकी है। यूपी की 80 सीटें जीतने का मतलब है कि विपक्ष का खात्मा। और फिर करीब 60 फीसदी से ज्यादा वोट पाने की शर्त। लेकिन अब यह मुमकिन नहीं है। हालांकि बीजेपी कई दूसरे राज्यों में लोकसभा की सभी सीटें जीतने में सफल रही है लेकिन यही सफलता बीजेपी को अपने चरम उत्कर्ष काल में यूपी में संभव नहीं हो पाया। इसके वजह भी है। जित जातीय गोलबंदी और धर्म के आसरे बीजेपी आगे बढ़ती रही है ,यूपी में एक बड़ा टपका आज भी मायावती और सपा की राजनीति का मुरीद है। दलित और मुसलमानो पर बसपा की पकड़ रही है तो पिछड़ों के बीच सपा का। खासकर यादव ाकु कई पिछड़ी जातियां के साथ ही सवर्ण वर्ग के की कुछ जातियां भी सपा के साथ हमेशा खड़ी रही है। और यही बीजेपी की राह की सबसे बड़ी कमजोरी रही है।
लेकिन अब सवाल ये है कि आगामी लोकड़सभ चुनाव में जब इंडिया गठबंधन के साथ सभी विपक्षी दल एक होकर बीजेपी को चुनौती देने को तैयार है तब यूपी में कांग्रेस क्या कुछ करेगी इसको लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। अब कांग्रेस ने देश के इस सबसे बड़े राज्य में अपने आप को मजबूत बनाने के लिए जो योजना बनाई है, यदि वह सफल हुई तो भाजपा की इस योजना को करारी चोट लग सकती है। इससे केवल भाजपा को ही नुकसान नहीं होगा, बल्कि मायावती को भी अब तक का सबसे बड़ा झटका लग सकता है।
चर्चा है कि कांग्रेस यूपी में अपनी वापसी के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। इसके लिए राहुल गांधी के साथ-साथ प्रियंका गांधी को भी प्रदेश की किसी सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है। अब इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए कांग्रेस ने अपने दलित नेता और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी मैदान में उतारने का प्लान बना लिया है। उन्हें बाराबंकी या इटावा से उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा चल रही है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश या दलित मतदाता बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूती दे सकती है। यदि ऐसा हुआ तो अब तक मायावती के साथ मजबूती के साथ खड़े रहे दलित मतदाताओं की एक बड़ी संख्या कांग्रेस के पक्ष में मुड़ सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाकर और अपने कठोर हिंदुत्व प्लान के जरिए दलित मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में बड़ी सफलता पाई थी। 2014 से लेकर 2022 तक भाजपा की यही योजना उसे यूपी में बड़ी ताकत बनाने में सबसे कारगर साबित हुई है। ऐसे में यदि कांग्रेस मल्लिकार्जुन खरगे के रूप में दलित कार्ड खेलती है तो इससे भाजपा को भी बड़ा नुकसान हो सकता है।
दरअसल, कांग्रेस का यह आइडिया आधारहीन नहीं है। कर्नाटक चुनाव में यह देखा गया है कि दलित मतदाताओं ने जनता दल सेक्युलर जैसी स्थानीय पार्टियों को वोट देने की बजाय निर्णायक भूमिका निभाने वाली कांग्रेस को वोट देना बेहतर समझा। यही कारण है कि एक तरफ जेडीएस के वोट घट गए तो कांग्रेस को वोट शेयरों में बड़ा उछाल आ गया। कांग्रेस नेता मान रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में भी दलित मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग मायावती की प्रभावहीन होती भूमिका से निराश है। वह अपने लिए विकल्प खोज रहा है। इसी विकल्प की तलाश में अति दलित जातियां तो भाजपा के साथ चली गई हैं, लेकिन जाटव के साथ-साथ कुछ जातियां अभी भी अपने लिए विकल्प तलाश रही हैं। कांग्रेस इन्हीं जातियों को अपने साथ जोड़ने की योजना बना रही है।
अभी तक यह चर्चा थी कि कांग्रेस मायावती को इंडिया गठबंधन के खेमे में लाने के लिए प्रयास कर रही है। लेकिन चुनाव पूर्व गठबंधन न करने के बसपा के इतिहास और मायावती के बयान को देखते हुए माना जा रहा है कि उनका इंडिया गठबंधन में चुनाव पूर्व न आना तय हो गया है। यही कारण है कि अब कांग्रेस मल्लिकार्जुन खरगे के सहारे दलित कार्ड खेलने की तैयारी कर रही है।
जानकार मानते हैं कि बसपा का मतदाता देश के सबसे प्रतिबद्ध मतदाताओं के रूप में देखा जाता रहा है। किसी भी पार्टी के किसी भी झांसे में न आते हुए अब तक वह मायावती को अपना एकमुश्त समर्थन देता रहा है। यही कारण है कि यूपी में शून्य सीटें आने के बाद भी बसपा का वोट प्रतिशत 20 प्रतिशत के लगभग बना रहा। लेकिन 2022 का विधानसभा चुनाव इस मामले में आश्चर्यजनक परिणाम देने वाला साबित हुआ। पहली बार मायावती के वोट बैंक में लगभग 9.35 प्रतिशत की कमी आई, जबकि समाजवादी पार्टी के वोट प्रतिशत में 10.24 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। समाजवादी पार्टी को चुनाव में हार के बाद भी 32 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले। इतना वोट उसे मुलायम सिंह के समय में भी कभी नहीं मिले थे।
यूपी साधने की जंग :कांग्रेस का यह प्लान सफल हो गया तो बीजेपी के साथ बसपा भी चित हो जाएगी !
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